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ताओ की अनुपस्थित उपस्थिति
लाओत्से कहता है कि वह निर्माता, स्रष्टा, पोषक: लेकिन दावेदार नहीं है। उसने कभी घोषणा नहीं की कि मैं मालिक हूं।
असल में, वह इतना निश्चित रूप से मालिक है, इतना आश्वस्त रूप से मालिक है कि घोषणा की जरूरत नहीं पड़ी। आपको मालकियत की घोषणा करनी पड़ती है, क्योंकि आप आश्वस्त नहीं हैं। रोज-रोज घोषणा करते हैं, तो अपने लिए आश्वासन जुटा लेते हैं। कभी आपने खयाल किया कि जिस चीज के संबंध में आप आश्वस्त होते हैं, उस संबंध में आप घोषणा नहीं करते।
रामकृष्ण के पास विवेकानंद गए और विवेकानंद ने उनका हाथ पकड़ कर हिलाया और कहा कि मैं जानना चाहता हूं, ईश्वर है? विवेकानंद और लोगों से भी पूछ चुके थे यह। तर्क देने वाले, विचारशील लोग मिले थे, जिन्होंने तर्क दिए; जिन्होंने कहा, है! मैं सिद्ध करके बता सकता हूं। ज्ञानी मिले, जिन्होंने शास्त्र खोले और विवेकानंद को कहा कि देखो, यह लिखा है कि है। लेकिन विवेकानंद को आश्वासन नहीं मिला। क्योंकि जिसका परमात्मा शास्त्र में छिपा हो, उसे असली परमात्मा का कोई भी पता नहीं है। और जिसका परमात्मा तर्क में छिपा हो, उसका परमात्मा कभी भी खंडित किया जा सकता है। क्योंकि तर्क दुधारी तलवार है। जिसका सहारा तर्क पर हो, तर्क खींचते ही वह बेसहारा होकर जमीन पर गिर जाएगा।
विवेकानंद ने रामकृष्ण से भी पूछा है कि क्या ईश्वर है? रामकृष्ण ने कहा, बेकार की बातें मत पूछो; यह पूछो कि तुम्हें देखना है, जानना है, उससे मिलना है।
यह पहला मौका था कि कोई आश्वस्त आदमी सामने था। उसने यह नहीं कहा कि है, मैं सिद्ध कर दूंगा। मैं तुम्हें बताऊंगा कि है, समझाऊंगा कि है। उसने कहा कि तुम्हें मिलना हो, तो बोलो, हां या न में जवाब दो।
विवेकानंद ने बाद में कहा है कि मैंने प्रश्न पूछ कर दूसरों को झिझक में डाल दिया था। रामकृष्ण ने मुझे ही झिझक में डाल दिया। क्योंकि मैंने अभी खुद भी तय नहीं किया था कि मैं उससे मिलने को राजी हूं या नहीं हूं। मैं तो एक कुतूहलवश पूछने चला आया था। पर विवेकानंद ने कहा कि एक बात तय हो गई कि यह आदमी तर्क से नहीं जानता है, किन्हीं प्रमाणों से नहीं जानता है, बस जानता है; निपट, शुद्ध जानता है। किसी कारण से नहीं, बस जानता है। और जानने में इतना आश्वस्त है कि दूसरे से भी कहता है कि तुम्हें जानना हो, तो बोलो। यह बात इतनी आसान मालूम पड़ रही है इस आदमी को जैसे कोई कहे कि क्या बात करते हो सूरज है या नहीं! मेरा हाथ पकड़ो और चलो, बाहर निकल आओ घर के और सूरज को देख लो। इसकी चर्चा करनी ही फिजूल है कि सूरज है या नहीं; आओ, बाहर आओ और देख लो। इतनी सरलता से जो कह रहा है। पर इस कहने में एक गहन आश्वासन है।
__ जहां आश्वासन है, वहां दावा नहीं है। जहां आश्वासन नहीं है, वहां दावा है। और अगर परमात्मा भी आश्वस्त न हो, तो कौन आश्वस्त होगा? इसलिए परमात्मा ने अब तक कोई दावा नहीं किया।
लोग कहते हैं कि बाइबिल परमात्मा की किताब है, और कुरान परमात्मा की किताब है, और वेद परमात्मा की किताबें हैं। लेकिन मैं आपसे कहता हूं, परमात्मा की कोई भी किताब नहीं है। सब किताबें उन आदमियों की हैं, जिन्होंने परमात्मा की झलक पाई। क्योंकि परमात्मा कोई किताब प्रकट करे, तो अपने में बहुत हीन अनुभव करता होगा तभी। और परमात्मा घोषणा करे कि मैं हूं, तो उसे अपने होने पर शक हो तभी।
परमात्मा की कोई किताब नहीं है, क्योंकि परमात्मा का कोई वक्तव्य नहीं है। परमात्मा समझाना भी चाहे, तो किसे? कहना भी चाहे, मालिक भी बनना चाहे, तो किसका? मालिक वह है। यह मालकियत इतनी स्वाभाविक है
और इस मालकियत का कोई प्रतियोगी, प्रतिस्पर्धी भी नहीं है कि यह घोषणा पागल परमात्मा ही कर सकता है कि मैं मालिक हूं। क्योंकि ध्यान रहे, मालिक की घोषणा भी तभी करनी होती है, जब प्रतिस्पर्धी का डर होता है।
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