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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 'और अंतरिक्ष में फैलाव की क्षमता है दूरगामी।' यह जो फैलाव है, यह इतना दूरगामी है, इतना दूरगामी है, अनंत तक दूर चला जाता है। यह तो कठिन है समझना, आखिरी कड़ी समझना असंभव है। ___ 'यही दूरगामिता मूल बिंदु की ओर प्रतिगामिता भी है। दिस फार रीचिंग इंप्लाइज रिवर्सन टु दि ओरिजिनल प्वाइंट।' यह जो लोग फिजिक्स समझते हैं गहरे में, वे ही समझ पाएं। लाओत्से कहता है, यह जो दूर चले जाना है, यह इतने दूर चला जाता है, यह इतने दूर चला जाता है कि फिर वर्तुल बन जाता है, और यह दूर जाना पास आना हो जाता है। इतने दूर, इतने दूर, इतने दूर-फिर वर्तुलाकार हो जाता है और यह दूर चले जाना फिर पास आना हो जाता है। और जो अपने से सर्वाधिक दूर चला जाता है, वह अचानक पाता है कि अपने बिलकुल पास आ गया है। आइंस्टीन ने कहा है कि यह जो स्पेस है, सरकुलर है, वर्तुलाकार है। यह और भी कठिन मामला है। आइंस्टीन कहता है, यह जो आकाश है, यह वर्तुलाकार है। यह फैलता जा रहा है, लेकिन इससे यह मत समझना कि यह दूर ही चला जा रहा है। एक सीमा के बाद इसका फैलाव लौट पड़ता है अपनी ही तरफ, घर की तरफ, और मूल बिंदु पर आ जाता है। वापस लौट आता है। जैसे एक आदमी, आप अपने घर से निकलें यात्रा पर और अपनी नाक की सीध में चल पड़ें। आप अपने घर से प्रतिपल दूर होते जा रहे हैं। लेकिन चूंकि पृथ्वी गोल है, आपका हर कदम आपको घर की तरफ भी ला रहा है। अपने घर से आप निकल पड़े, दस कदम दूर हो गए घर से, बारह कदम दूर हो गए घर से; लेकिन चूंकि पृथ्वी गोल है, अगर आप नाक की सीध में चलते ही गए तो एक दिन अपने घर वापस लौट आएंगे। तो हर कदम जो आपको दूर ले जा रहा है, वह आपको पास भी ला रहा है-दूसरी दिशा से, दूसरे आयाम से। आकाश को आइंस्टीन कहता है, वर्तुलाकार है, सरकुलर है। तो जितनी दूर फैलता जा रहा है यह ब्रह्मांड; उतना ही पास भी आता जा रहा है। यह बड़ी हैरानी की बात है कि लाओत्से को यह खयाल आज से पच्चीस सौ साल पहले। लाओत्से कहता है, यही दूरगामिता का बिंदु प्रतिगामिता भी है, रिवर्सन टु दि ओरिजनल प्वाइंट। वापस लौटना भी है। इसका मतलब यह हुआ कि सिर्फ वे ही लोग भटक जाते हैं, जो बीच में अटक जाते हैं। या तो दूर जाएं ही मत, और या फिर इतने दूर चले जाएं कि वापस अपने पास आ जाएं। या तो घर छोड़ें ही मत, और या फिर घर छोड़ दें तो फिर रुकें ही मत। तो किसी दिन वापस घर लौट आएं। इसको ऐसा हम समझें। एक बच्चा पैदा हुआ, चला जिंदगी में। जीवन भी वर्तलाकार है। ध्यान रखें, इस जगत में सभी गतियां वर्तुलाकार हैं। गति का अर्थ ही वर्तुल है, सरकुलर है। कोई भी गति हो–चाहे तारे घूमते हों, और चाहे पृथ्वी घूमती हो, चाहे सूरज घूमता हो, चाहे स्पेस घूमती हो, चाहे ब्रह्मांड घूमता हो-सब घूमना वर्तुलाकार है। और चाहे जीवन घूमता हो, सब घूमना वर्तुलाकार है। एक बच्चा पैदा हुआ। यह बच्चा चल पड़ा जीवन में। अब यह जन्म से दूर होता जा रहा है। मौत करीब आएगी, जन्म दूर होता जा रहा है। लेकिन यह उन्हीं की दृष्टि है, जिन्हें अगले जन्म का कोई पता नहीं है। अन्यथा यह फिर जन्म के करीब होता जा रहा है। इस जन्म से शुरू हुआ, मौत की तरफ जाता हुआ दिखाई पड़ रहा है। लेकिन हर मौत नए जन्म की शुरुआत है। मरते वक्त व्यक्ति ठीक वहीं पहुंचता है, उसी बिंदु पर, जहां जन्मते वक्तं होता है। एक वर्तुल पूरा हो जाता है। हम पहले बिंदु पर वापस लौट आते हैं। 172||
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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