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शनीन व आत्मा की एकता, ताओ की प्राण-माधबा व अविकानी स्थिति
तो फिर बच्चे की भांति कोमल हो जाता है। यह कोमलता जितनी ज्यादा हो, उतना ज्यादा जीवन। यह कोमलता जितनी कम हो, उतनी ज्यादा मृत्यु। सख्त हो जाना ही मौत का दरवाजा और कोमल बने रहना ही जीवन का द्वार है। तो कोमल, जैसे कि नया-नया उगा हुआ अंकुर होता है। दिखता है कमजोर, लेकिन वही उसकी शक्ति है। बूढ़ा दिखता हो भला ताकतवर, लेकिन बच्चे से ज्यादा ताकतवर नहीं है। क्योंकि मौत करीब आती चली जा रही है। जितना सख्त होता चला जाता है, उतना मृत्यु के करीब पहुंचता चला जाता है। बच्चा बिलकुल कमजोर दिखता है, लेकिन अपनी कमजोरी में भी महा शक्तिशाली है, क्योंकि जीवन अभी उसमें फैलेगा और बड़ा होगा।
नमनीयता! लेकिन यह श्वास पर प्रयोग के बिना संभव नहीं है। और श्वास पर अगर यह संभव हो जाए, तो फिर जीवन के सभी पहलुओं पर संभव हो जाती है। और हमारी श्वास हमारे व्यक्तित्व को सब तरफ से प्रभावित करती है। आपकी श्वास आपका पूरा दर्पण है। आप श्वास के साथ क्या कर रहे हैं, उससे पता चल जाएगा कि आप अपने साथ क्या कर रहे हैं। आप कैसी श्वास लेते हैं, पता चल जाएगा, आप कैसे व्यक्ति हैं।
लाओत्से के पास कोई आता था साधना के लिए, तो लाओत्से कहता था कि एक सप्ताह मेरे पास रुक जाओ, जरा मैं देख तो लूं कि तुम कैसी श्वास लेते हो, कैसी श्वास छोड़ते हो। खोजी आया हो, अगर ज्ञानी हो, तो हैरान होगा कि हम ब्रह्मज्ञान लेने आए, सत्य का पता लगाने आए और यह आदमी कह रहा है कैसी श्वास लेते हो, कैसी छोड़ते हो। सात दिन लाओत्से देखेगा उस आदमी को अनेक हालतों में सोते में, जगते में, काम करते, चलते वक्त, क्रोध में, प्रेम में और देखेगा, उसकी श्वास की व्यवस्था क्या है। और जब तक वह श्वास की व्यवस्था न समझ ले, तब तक साधना का कोई सूत्रन देगा। श्वास के साथ ही साधना पूरी की पूरी व्यवस्थित की जा सकती है।
तो ये तीन सूत्र खयाल रखें। आपने सुना होगा जापानी शब्द हाराकिरी। हाराकिरी का हम अनुवाद करते हैं आत्मघात, स्युसाइड। लेकिन जापानी शब्द का अर्थ और ज्यादा है। हारा का अर्थ होता है केंद्र, परम केंद्र-जहां से जीवन पैदा होता है। उसी केंद्र में छुरा मार कर अगर कोई मरता है, तो उसको हाराकिरी कहते हैं। इसलिए हर कोई हाराकिरी नहीं कर सकता। आप चाहें कि हाराकिरी कर लें, तो आप नहीं कर सकते। हाराकिरी करने के लिए हारा को पहचानना जरूरी है कि वह केंद्र कहां है।
अभी मैंने आपसे कहा तांदेन, नाभि से दो इंच नीचे, अगर आप श्वास को नाभि से लेते रहें, तो धीरे-धीरे आपको नाभि से दो इंच नीचे एक जगह पर स्मरण होने लगेगा केंद्र का। वही केंद्र जब इतना स्पष्ट हो जाता है कि आपको लगता है पूरा शरीर परिधि है और वही केंद्र है, पूरा शरीर एक वर्तल है और वही केंद्र है, जिस दिन आप सोते-जागते, उठते-बैठते सतत उस केंद्र के स्मरण से भरे रहते हैं और दीए की एक ज्योति की तरह वह केंद्र आपके भीतर जलने लगता है, तब उसका नाम हारा है। और जिस व्यक्ति का वह केंद्र दीए की ज्योति की तरह जलने लगता है भीतर, उसकी फिर कोई मृत्यु नहीं है।
तो हाराकिरी का मतलब होता है, शरीर को केंद्र से तोड़ देना। तो वह ज्योति परम ज्योति में विलीन हो जाएगी।
यह जो हारा है, यह जो केंद्र है, यह आपकी बुद्धि में नहीं है। यह आपके हृदय में भी नहीं है। यह आपकी नाभि के पास है। और इसीलिए मां से बच्चे की खोपड़ी नहीं जुड़ी रहती उसके पेट में और न हृदय जुड़ा रहता है; उसकी नाभि जुड़ी रहती है। नाभि से बच्चा जुड़ा रहता है। लेकिन यह चमत्कार की बात है कि बच्चा न तो श्वास लेता मां के पेट में, न उसके हृदय में धड़कन होती, सिर्फ नाभि से मां से जुड़ा रहता है और जीवित रहता है। इसका अर्थ साफ है कि न तो हृदय अनिवार्य है जीवन के लिए और न बुद्धि अनिवार्य है जीवन के लिए। हृदय की धड़कन के बिना भी बच्चा जीवित रहता है और श्वास के बिना चले भी जीवित रहता है, लेकिन नाभि के बिना जीवित नहीं रह सकता।