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________________ प्रकाश का चुराना बाबोपलब्धि है खींच लेने के सब उपाय बाहर काम कर रहे हों और भीतर से कोई वासना न आती हो, तभी-जब पानी से गुजरो और पैर न छुए पानी को, पानी न छुए पैर को, तभी-तभी जानना कि संतत्व। तो पानी और पैर के बीच में जो अंतराल है, वहीं संतत्व है। कमल का पत्ता है। वह खिला रहता है पानी में। पानी की बूंद भी उस पर पड़ जाएं तो भी छूती नहीं। एक अंतराल है, पत्ते और बूंद के बीच में एक फासला है। बूंद लाख उपाय करे, तो भी उस अंतराल को पार नहीं कर पाती। वह अंतराल ही संतत्व है। बूंद गिर जाती है, पत्ते को पता ही नहीं चलता। बूंद आती है, चली जाती है, पत्ते को पता ही नहीं चलता। बूंद खुद वजनी हो जाती है, पत्ता झुक जाता है और बूंद नीचे गिर जाती है। बूंद हलकी होती है, बनी रहती है; बूंद भारी हो जाती है, गिर जाती है। यह बूंद का अपना ही काम है; पत्ते का इससे कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन कमल का पत्ता अगर कहे कि मैं सरोवर को छोडूंगा, क्योंकि पानी यहां मुझे बहुत छूता है, गीला कर जाता है, तो फिर जानना कि वह पत्ता कमल का नहीं है। कमल के पत्ते को अंतर ही नहीं पड़ता वह बाहर है या भीतर, वह पानी में है या पानी के बाहर। क्योंकि पानी के भीतर होकर भी पानी के बाहर होने का उपाय उसे पता है। इसलिए बाहर भागने का कोई अर्थ नहीं है, कोई संगति नहीं है। लाओत्से कहता है, 'एक कुशल धावक पदचिह्न नहीं छोड़ता।' इसे थोड़ा समझें। जितनी तेजी से आप दौड़ेंगे, उतना ही कम स्पर्श होगा जमीन का। इसको अंतिम, चरम की अवस्था पर ले जाएं। अगर तेजी आपकी बढ़ती ही चली जाए तो जमीन से स्पर्श कम होता जाएगा। जब आप धीमे चलते हैं, पैर पूरा जमीन पर बैठता है-छूता है, उठता है, फिर जमीन को छूता है। जब आप तेजी से दौड़ते हैं, जमीन को कम छूता है। अगर तेजी और बढ़ती चली जाए...। अभी वैज्ञानिक ऐसी गाड़ियां, ऐसी कारें ईजाद किए हैं, जो एक विशेष गति पकड़ने पर जमीन से ऊपर उठ जाएंगी। क्योंकि उतनी गति पर जमीन को छूना असंभव हो जाएगा। तो जल्दी ही, जल्दी ही, जैसे कि हवाई जहाज एक विशेष गति पर टेक ऑफ लेता है, एक विशेष गति को पकड़ने के बाद जमीन छोड़ देता है, ठीक वैसे ही कारें भी एक खास गति लेने के बाद जमीन से एक फीट ऊपर उठ जाएंगी। फिर रास्तों की खराबी निष्प्रयोजन हो जाएगी, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। रास्ते कैसे भी हों, गाड़ी को कोई अंतर नहीं पड़ेगा। रास्ता न भी हो तो भी गाड़ी को कोई अंतर नहीं पड़ेगा। एक फीट का फासला उस गति पर बना ही रहेगा। तो सिर्फ फासला पकड़ने के लिए रन-ओवर की जरूरत होगी; उतरने के लिए। लेकिन बीच की यात्रा बिना कठिनाई के, बिना रास्तों के की जा सकती है। लेकिन तब कार आपके घर के सामने से निकल गई हो, तो भी चिह्न नहीं छोड़ेगी। यह उदाहरण के लिए कहता हूं। ठीक ऐसे ही अंतस-चेतना में भी गतियां हैं। कुशल धावक जब चेतना में इतनी गति ले आता है, तो फिर कोई चिह्न नहीं छूटते। कोई चिह्न नहीं छूटते। आप पर चिह्न छूटते हैं, उसका कारण संसार नहीं है, आपकी गति बहुत कम है। एक आदमी शराब पीता है। शराब के चिह्न छुटेंगे। स्वभावतः हम सोचते है, शराब में खराबी है। इतना आसान मामला नहीं है। शराब के चिह्न छूटते हैं, शराब की बेहोशी छूटती है; क्योंकि शराब की गति और इस आदमी की चेतना की गति में जो अंतर है, वही कारण है। इस आदमी की चेतना की गति शराब से ज्यादा नहीं है; शराब से नीची है। शराब ओवरपावर कर लेती है, आच्छादित कर लेती है। तंत्र ने बहुत प्रयोग किए हैं नशों के ऊपर। और तंत्र ने चेतना की गति को बढ़ाने के अनूठे-अनूठे उपाय खोजे हैं। इसलिए किसी तांत्रिक को कितनी ही शराब पिला दो, कोई भी बेहोशी नहीं आएगी। क्योंकि चेतना की गति शराब की गति से सदा ऊपर है। शराब ऊपर जाकर स्पर्श नहीं कर सकती, केवल नीचे उतर कर स्पर्श कर सकती है। जब आपकी चेतना की गति धीमी होती है, शराब की तीव्र होती है, तब आपको स्पर्श करती है। 217
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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