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________________ सिद्धांत व आचरण में नहीं, सरल-सहज स्वभाव में जीना इमर्सन ने कहीं कहा है कि चीजों का मूल्य तो हमें बिलकुल पता नहीं, सिर्फ कीमत पता है। वी डोंट नो दि वैल्यू, वी ओनली नो दि प्राइस। कीमत का मतलब होता है, इतनी उपयोगी है, इसलिए कीमत है। मूल्य का अर्थ होता है कि है अपने में एक विशिष्टता, एक खिलावट जीवन की, एक अस्तित्व के फूल का खिल जाना—वह उसका मूल्य है। . अगर हम बुद्ध की कीमत लगाने जाएं, तो आइंस्टीन से कम लगेगी-कीमत, प्राइस। अगर दोनों को बेचना हो, तो बुद्ध को कौन खरीदेगा? आइंस्टीन को कोई भी खरीदेगा। क्योंकि आइंस्टीन की उपयोगिता है, एटम बम बना सकता है। यह बुद्ध को और उपद्रव बांध लेंगे। बन भी जाए, तो उसको काम में लाने में बाधा डालेंगे। इनको कोई खरीदेगा नहीं। आइंस्टीन की कीमत है। बुद्ध को तो तभी खरीदा जा सकता है, जब लोग मूल्य को समझते हों, वैल्यू को प्राइस को नहीं। तब तो बुद्ध की खिलावट, उनका खिल जाना मूल्य है कि एक खिला हुआ आदमी है। आइंस्टीन, तो आइंस्टीन एक साधारण आदमी है। उपयोगिता को हटा दें, तो आइंस्टीन उतना ही साधारण है जितना कोई और। कोई और मूल्य नहीं है। वह क्या कर सकता है, उसमें मूल्य है। वह क्या है, इसमें मूल्य नहीं है। होने के मामले में तो दीन है; करने के मामले में वह कुछ कर सकता है। बुद्ध होने के मामले में बड़े समृद्ध हैं! करने के मामले में, करने का कोई सवाल ही नहीं है। वह न-करने में ठहर गए हैं। लाओत्से कहता है, चूंकि निष्क्रियता परम स्थिति है, इसलिए करने का मूल्य कम करो और होने का मूल्य बढ़ाओ। जोर मत दो कि तुम क्या करते हो, जोर दो कि तुम क्या हो। इसकी फिक्र छोड़ो कि एक आदमी ने क्या-क्या किया; इसकी फिक्र करो कि एक आदमी क्या है। और उसका होना अपने आप में मूल्यवान है, किसी और कारण से नहीं। अब बुद्ध को अगर हम कोई भी कारण से सोचें, तो मूल्य, कीमत के अर्थों में, हम कहां खोज पाएंगे? कहीं नहीं मिलेगा। लेकिन फिर भी ऐसा लगेगा कि हजार आइंस्टीन न हों और एक बुद्ध हों। क्यों ऐसा लगता है ? इस लगने में क्या बात है? यह बुद्ध का होना इंटैिजिक वैल्यू है, आंतरिक मूल्य है। इसका बाजार में कोई मूल्य नहीं लग सकता। ऐसी मजेदार घटना घटी। फरीउद्दीन अत्तार एक सूफी फकीर था। हमला हुआ और अत्तार को पकड़ लिया गया। तैमूर के लोगों ने अत्तार को बंद कर दिया। और जब अत्तार को वे बंद कर रहे थे हथकड़ियों में, तब राह से गुजरते एक आदमी ने पहचान लिया कि यह अत्तार है। अत्तार बड़ा अदभुत आदमी था। अत्तार उसका नाम ही इसलिए पड़ गया था। एक तो इसलिए कि वह-सूफी फकीर ऐसा करते हैं कि अपने को छिपाने के लिए कुछ काम कर लेते हैं तो वह इत्र बेचने का काम करता था। वह छिपाने के लिए, ताकि किसी को अकारण पता न चले कि वह क्या है। इतना ही जानें कि अत्तार है-इत्र बेचने वाला है। लेकिन जो उसे जानते थे, वे जानते थे कि वह इत्र है। वह सब फूल वगैरह के बाहर, आखिरी जो निचोड़ बच जाता है जीवन का, वही है। __ वह आदमी पहचान गया कि यह तो फरीउद्दीन अत्तार है। तो उसने जाकर, जो लोग उसे कैद कर रहे थे, उनसे कहा कि मैं एक हजार दीनार, एक हजार सोने के सिक्के अभी देता हूं, इस आदमी को छोड़ दो। छोड़ने को वे तैयार हो गए। एक हजार स्वर्ण के सिक्के मिल रहे थे एक साधारण आदमी के। अत्तार ने कहा, ठहरो! अगर तुम ठहरे, तो ज्यादा कीमत भी मिल सकती है। उन्होंने सोचा कि जब एक आदमी अचानक आकर एक हजार दे रहा है, ज्यादा देने वाले भी मिल सकते हैं। उस आदमी ने कहा कि मैं पांच हजार दे देता हूं, तुम छोड़ दो इस आदमी को। मैं दस हजार दे देता हूं...। लेकिन जैसे वह कीमत बढ़ती गई, वैसे उन्होंने समझा कि यह आदमी कोई साधारण नहीं है। 351
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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