________________
ज के समय में आप चारों ओर नजर घुमा कर देखें और जहां-जहां भी, जीवन के किसी भी आयाम में आपको विकृति के दर्शन हों, तो आप सुनिश्चत रूप से समझ लेना कि यहां ताओ का अभाव है, यहां से ताओ विदा हो चुका है। जीवन जटिल है, जीवन विषादग्रस्त है, जीवन में हिंसा है, बलात्कार है, भ्रष्टाचार है, प्रदूषण है, कुशासन है, कुपोषण है, सांप्रदायिक वैमनस्य है, आतंकवाद है, पारिवारिक कलह है, घृणा है, तोड़-फोड़ है-ये सब स्थितियां इस बात की सूचक हैं कि हमारे जीवन में, हमारे समाज में, हमारी दुनिया में अब कहीं ताओ नहीं रहा है। यह ताओ क्या है? ताओ है प्रकृति। ताओ है सहजता। ताओ है ऋत्। निसर्ग। जीवन का सहज
स्वीकार। समग्र स्वीकार। जीवन की अखंडता। अपने में स्थित होना, अपनी सत्ता से च्युत न होना। उधार न होना स्वयं होना। अपने मौलिक रूप में होना। यह ताओ है।
संक्षेप में, बिना किसी लाग-लपेट के कहें तो ताओ हमारे जीवन की सब समस्याओं का समाधान है। इन सभी समस्याओं का मूल स्रोत हमारी अस्वाभाविकता है। स्वाभाविकता में पुनः स्थित हो गए, स्वस्थ हो गए, कि सभी समस्याएं तिरोहित हो गईं।
सामान्यतः जैसा जटिल जीवन आज हम जी रहे हैं, जैसी मनोदशा अपनी आज के मनुष्य ने बना ली है, उसमें पुनः स्वाभाविक हो जाना सरल नहीं लगता है, क्योंकि हम स्वयं जटिलता को इस कदर पकड़े हुए हैं जैसे कि बस वही जीवन है। हम सरलता और स्वाभाविकता का स्वाद भूल गए हैं।
ताओ उपनिषद पर अपने प्रवचनों के माध्यम से ओशो पुनः हमारे हाथों में ऐसे सूत्रों की संपदा देते हैं कि जिन्हें समझने मात्र से हमारा जीवन स्वतः सरलता की पगडंडियों पर लौटने लगता है और हम उस खो गए सहज आनंद का स्वाद लेने लगते हैं, जो आत्यंतिक रूप से हमारा अपना है लेकिन जटिलताओं के अनेक आवरणों में ढंक कर हमारी आंखों से ओझल हो गया था।