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________________ उद्देश्य-मुक्त जीवन, आमंत्रण भरा भाव व बमबीय मेधा अगर आप धन खोज रहे हैं, तो बहुत प्रतियोगिता होगी, क्योंकि और लोग भी धन खोज रहे हैं। अगर आप सेवा खोज रहे हैं, तो कम प्रतियोगिता होगी, क्योंकि बहुत कम लोग सेवा खोज रहे हैं। अगर आप अपने लिए ही इज्जत चाहते हैं, तो प्रतियोगिता बहुत होगी, क्योंकि प्रत्येक अपने लिए इज्जत चाहता है। लेकिन अगर आप अपने राष्ट्र के लिए, अपने धर्म के लिए, अपनी जाति के लिए प्रतिष्ठा चाहते हैं, तो प्रतिस्पर्धा बहुत कम होगी। दूसरे राष्ट्रों की प्रतिस्पर्धा होगी, आपके राष्ट्र के भीतर कोई स्पर्धा नहीं होगी। आपका अहंकार सुगमता से निर्मित हो सकता है। तो जितना बड़ा लक्ष्य हो, उतनी सुगमता है अहंकार को मजबूत होने के लिए, बड़ा होने के लिए। अहंकार उद्देश्य की भाषा बोलता है। इसलिए हम एक-एक बच्चे को अहंकार की भाषा सिखाते हैं। बच्चे तो निरुद्देश्य जीते हैं; उद्देश्य हम सिखाते हैं। अगर एक बच्चा खेल रहा है, और हम उससे पूछे, किसलिए खेल रहे हो? तो बच्चे को हमारा प्रश्न समझ में ही नहीं आता। क्योंकि किसलिए का कोई अर्थ ही नहीं है; खेलना पर्याप्त है। हम तो खेलते भी हैं, तो किसलिए भीतर होता है कि किसलिए खेल रहे हैं। बच्चा खेल रहा है, तो खेलना अपने में इतना काफी है कि खेलने के बाहर कोई लक्ष्य नहीं है। खेलना ही आनंद है। खेलने से कुछ और मिलेगा, ऐसा नहीं, खेलने में ही मिल जाएगा। खेलना ही मिलना भी है। साधन और साध्य अलग नहीं हैं, एक ही हैं। लेकिन ऐसे बच्चे को जीवन के संघर्ष में नहीं उतारा जा सकता। तो ऐसे बच्चे को हमें खेल के बाहर निकालना पड़ेगा और सोद्देश्य क्रिया में लगाना पड़ेगा। उसे पढ़ना सिखाना पड़ेगा। पढ़ना इसलिए कि कल नौकरी मिल सकेगी। और पढ़ना इसलिए कि कल धन मिल सकेगा। हमें उसके जीवन को उस पटरी पर चलाना पड़ेगा, जहां लक्ष्य सदा कल होता है और काम आज। जहां साधन और साध्य अलग हो जाते हैं। साध्य सदा भविष्य में और साधन सदा वर्तमान में। तो फिर वह लड़का कल गणित पढ़ेगा। तब वह यह नहीं कह सकेगा कि मैं आनंद ले रहा हूं। वह कहेगा कि झेल रहा हूं तकलीफ, लेकिन कल आनंद मिलेगा उस आशा में। परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं, क्योंकि परीक्षा के पार जीवन के संघर्ष में उतरने में सुविधा होगी। तो प्रत्येक बच्चे को हमें निकालना पड़ता है निरुद्देश्य जीवन से सोद्देश्य जीवन में। हमारी सारी शिक्षा की प्रक्रिया वही है। यह मजबूरी है, करना ही पड़ेगा। जीवन की जरूरत है यह। और अगर हम बच्चे को सोद्देश्य जीवन में न खींच पाएं, तो वह समाज का अंग नहीं बन पाएगा और शायद अपने को बचा भी नहीं पाएगा। शायद इस बचने की जो भयंकर प्रतियोगिता चल रही है, इसमें वह हार ही जाएगा, पराजित हो जाएगा, टूट जाएगा। इसमें वह बच नहीं सकता। इसलिए उसे खींचना पड़ेगा। यह जो सरवाइवल के लिए, बचने के लिए इतना युद्ध चल रहा है, उस युद्ध में उसको खड़े होने को भी कोई जगह नहीं है। जीसस ने अपने शिष्यों से कहा है कि क्यों तुम फिक्र करते हो रोटी की! फूलों को देखो; पक्षियों को देखो। न रोटी की चिंता है, न रोटी कमाने का कोई उपाय है; लेकिन भोजन तो मिलता है। इन खेत में खिले हुए लिली के फूलों को देखो! और खुद सम्राट सोलोमन भी अपनी श्रेष्ठतम वेशभूषा में इतना सुंदर न था। लेकिन ये न तो वस्त्र के लिए धागा बुनते हैं, न कपास उगाते हैं। फिर भी ये काफी सुंदर हैं। और निर्वस्त्र नहीं हैं। यह जीसस बिलकुल ठीक कह रहे हैं। जीसस वही बात कह रहे हैं, जो लाओत्से कह रहा है। __ लेकिन मजबूरी है। आदमी को खेत के लिली के फूलों की तरह नहीं छोड़ा जा सकता। और पक्षियों की तरह उसे अनाज भी नहीं मिल सकता। आदमी ने पशुओं के जगत से अपना संबंध तोड़ लिया है। उसने जिम्मेवारी ले ली है। उसे संघर्ष में जाना ही पड़ेगा। इसलिए यह बात सच है कि जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है, फिर भी हमें प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का उद्देश्य सिखाना पड़ता है। वह एक असत्य है, जो जीवन के लिए जरूरी है। एक नेसेसरी ईविल, एक अनिवार्य बुराई है, जो
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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