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सिद्धांत व आचरण में बही, सरल-सहज स्वभाव में जीना
सारी दुनिया में बौद्ध मांसाहारी हैं। और कुल कारण इतना है-यह एक छोटी सी घटना कारण बनी। क्योंकि बुद्ध ने कहा कि न तो इस भिक्षु ने किसी को मारा है-मारा होता तो हिंसा होती-इसने न तो मारा है, न चील से यह मांगने गया था। यह संयोग है। तो बौद्ध भिक्षु मांगते नहीं हैं मांस; लेकिन आप डाल दें, तो मजे से स्वीकार करते हैं। मजे से स्वीकार करते हैं। . आदमी विपरीत सिद्धांत को अगर झूठा बना ले, तो रास्ते निकाल लेता है। रास्ते निकालने में कोई कठिनाई नहीं है। नीचे असली आदमी चलता चला जाता है; ऊपर एक झूठा आदमी चलता चला जाता है। यह झूठा आदमी अच्छा आदमी होता है। इसकी सब आशाएं भविष्य में होती हैं। असली आदमी अभी होता है; उसके सब काम वर्तमान में होते हैं। और इन दोनों के बीच धीरे-धीरे इतना फासला हो जाता है कि आपके अच्छे आदमी को ही आपके झूठे आदमी की कोई खबर नहीं रह जाती। आप भूल ही जाते हैं कि आपके नीचे असली आदमी छिपा हुआ है। और वही असली आदमी आप हैं।
लाओत्से कहता है, विपरीत का निर्माण मत करो। तुम जो हो उसी को जानो, उसी में जीओ। और यह बहुत गहन सूत्र है। अगर मैं अपनी हिंसा में जीऊं और अहिंसा का सिद्धात निर्मित न करूं, तो एक दिन मैं अहिंसक हो जाऊंगा। अगर मैं अपने क्रोध में जीऊं और अक्रोध का सिद्धांत निर्मित न करूं, तो क्रोध ही मुझे बदल डालेगा। अगर मैं अपनी कामवासना में जीऊं और ब्रह्मचर्य की कोई धारणाएं न बनाऊं, तो मेरी कामवासना ही मुझे बदल जाएगी। जो गलत है, जो दुखदायी है, जो पीड़ा है, उसमें ज्यादा देर रहा नहीं जा सकता। वह आग है। उसमें हम जलेंगे, झुलसेंगे, अनुभव से सीखेंगे और किसी दिन छिटक कर बाहर हो जाएंगे।
लेकिन एक आदमी कीचड़ में खड़ा है, कांटों में खड़ा है, गंदगी में खड़ा है। अगर इसकी आंखें नीचे लगी रहें-गंदगी देखे, कीचड़ देखे, मक्खी हैं, मच्छर हैं, बदबू आ रही है-कितनी देर खड़ा रहेगा? लेकिन यह आदमी एक तरकीब कर सकता है। यह आंखें आकाश की तरफ उठा ले, चांद-तारों का चिंतन करे, भूल जाए नीचे की कीचड़, चांद-तारों में जीने लगे, तो यह जिंदगी भर खड़ा रह सकता है इस कीचड़ में। क्योंकि कीचड़ नहीं है दुखदायी, कीचड़ का बोध दुखदायी है। हिंसा नहीं है दुखदायी, हिंसा की प्रतीति। क्रोध नहीं है दुखदायी, क्रोध की प्रतीति, क्रोध का अनुभव, क्रोध की आग, उसका अहसास।
लाओत्से कहता है, जो है, उसमें ही जीएं। वह अपने से तिरोहित हो जाएगा। क्योंकि अगर वह गलत है, तो बदल जाएगा; अगर सही है, तो बदलने का कोई सवाल नहीं है।
इसलिए लाओत्से कहता है, 'छोड़ो मानवता को, न्याय को हटाओ; और लोग अपनों को पुनः प्रेम करने लगेंगे। चालाकी छोड़ो, उपयोगिता को हटाओ; और चोर तथा लुटेरे अपने आप ही लुप्त हो जाएंगे।'
चालाकी छोड़ो, उपयोगिता को हटाओ! ये दो बातें भी समझ लेने जैसी हैं।
बड़े मजे की बात यह है कि जब चालाकी आदमी किन्हीं ऐसे कामों में करता है जिन्हें हम बुरा कहते हैं, तब तो हम उसे चालाकी कहते हैं; और वही काम अगर वह उन कामों में करे जिन्हें हम अच्छा कहते हैं, तो फिर हम चालाकी नहीं कहते। फिर हम उसे बुद्धिमानी कहते हैं, होशियारी कहते हैं। यह भी चालाकी का ही एक हिस्सा है। जैसे, चालाकी का अर्थ यह है कि जो भी मैं करूं, वह परिणाम के ध्यान से करूं।
चालाकी का अर्थ क्या होता है? कनिंगनेस का मतलब क्या है?
रास्ते पर आप मिले। अगर मैं नमस्कार भी करूं, तो परिणाम को ध्यान में रख कर करूं कि इस नमस्कार से क्या मिलेगा? यह आदमी किस मिनिस्टर का रिश्तेदार है? या रिश्तेदार का रिश्तेदार है? कहां तक इसकी पहुंच है? या इससे क्या काम निकालना है? इससे क्या मिलेगा? एक नमस्कार भी कैलकुलेशन है, गणित है।
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