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ताओ की अनुपस्थित उपस्थिति
तो मैंने उन मित्र से पूछा कि समझ लें बुराई की सख्त मनाही है, कोई बुराई कर ही नहीं सकता। उस दुनिया से भलाई तिरोहित हो जाएगी। और उस दुनिया की शक्ल एक बड़े कारागृह की शक्ल होगी। क्योंकि जहां बुराई करने की स्वतंत्रता न हो, वहां कोई भी स्वतंत्रता नहीं हो सकती।
असल में, स्वतंत्रता में बुराई करने की स्वतंत्रता भी छिपी है। अगर मैं किसी आदमी से कहूं कि तुम्हें सिर्फ अच्छे होने की स्वतंत्रता है, तो इस स्वतंत्रता का कोई अर्थ होगा? किसी आदमी से कहूं कि तुम्हें सिर्फ अच्छे होने की स्वतंत्रता है, तो स्वतंत्रता कहना फिजूल है; कहना चाहिए, तुम्हें अच्छे होने की परतंत्रता है। तब कहना चाहिए, यू आर कंडेम्ड टु बी गुड; नॉट टु बी फ्री टु बी गुड। क्योंकि जब हम कहते हैं कि आप स्वतंत्र हैं अच्छा करने को, तो दूसरी स्वतंत्रता भी भीतर प्रवेश कर जाती है-बुरा करने की।
परमात्मा सर्वेसर्वा है, फिर भी नियंत्रण नहीं करता। इसका मतलब है कि परमात्मा निर्मित करता है, लेकिन स्वतंत्रता निर्मित करता है। परमात्मा बनाता है, लेकिन स्वतंत्रता बनाता है, परतंत्रता नहीं। इसलिए दुनिया में आदमी बुरे से बुरा होने को स्वतंत्र है-परमात्मा के होते हुए। क्योंकि इस बुरे होने की स्वतंत्रता में ही स्वतंत्रता छिपी है। और अगर स्वतंत्रता नहीं है, तो आदमी आदमी नहीं होगा, मशीन होगा। मशीन बुरा करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। हम उससे जो करवाना चाहें, करवा ले सकते हैं। इसीलिए वह मशीन है। आदमी, चैतन्य, चेतना स्वतंत्रता के बिना असंभव है।
लाओत्से कहता है कि बनाने वाला वही है, लेकिन नियंत्रण नहीं करता है। ही इज़ दि क्रिएटर, बट नॉट दि कंट्रोलर। स्रष्टा है, लेकिन जेलर नहीं है। हमारा कारागृह बना कर द्वार पर संतरी की तरह खड़ा हुआ नहीं है।
बर्टेड रसेल जैसे लोग कहते हैं कि इसी से शक होता है कि परमात्मा नहीं है और मैं आपसे कहता हूं कि इसी से प्रमाणित होता है कि परमात्मा है। क्योंकि जिस जगत में स्वतंत्रता न हो, उस जगत में परमात्मा नहीं हो सकता। स्वतंत्रता ही परमात्मा के होने का आधारभूत प्रमाण है। वह है, क्योंकि हम इतने स्वतंत्र हैं। वह है...।
इसे हम ऐसा समझें कि सागर है और मछलियां सागर में घूमती हैं। उन्हें पता भी नहीं चलता कि सागर है। लेकिन उस सागर में होने के कारण ही वे हैं। और सागर में जो भी गति हो रही है, जो भी स्वतंत्रता है उन्हें घूमने की, वह भी सागर के कारण है। सागर सूख जाए, और मछलियां शून्य हो जाएंगी, मृत हो जाएंगी। उनकी सारी स्वतंत्रता खो जाएगी। सागर ही उनके लिए जगह है स्वतंत्रता की।
परमात्मा स्वतंत्रता है। इसलिए जिन्होंने गहनतम खोज की, महावीर या बुद्ध ने, तो उन्होंने परमात्मा को मोक्ष ही नाम दिया। महावीर ने तो परमात्मा नाम का उपयोग नहीं किया, ईश्वर नाम का उपयोग नहीं किया, क्योंकि वे कहते थे कि मोक्ष पर्याप्त है। मोक्ष का मतलब होता है, दि फ्रीडम। जगत परिपूर्ण स्वतंत्रता में जी रहा है। और अगर हम गलत कर रहे हैं, तो वह स्वतंत्रता का गलत उपयोग है। और हम चाहें, तो सही कर सकते हैं। लेकिन स्वतंत्रता हमारी नियति है। इसलिए हम पाप की आखिरी सीढ़ी तक उतर सकते हैं और पुण्य के आखिरी शिखर तक चढ़ सकते हैं। नर्क तक जा सकते हैं; स्वर्ग तक जा सकते हैं। अंधेरे के आखिरी गर्त में गिर सकते हैं और प्रकाश के पूर्ण उज्ज्वल लोक में प्रवेश कर सकते हैं। ये दोनों बातें संभव हैं, क्योंकि हमारी आत्मा का आत्यंतिक स्वभाव स्वतंत्रता है।
(सार्च ने ठीक कहा है, यू कैन नॉट चूज टु बी फ्री, यू आर फ्रीडम! स्वतंत्र होना आप चुन नहीं सकते, आप स्वतंत्र हैं, आप स्वतंत्रता हैं।)
लेकिन स्वतंत्रता का मतलब ही यह होता है कि अगर मैं कारागृह पसंद करूं, तो चुन सकूँ। अगर इतनी भी तय हो बात कि मुझे कह दिया जाए कि तुम सब कर सकते हो, सिर्फ जेलखाने में नहीं जा सकते हो, तो भी मैं परतंत्र हो गया। तब यह बड़ी दुनिया मेरे लिए एक परतंत्रता हो जाएगी। स्वतंत्रता का अर्थ ही होता है पूर्ण स्वतंत्रता, दोनों तरफ जाने की पूरी सुविधा।