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ताओ उपनिषद भाग २
लिया, दूसरे दिन जीसस रिसरेक्ट, फिर पुनरुज्जीवित हो जाते हैं। फिर दिखाई पड़ते हैं, फिर हैं। उनको तुम मार नहीं सकते। तब वह कथाएं जोड़ता चला जाता है। यह सिर्फ हमारी नासमझी का फल है। इस रहस्यमयी विशेषता को न समझने के कारण हमको ये सब उपद्रव जोड़ने पड़ते हैं।
एक मित्र कल ही आए थे। समझदार हैं, विचारशील हैं, मुझे वर्षों से प्रेम करते हैं। वे मुझसे कहने लगे, आप भी कुछ साईंबाबा जैसा क्यों नहीं करते? कोई एकाध चमत्कार! तो अभी लाखों लोग आ जाएं।
पर उन लाखों लोगों को बुला कर क्या करना है? उनको बुला कर भी क्या करिएगा? निश्चित ही, चमत्कार से वे जरूर आ जाते हैं। लेकिन चमत्कार से आते हैं, साईंबाबा से नहीं आते। एक भी आए, साईंबाबा के कारण आए, तो कुछ फल है। चमत्कार से आए, तो कुछ भी फल नहीं है। क्योंकि चमत्कार से जो आता है, वह आस्तिक नहीं है। आस्तिक तो वह है, जो कहता है, इस जगत में सभी कुछ चमत्कार है। इस जगत में ऐसा कुछ है ही नहीं, जो चमत्कार न हो। एक बीज वृक्ष बन रहा है, आकाश में बादल चल रहे हैं, सूरज रोज निकल रहा है, तारे हैं, आदमी हैं, पशु हैं, पक्षी हैं, हर चीज चमत्कार है। जिसको हर चीज चमत्कार नहीं दिखती, वह कहता है, हाथ में से राख निकल रही है, बड़ा चमत्कार हो रहा है! इस जगत में जहां सूरज निकल रहे हैं, चमत्कार नहीं हो रहा इस अंधे को। इसको हाथ में से जरा सी राख निकल रही है, यह कह रहा है, चमत्कार हो रहा है।
यह राख को मानने वाली जो बुद्धि है, यह बुद्धि परमात्मा की तरफ जाने वाली बुद्धि नहीं है। तो यह लाख की भीड़ तो इकट्ठी हो सकती है, लेकिन यह भीड़ मदारी के डमरू को सुन कर इकट्ठी हुई भीड़ है। इसका धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन मुसीबत है। इसलिए महावीर या बुद्ध या कृष्ण या राम या क्राइस्ट या मोहम्मद, इनके आस-पास जो कथाएं गढ़ी जाती हैं, वे सरासर झूठ हैं। वे झूठ इसलिए हैं...।
लेकिन भक्त की मजबूरी है। वह न जोड़े, तो भगवान नहीं मालूम पड़ते हैं। वह अगर न जोड़े, तो साधारण आदमी रह जाते हैं। तो उसे कहना पड़ता है कि मोहम्मद जब चलते हैं, तो कितनी ही सख्त धूप हो, एक बदली उनके ऊपर चलती है। उसे कहना पड़ता है, उसकी मजबूरी है। मजबूरी वही है, क्योंकि तर्क उसका भी नास्तिक का है, बुद्धि उसकी भी नास्तिक की है। हृदय उसके पास भी नहीं है आस्तिक का, जो कहे कि चमत्कार को क्या खोजने जाएं, इस जगत में ऐसी कोई चीज ही नहीं है जो चमत्कार न हो! कोई एकाध चीज ऐसी खोज लाएं जो चमत्कार न हो, तब मैं समझं। इस जगत में सभी कुछ चमत्कार है।
आप हैं, यह कोई छोटा चमत्कार है! आपके होने का कोई भी तो कारण नहीं है, कोई भी तो वजह नहीं है। आप न होते, तो कोई शिकायत कर सकते थे? पर आप हैं, पूरे हैं। और कभी आपको खयाल नहीं आता कि एक बड़ा चमत्कार घटित हुआ है कि मैं हूं। मेरे होने की कोई जरूरत नहीं है। मैं न होऊं, तो कुछ हर्ज नहीं होता। मैं नहीं था, तब भी दुनिया चलती थी। मेरी बिलकुल जरूरत नहीं है, फिर भी मैं हूं। और मेरा यह होना एक क्षण में अगर टूट जाए, तो मैं शिकायत नहीं कर सकता किसी से कि मुझे नहीं क्यों कर दिया। मैं हूं, तो पता नहीं, कौन कर जाता है! मैं नहीं हो जाता हूं, तो पता नहीं, कौन कर जाता है! इतना बड़ा चमत्कार प्रतिपल घटित हो रहा है आपके होने में ही, और आप जा रहे हैं कि एक हाथ से थोड़ी सी राख गिर रही है, तो भारी चमत्कार हो रहा है।
बुद्धिहीनता ही चमत्कार मालूम पड़ती है। बुद्धि की कमी से ही चमत्कार दिखाई पड़ते हैं। बुद्धि हो, तो सारा जगत ही चमत्कार हो जाता है।
फिर आस्तिक को तरकीबें खोजनी पड़ती हैं सिद्ध करने की कि राम भगवान हैं, कि कृष्ण भगवान हैं।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वे भगवान नहीं हैं। मैं यह कह रहा हूं कि यहां सभी कुछ भगवान है। यहां सभी कुछ भगवत्ता है। यहां ऐसा कुछ भी नहीं है, जो भगवान नहीं है। इसलिए अकारण इसको सिद्ध करने की कोई भी
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