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________________ धर्म है-स्वयं जैसा हो जाना आत्म-विश्वास की जरूरत क्या है? क्यों परेशानी होती है कि आत्म-विश्वास नहीं है? क्योंकि तुलना है मन में कि दूसरा आदमी अपने पर ज्यादा विश्वास करता है, वह सफल हो रहा है; मैं अपने पर विश्वास नहीं कर पाता, मैं सफल नहीं हो पा रहा हूं। वह इतना कमा रहा है; मैं इतना कम कमा रहा हूं। वह सीढ़ियां चढ़ता जा रहा है, राजधानी निकट आती जा रही है। मैं बिलकुल पीछे पड़ा हुआ हूं। पिछड़ गया हूं। आत्म-विश्वास कैसे पैदा हो? कैसे अपने को बलवान बनाऊं? क्या मतलब हुआ? आत्म-विश्वास का मतलब हुआ कि आप दूसरे से अपनी तुलना कर रहे हैं और इसलिए परेशान हो रहे हैं। आप आप हैं, दूसरा दूसरा है। अगर आप जमीन पर अकेले होते, तो क्या कभी आपको पता चलता कि आत्म-विश्वास की कमी है? अगर आप अकेले होते पृथ्वी पर, तो क्या आपको पता चलता कि मुझमें हीनता का भाव है, इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स है? कुछ भी पता न चलता। तब आप साधारण होते। साधारण का मतलब, आपको यह भी पता न चलता कि आप साधारण हैं। सिर्फ होते। जिसको यह भी पता चलता है कि मैं साधारण हूं, उसने असाधारण होना शुरू कर दिया। आप हैं, इतना काफी है। आत्म-विश्वास की जरूरत नहीं है, आत्मा पर्याप्त है। आप हैं। क्यों तौलते हैं दूसरे से? फिर दिक्कतें खड़ी होंगी। किसी की नाक आपसे बेहतर है, दीनता पैदा हो जाएगी। किसी की आंख आपसे बेहतर है, दीनता पैदा हो जाएगी। किसी की लंबाई ज्यादा है, दीनता पैदा हो जाएगी। किसी ने मकान बड़ा बना लिया, दीनता पैदा हो जाएगी। फिर हजार दीनताएं पैदा हो जाएंगी। फिर जितने लोग आपको दिखाई पड़ेंगे, उतनी दीनताएं आपके भीतर पैदा हो जाएंगी। उनका जोड़ इकट्ठा हो जाएगा। और आपकी मान्यता है कि आप हैं गौरीशंकर! अब बड़ी कठिनाई खड़ी होगी। आप हैं जगत के सबसे बड़े शिखर; और हर आदमी जो मिलता है, वह बता जाता है कि आप एक खाई हैं, एक खड्ड हैं। तो आपकी यह स्थिति कि खड़-खाई चारों तरफ और आपका यह भाव कि मैं हूं गौरीशंकर का शिखर, इन दोनों के बीच जो खिंचाव पैदा होगा, वही आदमी की बीमारी है। वही रोग है, जिसमें हर आदमी सड़ जाता है, मर जाता है, मिट जाता है। दूसरे से तौलते क्यों हैं? बोकोजू से किसी ने आकर पूछा है कि मैं शांत नहीं हूं, आप शांत हैं। मैं अशांत हूं, आप शांत हैं; मैं कैसे आप जैसा हो जाऊं? बोकोजू ने कहा, अगर मैं भी किसी से पूछता कि मैं कैसे आप जैसा हो जाऊं, तो कभी का अशांत हो गया होता। एक ही तरकीब है मेरी कि मैंने किसी से कभी पूछा नहीं कि मैं तुम जैसा कैसे हो जाऊं। मैं जैसा हूं, हूं। तुम जैसे हो, तुम हो। इनमें मैंने कभी कुछ और बदलाहट न चाही। उस आदमी ने कहा कि मुझे ऊंची बातों की जरूरत नहीं; मुझे सीधा रास्ता बता दें। आप हैं शांत, मैं हूं अशांत; मैं शांत कैसे हो जाऊं? बोकोजू ने कहा, तू रुक; जरा लोग चले जाएं, तो तुझे बताऊं। फिर लोग आए, गए; दिन बीत गया, सांझ होने लगी। उस आदमी ने कहा, अब तो बहुत देर भी हो गई; अब जल्दी मुझे बता दें। बोकोजू उसे लेकर बाहर आया और उसने कहा कि देख, मेरे मकान के पीछे एक छोटा वृक्ष है और एक बड़ा वृक्ष है। वर्षों हो गए मुझे इस मकान में रहते, मैंने कभी छोटे वृक्ष को बड़े वृक्ष से पूछते नहीं देखा कि तू बड़ा है, मैं छोटा हूं; मैं बड़ा कैसे हो जाऊं? इसलिए बड़ी शांति है। बड़ा बड़ा है, होगा बड़ा; छोटा छोटा है। और यह भी हम आदमी सोचते हैं कि यह छोटा है और यह बड़ा है। छोटे को छोटे होने का पता नहीं है; बड़े को बड़े होने का पता नहीं है। इसलिए बड़ा सन्नाटा है; कभी कोई विवाद नहीं, कोई संघर्ष नहीं, कोई उपद्रव नहीं। मैं मैं हूं, तू तू है। और यह तू छोड़ दे खयाल कि तू दूसरे जैसा कैसे हो जाए। वह आदमी बोला कि कैसे छोड़ दूं? मैं बहुत अशांत हूं! बोकोजू ने कहा कि तेरी अशांति का कारण मैं तुझे बता रहा हूं। दूसरे से जो अपने को तौलेगा, वह अशांत रहेगा ही। 379
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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