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ताओ उपनिषद भाग २
वाला न हो और किसी दिन जब यह गांव तुझे बाहर फेंक दे-और यह गांव फेंक ही देगा और किसी दिन जब तू चिल्लाती हो और कोई आवाज का उत्तर भी देने वाला न हो, तब मैं आ जाऊंगा। वेश्या को दुख हुआ; अपमानित हुई। यह पहला मौका था। लोग उसके द्वार पर खटखटाते थे और वह इनकार करती थी। आज पहला मौका था कि उसने किसी के द्वार पर खटखटाया और इनकार हो गया। पीड़ा भारी थी। वह लौट गई।
कोई बीस वर्ष बाद, एक अंधेरी रात, और रास्ते के किनारे कोई चिल्ला रहा है जोर से। राह से गुजरता भिक्षु उसके पास जाकर रुका है। हाथ उसके चेहरे पर फेरा है, पूछा है उससे। प्यास उसे लगी है और पानी चाहिए। वह पास के गांव से जाकर पानी लेकर और एक दीया लेकर आया है। कोढ़ फूट गया है पूरे शरीर पर उस वेश्या के। वही वेश्या है। गांव ने उसे बाहर फेंक दिया है। कोढ़ी को भीतर रखने का कोई उपाय नहीं है। आज उसे कोई पानी देने को भी राजी नहीं है। उस भिक्षु ने कहा कि आंख खोल और देख, प्रभु की कृपा कि मैं अपना वचन पूरा कर सका हूं! मैं आ गया! बीस साल पहले तूने जो निमंत्रण दिया था, वह अब मुझ तक पहुंच गया। मैं आ गया हूं। और समय भी आ गया।
वेश्या ने आंखें खोली और उसने कहा कि नहीं, अब तुम न ही आते तो अच्छा था। अब आने से प्रयोजन भी क्या है? उस दिन ही आना था। उस दिन मैं युवा थी, सुंदर थी।
उस भिक्षु ने कहा, लेकिन आज, आज तुम ज्यादा अनुभवी हो, आज तुम ज्यादा ज्ञानी हो। जीवन को तुमने देखा-उसकी पीड़ा, उसके अनुभव, उसके दुख, उसका विषाद। और आज मैं समझता हूं कि तुम्हारे पास शरीर तो नहीं है, लेकिन थोड़ी आत्मा है। शरीर तो चला गया; लेकिन आज आत्मा है। उस दिन आत्मा बिलकुल नहीं थी। उस दिन शरीर ही शरीर था।
भीतर भी कुछ है, जो हमारे शरीर से विपरीत है और फिर भी संयुक्त है। शरीर की वह जो भीतर विपरीतता है, उसे अगर हम ध्यान में रख सकें, तो लाओत्से का सूत्र हमारे खयाल में आ जाए। घड़े की तो बात है समझाने के लिए। लेकिन गहरे में तो आदमी की ही बात है।
___ अस्तित्व के संबंध में वह कहता है, इसलिए वस्तुओं का विधायक अस्तित्व तो लाभकारी सुविधा देता ही है, परंतु उनके अनस्तित्व में ही उनकी वास्तविक उपयोगिता है।'
जब चीजें होती हैं, तब तो उनसे सुविधा मिलती ही है; लेकिन उनके न होने की भी एक और गहरी उपयोगिता है। जैसे जब जवानी होती है, तो जवानी का एक उपयोग है। लेकिन जब जवानी खो जाती है, तब उसके खो जाने का
और भी गहरा उपयोग है। उसके शून्य हो जाने का और भी गहरा उपयोग है। लेकिन उस उपयोग को हम जान नहीं पाते, क्योंकि हममें से बहुत से लोग सिर्फ शरीर से बूढ़े हो जाते हैं, उनकी चेतना में प्रौढ़ता नहीं उपलब्ध हो पाती। चेतना से वे बचकाने ही बने रहते हैं। इसलिए बूढ़ा आदमी भी चेतना से बचकाना ही बना रहता है।
एक मजे की बात है, बूढ़े से बूढ़ा आदमी भी जब सपना देखता है, तो सपने में सदा अपने को जवान देखता है। सदा! हजारों सपनों के अध्ययन किए गए हैं, लेकिन अब तक ऐसा सपना नहीं पकड़ा जा सका कि किसी बूढ़े आदमी ने अपने को सपने में बूढ़ा देखा हो। इसका मतलब है साफ। वासना उसकी अभी भी जवान ही अपने को मानती है। मजबूरी है कि शरीर साथ नहीं देता। मजबूरी है कि शरीर धोखा दिए जाता है। मजबूरी है कि शरीर जराजीर्ण हो गया। लेकिन भीतर, भीतर वह जो मन है, वह अभी भी अपने को जवान माने चला जाता है। सपने में तो वह जो भीतर मन मानता है, वही प्रकट होता है।
यदि कोई व्यक्ति जवानी को ही उपयोगी समझे और जब जवानी खो जाए और उसको उपयोगिता न दिखे, तो उसे निषेध का मूल्य पता नहीं चल पाया। और अगर उसे निषेध का मूल्य पता चल जाए, तो बुढ़ापा जवानी से बहुत ज्यादा सुंदर हो जाता है। क्योंकि जवानी के सौंदर्य में भी उत्तेजना तो रहेगी ही। और जहां उत्तेजना रहेगी, वहां सौंदर्य
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