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ताओ उपनिषद भाग २
करने में ही पूरा हो गया है। कोई हिसाब लेकर हम आगे नहीं चलते। जो क्षण बीत गया, उसके साथ हमारे सब संबंध समाप्त हो गए। कोई सौदा बाकी नहीं रहा है। उस क्षण में कुछ ऐसा नहीं है, जो अगले क्षण में हम मांग करें।
सांसारिक आदमी सौदा कर रहा है। इसलिए जो भी आदमी सौदा कर रहा है, वह संसार में है। वह स्वर्ग का सौदा है कि मोक्ष का, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। आध्यात्मिक आदमी सौदा नहीं कर रहा है। जी रहा है एक-एक क्षण को उसकी समग्रता में।
तो लाओत्से कहता है, वासनाओं को क्षीण करो। क्योंकि वासनाएं तुम्हें कभी सौदे की दुनिया के ऊपर न उठने देंगी। तब तुम कुछ भी करोगे, किसी दृष्टि से करोगे कि क्या मिलेगा?
उमर खय्याम से कोई पूछता है कि तुमने इतने गीत गाए-किसलिए? तो उमर खय्याम कहता है, पूछो जाकर, वह जो फूल खिला है गुलाब का, उससे—किसलिए? पूछो रात में उगे हुए तारों से-किसलिए? पूछो हवाओं से कि तुम इतने-इतने जन्मों से बह रही हो-किसलिए?
प्रकृति में कहीं कोई प्रयोजन नहीं है। सिर्फ आदमी की वासना को छोड़ कर कहीं कोई प्रयोजन नहीं है; कहीं कोई परपज नहीं है। और आदमी में तो दो ही तरह के लोग परपजलेस, प्रयोजनमुक्त होते हैं। एक जिनको हम पागल कहते हैं; और एक जिनको हम परमहंस कहते हैं। एक जिनको हम कहते हैं कि इनकी बुद्धि डगमगा गई; एक जिनको हम कहते हैं कि ये बुद्धि के पार चले गए। इसलिए पागलों में और परमहंसों में थोड़ी सी समानता होती है। कोई एक गुणधर्म बराबर होता है। और वह गुणधर्म है परपजलेसनेस, प्रयोजनरिक्तता।
लाओत्से कहता है, छोड़ो स्वार्थपरता, छोड़ो प्रयोजन, छोड़ो सौदा, छोड़ो वासना, तो तुम स्वयं के सहज स्वभाव को आलिंगन कर सकोगे, अपने में प्रतिष्ठित हो सकोगे। और इस प्रतिष्ठा के अतिरिक्त कहीं कोई धर्म नहीं है।
लेकिन हम तो बड़ी से बड़ी चीज को भी एक ही भाषा में सोचते हैं। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, ध्यान से क्या मिलेगा? पहली बात, ध्यान से क्या मिलेगा?
उनको क्या कहूं कि ध्यान से क्या मिलेगा? एक ही उत्तर सही हो सकता है कि ध्यान से ध्यान मिलेगा। मगर यह बेकार है। यह तो टोटोलाजी मालूम पड़ेगी। इससे क्या हल हुआ? वे फिर पूछेगे कि ध्यान से जो ध्यान मिलेगा, उससे क्या मिलेगा? वे कोई नगद रुपए में चाहते हैं उत्तर कि यह मिलेगा।
इसलिए महर्षि महेश योगी की बात पश्चिम में काफी लोगों को प्रभावित की। क्योंकि उन्होंने बहुत नगदी उत्तर दिए। उन्होंने कहा, धन भी मिलेगा, स्वास्थ्य भी मिलेगा, सफलता भी मिलेगी। फिर अमरीका को जंची बात, सौदा बिलकुल साफ है। ध्यान से धन भी मिलेगा, सफलता भी मिलेगी। जो भी करोगे, उसी में सफल हो जाओगे। तब फिर इसको बाजार में बेचा जा सकता है।
लाओत्से जैसे आदमियों को बाजार में नहीं बेचा जा सकता। उनसे पूछो, क्या मिलेगा? तो वे कहेंगे कि अभी तुम इस योग्य भी नहीं कि तुम्हें उत्तर दिया जाए। तुम पूछ क्या रहे हो? तुम पूछ रहे हो, प्रेम से क्या मिलेगा? तो तुम प्रेम के संबंध में उत्तर पाने के भी अधिकारी नहीं हो। तुम जाओ और कौड़ियां बीनो और इकट्ठी करो। जो आदमी पछता है कि प्रेम से क्या मिलेगा, उसको उत्तर देना चाहिए? और क्या उत्तर वह समझ पाएगा? और क्या उत्तर का कोई भी अर्थ निकल पाएगा? व्यर्थ होगा।
लोग पूछते हैं, ध्यान से क्या मिलेगा? प्रार्थना से क्या मिलेगा? धर्म से क्या मिलेगा? उन्हें पता ही नहीं है कि जब कोई व्यक्ति मिलने की भाषा छोड़ता है, तभी धर्म में प्रवेश होता है। जब तक वह पूछता है, क्या मिलेगा, क्या मिलेगा, क्या मिलेगा, तब तक वह संसार में दौड़ता है।
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