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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ लेकिन जीवन में सब यात्रा पर हैं; वहां कोई ठहरा हुआ नहीं है। सिर्फ स्वभाव ठहरा हुआ है। तो जो स्वभाव की तरफ जाता है, वही केवल पहुंचता है। बाकी लोग भटकते हैं। उनके पीछे दौड़ते हैं, जो खुद ही दौड़ रहे हैं। आखिरी बात। लाओत्से ने ताओ परंपरा में सदगुरु की परिभाषा की है। और कहा, सदगुरु वह है जो कहीं जा नहीं रहा है। अगर कहीं जा रहा है तो वह गुरु नहीं है। अगर उसे कुछ पाने को शेष है तो वह गुरु नहीं है। अगर कुछ होने को शेष है तो वह गुरु नहीं है। और जो ऐसे गुरु के पीछे चल पड़े जो कहीं जा रहा है, मुश्किल में पड़ेगा। मुश्किल में पड़ना अनिवार्य है। क्योंकि आपने जो मंजिल चुनी है, वह मंजिल नहीं है। मंजिल का अर्थ है वह बिंदु इस अस्तित्व के बीच, जो सदा शाश्वत रूप से वहीं है। सब चीजें उसकी तरह जा रही हैं, वह किसी की तरफ नहीं जा रहा है।' - इसका अर्थ हुआ कि अगर हम स्वभाव की तरफ जा रहे हैं, उस सबको छोड़ रहे हैं जो कृत्रिम है, उस सबको छोड़ रहे हैं जो चेष्टित है, उस सबको छोड़ रहे हैं जो प्रयास से है, उस सबको छोड़ रहे हैं जो दूर है, वरन उसमें डूब रहे हैं जो हमारे भीतर ही मौजूद है। स्वभाव भीतर ही मौजूद है। सुख को बाहर खोजना पड़ता है। आनंद को भी बाहर खोजना पड़ता है। सत्य की खोज में भी लोग न मालूम कहां-कहां जाते हैं। सिर्फ स्वभाव भीतर है। । स्वभाव का अर्थ : जो आप अभी हैं, इसी क्षण हैं। अगर दौड़ें न, रुक जाएं, तो उससे मिलन हो जाए। अगर दौड़ते रहें, तो उससे चूकते चले जाएं।। तीन शब्दों में लाओत्से को हम संक्षिप्त में रख लें। लाओत्से कहता है, जो खोजेगा वह खो देगा। अगर पाना है तो पाने की कोशिश मत करो। क्योंकि जो दूर है, उसे पाने के लिए चलना पड़ता है। और जो भीतर ही है, उसे पाने के लिए रुक जाने के सिवाय और कोई उपाय नहीं है। आज इतना ही। रुकें, कीर्तन करें, फिर जाएं। 192
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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