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अबस्तित्व और खालीपन है आधार सब का
रिएक्शन तत्काल हो जाता है। प्रतिक्रिया का मतलब होता है वह यांत्रिक है। यहां हमने बटन दबाया, बिजली जली; बटन दबाया, बिजली बुझ गई। बिजली यह नहीं कह सकती कि तुम दबाते रहो बटन, मैं थोड़ी देर से बुझती हूं। वह यांत्रिक है। एक आदमी ने गाली दी, आपके भीतर क्रोध की लपट जग गई। वह उतनी ही यांत्रिक है। एक
आदमी ने प्रेम की बात कही, आप गदगद हो गए, आपकी छाती फूल गई। वह उतनी ही यांत्रिक है। बटन कोई दबा रहा है, और आप फूल रहे हैं, सिकुड़ रहे हैं।
इसलिए चौबीस घंटे आपको कितनी मुसीबत से गुजरना पड़ता है, इसका हिसाब नहीं। कि हर कोई बटन दबा रहा है और वही आपको होना पड़ रहा है। एक आदमी ने गाली दी, और आप गए। एक आदमी ने मुस्कुरा कर देखा,
और आपकी जिंदगी में बहार आ गई। और एक आदमी ने आपकी तरफ नहीं देखा, और आपके दीए बुझ गए और सब अमावस की रात हो गई। चौबीस घंटे आपको गिरगिट की तरह पूरे समय रिएक्ट करना पड़ रहा है। आपके पास कोई आत्मा नहीं है, भीतर कोई जगह नहीं है। इसलिए सतह ही से सब चीजें लौट जाती हैं।
भीतर जगह का अर्थ होता है धैर्य। भीतर जगह का अर्थ होता है एक प्रतिसंवेदन। भीतर की जगह का अर्थ होता है कि कोई बात मेरे भीतर जाएगी तो समय लेगी, यात्रा करनी पड़ेगी उसे मुझ तक पहुंचने को।
तो लाओत्से कहता है, मुझ तक पहुंचे उसका नमस्कार, मेरे प्राणों में गूंजे। फिर उसका प्रत्युत्तर निर्मित हो, फिर मैं प्रेम से उसके प्रत्युत्तर को वापस निवेदन करूं। समय लग जाएगा।
जब हम किसी व्यक्ति के शरीर के प्रेम में पड़ते हैं, तो हमें खयाल में नहीं होता कि भीतर की स्पेस, भीतर के आकाश का भी पता कर लें, फिक्र कर लें। हम घड़े को खरीद लाते हैं, भीतर की खाली जगह को भूल जाते हैं।
रवींद्रनाथ ने एक बौद्ध भिक्षु पर एक गीत लिखा है। एक बौद्ध भिक्षु गुजरता है एक राह से और नगर की जो नगरवधू है, जो नगर की वेश्या है...।
यह वेश्या शब्द बहुत अच्छा नहीं है। पुराने लोग बहुत समझदार थे, उन्होंने शब्द दिया था नगरवधू, पूरे गांव की पत्नी। अब तो हालत बिलकुल बदल गई है। अब हालत बिलकुल बदल गई है। अब तो जो आपकी पत्नी है, वह भी निजी वेश्या है—व्यक्तिगत। अब हालत बिलकुल बदल गई है। क्योंकि अगर आज आप पश्चिम के मनोवैज्ञानिक से पूछे, तो वह कहता है, कोई फर्क नहीं है वेश्या में और पत्नी में। वह सामूहिक है और स्थिर नहीं है। कोई स्थायी लाइसेंस नहीं है उसके साथ। समय का फर्क है, रात भर के लिए उसे खरीदते हैं। पत्नी के साथ जीवन भर का सौदा है, जीवन भर के लिए खरीदते हैं। लेकिन पूरब के लोग उसे कहते थे नगरवधू।
वह नगरवधू, झांक कर उसने देखा है नीचे और इस भिक्ष को देखा है।
और स्वभावतः, संन्यासी के पास एक और तरह का सौंदर्य पैदा होना शुरू हो जाता है, जिसे गृहस्थ कभी नहीं जान पाता। उसके कारण हैं। क्योंकि संन्यासी के साथ पैदा होती है एक स्वतंत्रता, एक बंधनमुक्त अवस्था। उस बंधनमुक्तता में एक अनूठा सौंदर्य पैदा होने लगता है। संन्यासी के साथ पैदा होता है भीतर का रिक्त आकाश, एक
आत्मा। वह प्रतिक्रियाओं से अब नहीं जीता, वह अपने ढंग से जीना शुरू करता है। दूसरे उसे जीने के लिए मजबूर नहीं करते, वह अपना ही मार्ग चुनता है। वह अपना ही जीवन चुनता है। वह अपने जीवन का एक अर्थ में स्वयं नियंता और मालिक है। तो एक अनूठा सौंदर्य, एक इंटिग्रेशन, एक समग्रता उसके भीतर पैदा होनी शुरू हो जाती है। एक और ही गरिमा और गौरव, एक और ही सौंदर्य।
वेश्या ने देखा है और वह मोहित हो गई है। उसने नीचे आकर भिक्षु को कहा कि मेरे घर आज की रात मेहमान हो जाओ। भिक्षु ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा और उसने कहा, अभी तो तेरे चाहने वाले और भी बहुत होंगे। सुंदर है तू, युवा है तू। अभी मैं न भी आऊं, तो तेरी रात खाली नहीं जाएगी। किसी दिन जब तेरा कोई चाहने
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