SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 'चूंकि वे किसी वाद की प्रस्तावना नहीं करते, इसलिए दुनिया में कोई उनसे विवाद नहीं कर सकता है।' वाद की प्रस्तावना विवाद के लिए निमंत्रण है। अगर मैं कहता हूं, यही सत्य है! तो मैं किसी न किसी आदमी के भीतर आकांक्षा पैदा कर दूंगा, जो कहे कि यह सत्य नहीं है। जगत एक संतुलन है। जब कोई दावा करता है तो प्रतिदावा तत्काल खड़ा हो जाता है। अगर कोई महावीर के पास जाए तो उनकी कोई प्रस्तावना नहीं है। महावीर से कोई विवाद करने में सफल नहीं हो पाया; क्योंकि उन्होंने जो कहा, वह वाद नहीं है। कोई आदमी आकर कहता है, ईश्वर है। तो महावीर कहते हैं, ठीक है, यह भी ठीक है। और घड़ी भर बाद कोई आदमी आकर कहता है कि ईश्वर नहीं है। तो महावीर कहते, यह भी ठीक है। महावीर कहते कि ऐसा कोई असत्य नहीं है, जिसमें सत्य का अंश न हो। और ऐसा कोई सत्य नहीं है जो मनुष्य उच्चारित करे जिसमें असत्य सम्मिलित न हो जाए। तो इसलिए महावीर कहते हैं कि मैं क्यों चिंता करूं, कोई चीज पूर्ण नहीं है इस जगत में, तो कोई कोई भी बात आकर कहे, उसमें एक अंश तो सत्य होगा ही। वह कैसा ही वाद हो, उसमें एक अंश तो सत्य होगा ही। और पूर्ण कोई चीज सत्य नहीं है; क्योंकि मनुष्य की भाषा में पूर्ण को प्रकट नहीं किया जा सकता। तो महावीर का कोई वाद नहीं है। लेकिन अनुयायी तो वाद बनाते हैं। बिना वाद के अनुयायी को बड़ी कठिनाई होगी। अगर आप महावीर के अनुयायी, जैन को कहें कि ठीक है, कोई वाद नहीं है तो चलो मस्जिद! तो फिर क्यों मंदिर जा रहे हो? तो क्यों रखे बैठे हो ये महावीर के वचन? रखो कुरान! तो क्यों करते हो नमस्कार महावीर को? चलो आज नमस्कार हो जाए राम को। तो वह कहेगा, नहीं। उसका वाद है। ये इतिहास में घटने वाली दुर्घटनाएं हैं। महावीर का कोई वाद नहीं है। लेकिन अनुयायी तो बिना वाद के नहीं रह सकता। उसको तो फासला बनाना पड़ेगा कि मैं दूसरों से अलग हूं, मेरा गिरोह अलग है। सीमा बनानी पड़ेगी। सीमा बनाने में विवाद शुरू हो जाएगा। महावीर का कोई वाद नहीं है। लेकिन मजे की बात है कि जैन दार्शनिकों और पंडितों ने जितना विवाद भारत में किया है, उतना और किसी ने नहीं किया। पक्के विवादी हैं। और एक-एक चीज की बाल की खाल निकालने में कुशल हैं। और जैन तर्क विकसित तर्क है। सच तो यह है कि जैन अनुयायियों को खूब तर्क को विकसित करना पड़ा; क्योंकि महावीर ने तर्क को बिलकुल छुआ नहीं। उनको मुसीबत में छोड़ गए। तो उसकी काफी सुरक्षा उन्हें करनी पड़ी, उन्हें काफी ईजाद करनी पड़ी। और महावीर का जो वाद ही नहीं था, उसको भी जैनों ने स्यातवाद नाम दे दिया। अब यह बड़ा उलटा नाम है। स्यात शब्द बहुत अदभुत है। वह सिर्फ पासिबिलिटी का, संभावना का सूचक है। कोई आदमी पूछता है, ईश्वर है? महावीर कहते हैं, स्यात, स्यात है। स्यात का मतलब यह है कि न तो मैं पूर्ण रूप से कहता कि नहीं है और न पूर्ण रूप से कहता कि है। स्यात का अर्थ यह है कि मैं मध्य में खड़ा हूं। स्यात के लिए अंग्रेजी में कोई शब्द नहीं है। अभी एक अमरीकन विचारक है डिबोनो; उसने एक शब्द निकाला है, वह काम का है। वह शब्द है पो। वह नया गढ़त शब्द है। भाषा में कोई शब्द है नहीं। दो शब्द हैं अंग्रेजी में: यस, नो; हां, नहीं। डिबोनो ठीक महावीर की पकड़ का आदमी मालूम होता है। वह कहता है, ये दोनों शब्द खतरनाक हैं; क्योंकि इनसे पूरा हो जाता है मामला-हां या नहीं। और जिंदगी ऐसी नहीं है। जिंदगी ऐसी नहीं है। तो वह कहता है, यस और नो के बीच में एक मिडिल टर्म-पो, पी ओ। वह कहता है, पो का मतलब शायद। आप पूछते हैं कि आपको मुझसे प्रेम है या नहीं? तो हां या न? डिबोनो कहता है, पो, स्यात। क्योंकि हजार चीजों पर निर्भर करता है, इतने जल्दी हो और न में जवाब देना खतरनाक है। हां का मतलब यह हुआ कि अब यह प्रेम जो है, एब्सोल्यूट हो गया। अगर मैं कहूं हां और घड़ी भर बाद आप पर नाराज हो जाऊं तो आप कहेंगे, कहां गया प्रेम? कहां गया वह प्रेम? हां भी गलत होगा, नहीं भी गलत होगा। जीवन में सभी चीजें रिलेटिव हैं, एब्सोल्यूट नहीं 961
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy