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ताओ की अनुपस्थित उपस्थिति
उसकी मौजूदगी आपके लिए आत्म-निंदा बन जाएगी। उसकी मौजूदगी में आप घबड़ा जाएंगे, आपके सारे पाप आपके सामने दिखाई पड़ने लगेंगे।
इसलिए धार्मिक आदमी लोगों को समझाते रहे हैं कि वह सब तरफ से देख रहा है, उसकी हजार-हजार आंखें हैं। यह तरकीब है। उसकी आंख बिलकुल नहीं है। इसका यह मतलब नहीं कि वह अंधा है। वह बिना आंख के देख सकता है। लेकिन धार्मिक आदमी समझाता रहा है, वह सब तरफ से देख रहा है। अगर तुम चोरी कर रहे हो, तो ध्यान रखना, भला पुलिस वाला वहां न हो, मजिस्ट्रेट वहां न हो, मकान-मालिक वहां न हो, लेकिन परमात्मा वहां मौजूद है। उसकी मौजूदगी आपमें भय पैदा करवाने के लिए समझाई जाती रही है। इसलिए कहीं भी जाओ, कुछ भी करो, एक तो देख ही रहा है। हजार आंखें आप पर लगी हैं।
तो अगर सच में किसी आदमी को इस पर पक्का भरोसा आ जाए, तो पाप करना मुश्किल हो जाएगा; क्योंकि अगर हजार आंखें, सर्चलाइट की आंखें, परमात्मा की आंखें, एकदम छेद देंगी सब तरफ, एक्सरे की आंखें होंगी, हडी-हड़ी तक पार कर जाएंगी। चोरी करिएगा कैसे? एक पैसा उठा रहे हैं और हजार आंखें देख रही हैं! पसीना-पसीना हो जाएगी-शरीर नहीं, आत्मा। आत्मा पसीना-पसीना हो जाएगी। हाथ से पैसा छूट जाएगा, आप भाग खड़े होंगे।
लेकिन इस तरह जो पाप से बचा, वह पाप से बचा नहीं, सिर्फ भय में गिरा। पाप तो हो गया, दोहरा हो गया-चोरी भी हो गई और भय भी हो गया।
मैंने सुना है कि एक कैथोलिक नन बाथरूम में भी पकड़े पहन कर नहाती थी। तो उसकी और साध्वियों ने पूछा, नन्स ने, कि तू पागल हो गई है! बाथरूम में कपड़े पहन कर नहाने की क्या जरूरत है? उसने कहा, क्या तुमने पढ़ा नहीं कि परमात्मा सब जगह मौजूद है। बाथरूम में भी मौजूद है।
पर उस पागल को किसी ने बताया नहीं कि जो बाथरूम में देख सकता है, वह कपड़े के भीतर भी देख ही लेगा। अगर वह सभी जगह मौजूद है, तब तो कहीं भी नग्न होने की सुविधा है, क्योंकि वह देख ही रहा है। अब कोई उपाय नहीं।
लेकिन यह भय, फियर कांप्लेक्स को खड़ा करने की चेष्टा की गई, इसके दुष्परिणाम हुए। आदमी अच्छा नहीं बना, सिर्फ भयभीत बना। और भयभीत आदमी कभी अच्छा नहीं हो सकता। सिर्फ अभय आदमी ही अच्छा हो सकता है। लेकिन ये धर्मगुरुओं ने परमात्मा को मौजूद करने की कोशिश की, जगह-जगह मौजूद करने की कोशिश की। यद्यपि परमात्मा स्वयं बिलकुल गैर-मौजूद है, एब्सेंट है टोटली, बिलकुल गैर-मौजूद है। वह भी उसकी स्वतंत्रता का हिस्सा है। अगर वह मौजूद हो जाए, तो हम स्वतंत्र हो ही नहीं सकते, हम हो ही नहीं सकते। उसके खड़े होते ही हम परतंत्र हो जाएंगे। क्योंकि उसकी मौजूदगी ही हमारे भीतर अंतःकरण के लिए पीड़ा बन जाएगी। उसके सामने कैसे होगी चोरी? उसके सामने कैसे होगा पाप? उसके सामने कैसे होगी हिंसा? वह असंभव हो जाएगा।
इसलिए परमात्मा की अनिवार्य स्वतंत्रता का हिस्सा है उसकी गैर-मौजदगी, उसकी एब्सेंस। वह ऐसे है, जैसे है ही नहीं। क्लास लगी है और शिक्षक गैर-मौजूद है। तो जिसको जो सूझ रहा है, जिसको जो लग रहा है, वह कर रहा है। स्वतंत्र है प्रत्येक करने को। यह उसकी गहनतम रहस्यमयी विशेषता है कि वह है और गैर-मौजूद है। है और उपस्थित नहीं है। सब जगह है। रत्ती भर जगह उससे खाली नहीं है, इंच भर जगह उससे खाली नहीं है; रोएं-रोएं में, धड़कन-धड़कन में, कण-कण में वही है और फिर भी गैर-मौजूद है, और फिर भी पता नहीं चलता कि वह है भी। और लोग पूछते हैं कि क्या ईश्वर है? कहां है?
हस्सा है। अगर वह मायोकि उसकी मौजूदगी ही
उसके सामने कैसे
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