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________________ आध्यात्मिक वासबा का त्याग व सरल स्व का उदघाटन अभी बना लेता हूं। महल में कब रहूंगा, पता नहीं; मन में अभी रहना शुरू कर देता हूं। वासना फासले को दूर करने का उपाय है। वासना मेरे और मेरी इच्छा का जो लक्ष्य है, उसके बीच सेतु बनाना है। यद्यपि सेतु इंद्रधनुष का सेतु है। दिखता भर है, बनता कभी भी नहीं। तो जो वासना से भरा है, वह कभी स्वयं में नहीं ठहर सकता। वह हमेशा कहीं और, कहीं और, कहीं और .होगा-समव्हेयर एल्स। सिर्फ स्वयं में नहीं हो सकता, और कहीं भी हो सकता है। जहां वासना होगी, वहीं दौड़ा हुआ होगा। अगर कोई वासना न हो, तो आप खड़े हुए होंगे, अपने में होंगे, स्वस्थ होंगे, स्वयं में स्थित हो जाएंगे। अगर आपको कुछ भी पाना नहीं है, एक क्षण को भी ऐसी स्थिति आ जाए कि कुछ पाना नहीं है, तो आप दौड़े कहां होंगे? आप ठहर गए होंगे। वह स्थिति ही समाधि है। वासना है अपने से बाहर दौड़ना। इसलिए निर्वासना स्व-ज्ञान का अनिवार्य आधार है। लाओत्से कहता है, 'वासनाओं को क्षीण करो।' लेकिन हमें बहुत घबड़ाहट होगी। वासना बदलने को कोई कहे, हम राजी हैं। कोई कहे, छोड़ो, पृथ्वी की स्त्रियों में क्या रखा है? स्वर्ग में अप्सराएं हैं! चित्त बहुत प्रफुल्लित होता है। लेकिन स्त्रियों की जगह अप्सराएं रखना जरूरी है। क्या पी रहे हो यहां साधारण सी शराब? बहिश्त में झरने हैं शराब के! नहाओ, धोओ, डूबो, जो भी करना है, करो। और ध्यान रहे, अगर झरनों में पीना है बहिश्त के, तो यह चुल्लू-चुल्लू पीना छोड़ना पड़ेगा। यह सौदा है। जो चालाक हैं, वे इस सौदे के लिए तैयार हो जाते हैं। इसलिए कई दफे मैं देखता हूं कि शराबी भी कई दफे भोला दिखाई पड़ता है, लेकिन साधु उतना भोला नहीं दिखाई पड़ता। हैरानी की बात है, होना नहीं चाहिए ऐसा। लेकिन शराबी में एक भोलापन दिखाई पड़ता है। नासमझ है, हिसाब का बिलकुल पता नहीं है कि क्या कर रहा है। बहिश्त के चश्मे छोड़ रहा है और यहां क्यू लगा कर शराबघर के सामने खड़ा है। जो होशियार हैं, वे यहां क्यू नहीं लगा रहे हैं। वे माला फेर रहे हैं। वे तैयारी कर रहे हैं कि जब कूदना ही है, तो झरने पर ही कब्जा कर लेंगे। यह क्या छोटे-छोटे...। __ मगर यह सौदा है। और सौदे का धर्म से कोई भी संबंध नहीं है। सौदे की वृत्ति ही स्वार्थ है। और सौदे में वासना छिपी ही हुई है। किसलिए कर रहे हैं पूजा? किसलिए कर रहे हैं ध्यान? किसलिए कर रहे हैं त्याग? किसलिए कर रहे हैं दान? अगर आपके पास कोई भी उत्तर है कि इसलिए, तो आपकी वासना शेष है। अगर आप कहते हैं कि कोई कारण नहीं है; कोई कारण नहीं है, आगे पाने के लिए कोई सौदा नहीं है। लेकिन प्रार्थना करना अपने आप में ही पर्याप्त आनंद है। आगे कोई पाने की बात नहीं है। प्रार्थना ही आनंद है। देने में सुख है। देने से सुख मिलेगा, तो वासना है। और देने में सुख है, तो धर्म है। देने से सुख मिलेगा कभी, तो सौदा है। और देना ही सुख है। और आगे कोई लेन-देन नहीं है। इससे हम कोई हिसाब न रखेंगे कि इतना हमने दिया। इससे हम किसी स्वर्ग का आयोजन नहीं करते। और अगर कल नरक में भी डाल दिए जाएंगे, तो हमारे मन में शिकायत न होगी कि मैंने इतना दिया था और मुझे नरक? दिया था, उसका आनंद देने में ही मिल गया है। हिसाब चुकता हो गया। प्रार्थना की थी; जो प्रार्थना से मिल सकता था, उसी क्षण मिल गया है। और जिसको उस क्षण नहीं मिला है, उसे कभी नहीं मिलेगा। क्योंकि इस जगत में प्रत्येक कार्य का कारण साथ ही जुड़ा हुआ है। अभी हाथ आग में डालूंगा, अभी जल जाऊंगा। अभी नहीं जला हूं, तो कभी नहीं जलूंगा। प्रार्थना अभी की है, तो जो आनंद बरसना था, वह प्रार्थना करने में ही बरस गया। उस प्रार्थना के कृत्य के बाहर कोई उपलब्धि नहीं है। अगर कोई उपलब्धि की धारणा है, तो प्रार्थना भी एक वासना है। इसे जरा कठिन होगा समझना। और अगर उपलब्धि की कोई धारणा नहीं है, तो प्रत्येक कृत्य प्रार्थना हो जाता है। प्रत्येक कृत्य 369
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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