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ताओ उपनिषद भाग २
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लेकिन जिनको अपना जीवित शरीर भी परमात्मा नहीं दिखाई पड़ रहा, उन्हें पत्थर परमात्मा दिखाई पड़ेगा, यह
कैसे कहा जा सकता है ? शायद उन्हें पत्थर इसीलिए परमात्मा मालूम पड़ता है कि पत्थर में कोई वासना नहीं, कोई इंद्रिय नहीं। पत्थर बिलकुल मरा हुआ, मुर्दा है; इसलिए उनको पत्थर में थोड़ा परमात्मा शायद नजर आ जाए! लेकिन परमात्मा अगर जिंदा उनको मिल जाए, तो वे पच्चीस संदेह उठाएंगे : अरे, आप खाना भी खाते हैं ? आपको भूख भी लगती है ? सर्दी में आप ठिठुरते भी हैं? आपको भी गर्मी में पंखे की जरूरत है ?
भगवान खतम हुआ, परमात्मा विनष्ट हुआ ! हम अपने घर लौट आएंगे आश्वस्त होकर कि गलती थी बात। नाहक इस आदमी के पास गए थे!
पत्थर में कोई वासना नहीं दिखाई पड़ती, इसलिए हमको परमात्मा दिखाई पड़ता है। लेकिन जिन्होंने पत्थर की मूर्ति बनाई थी, उनका कारण दूसरा था। उनका खयाल यह था कि जब तुम्हें पत्थर में भी दिख जाएगा, तो ऐसी कौन सी जगह बचेगी जहां तुम्हें नहीं दिखाई पड़ेगा ! जीवन का सर्व स्वीकार धार्मिक व्यक्ति का पहला लक्षण है। और सर्व स्वीकार से आती है शांति । सर्व स्वीकार से आता है विश्राम। सर्व-स्वीकार से आती है बाल-सुलभ निर्दोषिता । उसी निर्दोष आंख के लिए जगत ब्रह्म हो जाता है।
आज इतना ही।
अब एक पांच मिनट हम कीर्तन में बाल-सुलभ हो जाएं और फिर विदा हों!