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________________ ताओ उपनिषद भाग २ लूंगा कि वह भी अपमान है और आपके अपमान में भी गहरे में देख लूंगा कि वह भी सम्मान है। क्योंकि एक आदमी अगर मेरे ऊपर जूता फेंक जाए, तो यह भी अकारण वह क्यों करेगा? इतना श्रम उठाता है, तो मुझसे कुछ लगाव तो है ही। मुझसे कुछ संबंध तो है ही। और एक माला जो डाल जाता है, शायद माला सस्ती भी होती, जूता उससे थोड़ा मंहगा ही है। लगाव उसका भारी है, बेचैनी उसकी तीव्र है। वह मेरे लिए कुछ न कुछ करेगा ही। अगर मैं उसके अपमान में उसके सम्मान को भी देख लूं कि वह मेरे लिए कुछ कर रहा है, श्रम उठा रहा है, तो उसके अपमान का दंश खो जाता है। और अगर मैं सम्मान में भी देख लूं कि आज नहीं कल दूसरा पहलू भी प्रकट होगा, तो सम्मान का जो इल्यूजन है, जो भ्रम है, जो स्वप्न है, वह तिरोहित हो जाता है। और तब सम्मान और अपमान एक ही सिक्के के दो पहलू हो जाते हैं। और जिस व्यक्ति को सम्मान और असम्मान एक ही सिक्के के दो पहलू दिखाई पड़ते हैं, वह दोनों के बाहर हो गया। ___ जीवन सब दिशाओं से विपरीत से बंधा हुआ है। लेकिन जब हम एक पहलू को देखते हैं, तो दूसरे को बिलकुल भूल जाते हैं। वही भूल हमारे जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। जब हम एक को देखते हैं, तो दूसरे को बिलकुल विस्मृत कर जाते हैं। जब हम कांटे देखते हैं, तो हम फूल नहीं देखते। जब हम फूल देखते हैं, तो हम कांटे नहीं देखते। और फूल और कांटे एक ही वृक्ष पर लगे हैं। और फूल और कांटों के भीतर जो रस बह रहा है, वह एक ही रस है। वह एक ही शाखा दोनों को प्राण दे रही है। और एक ही जड़ दोनों को जीवन-दान कर रही है। और एक ही सूरज दोनों पर किरणें बरसा रहा है। और एक ही माली ने दोनों को जल दिया है। और एक ही अस्तित्व से दोनों का आगमन हुआ है। वे दोनों एक हैं गहरे में। लेकिन जब हमें फूल दिखाई पड़ते हैं, तो फूल हमारी आंखों को इस बुरी तरह छा देते हैं कि कांटों को हम भूल जाते हैं। और जितने ज्यादा आप भूलेंगे, उतने जल्दी कांटे चुभ जाएंगे, देर नहीं लगेगी। लेकिन जब कांटे चुभते हैं, तो हमें फिर चुभन ही याद रह जाती है, फूल हमें बिलकुल भूल जाते हैं। हम यह भी भूल जाते हैं कि फूलों के लगाव में ही यह चुभन हमने कमाई है। फूलों में रस लिया था, इसीलिए यह फल भी भोगा है। लेकिन जब कांटा दिखाई पड़ता है, तो फूल तिरोहित हो जाता है। हमारी दृष्टि सदा आंशिक है, पार्शियल है। आंशिक दृष्टि ही अज्ञान है। आंशिक दृष्टि गलत नहीं है। वह भी सत्य को तो देखती है, लेकिन अधूरे सत्य को देखती है। और शेष जो दूसरा हिस्सा है, वह इतना विपरीत मालूम पड़ता है कि हम दोनों में कोई संगति भी नहीं जोड़ पाते। कैसे संगति जोड़ें? जो आदमी आज गले आकर लग गया है और जिसने कहा है कि तुम्हारे सिवाय मेरा कोई भी नहीं, और तुम्ही मेरी खुशी और तुम्हीं मेरे गीत हो, हम कैसे कल्पना करें कि यही आदमी कल छाती में छुरा भी भोंक सकता है? संगति नहीं, कंसिस्टेंट नहीं मालूम होता। तर्क कंसिस्टेंसी चाहता है, संगति चाहिए। इसमें कोई संगति नहीं मालूम पड़ती। यह आदमी कैसे छुरा भोंक सकता है? यही आदमी छुरा भोंक सकता है। जीवन की जो गहराई है, वह यही है। जीवन की जो गहराई है, वह यही है। क्योंकि जिससे इतना संबंध न हुआ हो, वह छाती में छुरा भोंकने भी कभी नहीं आता। क्या आप किसी आदमी को बिना मित्र बनाए शत्रु बना सकते हैं? और क्या ऐसा हो सकता है कि मित्र तो वह छोटा रहा हो और शत्रु बड़ा हो जाए? नहीं, यह नहीं हो सकता। अनुपात! जितना मित्र रहा हो, उतना ही शत्रु हो सकता है। रत्ती भर ज्यादा शत्रु नहीं हो सकता। मैक्यावेली ने अपनी सलाह में दि प्रिंस में सम्राटों के लिए लिखा है कि जितने घनिष्ठ तुम्हारे मित्र हों, उतने ही उनसे सावधान रहना! यह सलाह तो चालाकी की है, लेकिन इसमें सत्य है। जितनी घनिष्ठ हो मित्रता, उतने ही सावधान रहना; क्योंकि उतना ही बड़ा खतरा भी निकट है। मैक्यावेली ने लिखा है कि अगर चाहते हो कि शत्रओं को 84
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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