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________________ सिद्धांत व आचरण में नहीं, सरल सहज स्वभाव में जीना 343 हुई थी। लीह ने मुकदमा सुना; जिसने चोरी की थी, उसे छह महीने की सजा; और जिसके घर चोरी हुई थी, उसे भी छह महीने की सजा दे दी । अमीर तो बौखला गया। उसने कहा कि लीहत्जू, तुम पागल तो नहीं हो ? न्याय की कुछ बुद्धि भी है? कभी सुना है ऐसा अन्याय ? और अभी पहले ही दिन तुम बैठे हो न्यायाधीश के पद पर और यह तुम क्या कर रहे हो ? सम्राट से शिकायत करूंगा, यह तुम मजाक कर रहे हो! छह महीने की सजा मुझे भी, जिसकी चोरी हुई? लीहत्जू ने कहा कि तुमने इतना पैसा गांव में इकट्ठा कर लिया कि अब चोर तुम्हारे कारण पैदा होंगे ही। तुम जब तक हो, तब तक चोरी नहीं रुक सकती । और जुर्मी तुम पहले हो; यह तो नंबर दो है। न तुम इतना धन इकट्ठा करते, न यह आदमी चोरी करता। इसकी चोरी में तुम्हारा हाथ है, तुम साझेदार हो। तुम दोनों पार्टनर हो । आधा काम तुमने किया है, आधा इसने किया है। इसलिए मैं तो जड़ से ही अन्याय मिटाऊंगा। अन्याय मिटाने को हम न्याय कहते हैं, लीहत्जू ने कहा । • लेकिन सामान्य न्याय यह होता कि चोर को छह महीने की सजा मिलनी थी, साहूकार को नहीं। यह न्याय होता, जो कि हर अदालत में हो रहा है। लाओत्से कहता है, छोड़ो यह न्याय ! क्योंकि तुम सिर्फ अन्याय छिपा रहे हो। तुम्हारी सब अदालतें, तुम्हारे सब कानून, तुम्हारी सब विधान सभाएं बड़े महत्वपूर्ण, सदा से चलने वाले ऐतिहासिक अन्यायों पर पर्दा डालने के उपाय से ज्यादा नहीं हैं। और उस अन्याय के कारण जो और अन्याय पैदा हो रहे हैं, उनको तुम रोके चले जा रहे हो। लेकिन मूल अन्याय नष्ट नहीं होता । लीहत्जू को सम्राट के सामने जाना पड़ा । सम्राट ने कहा, ऐसा न्याय हमने भी कभी नहीं सुना। तुम जैसे आदमी को मैं अपना न्याय मंत्री नहीं रख सकता; क्योंकि आज नहीं कल तुम मुझे सजा दे दोगे। सारी व्यवस्था की बात है। और अगर यह साहूकार जुर्मी है, तो मैं कितनी देर तक जुर्म के बाहर रहूंगा? लीहत्जू ने कहा कि महाराज, यही आपको स्मरण दिलाने के लिए यह सजा दी है। हम सब अपराधी हैं। लेकिन बड़े अपराधी बच जाते हैं, छोटे अपराधी फंस जाते हैं। बड़े अपराधियों के हाथ में सारी व्यवस्था है; छोटे अपराधियों के हाथ में व्यवस्था नहीं है। इसलिए बड़े अपराधियों के विपरीत जो भी चलता है, वह फंस जाता है। लीहत्जू ने कहा कि मैं तो न्याय ऐसा ही करूंगा। चाहें तो रहूं, अन्यथा बाहर हो जाऊं। क्योंकि जिसको आप न्याय कहते हैं, मेरे गुरु ने सिखाया है कि वह तो न्याय नहीं है । वह न्याय छोड़ो। इसे ऐसा हम समझें कि हमारी बहुत अच्छी-अच्छी धारणाओं के नीचे बड़े गहन पाप छिपे हुए हैं, जो हमें दिखाई ही नहीं पड़ते। दिखाई न पड़ने का कारण है, हम अभ्यस्त हो गए हैं। वे इतने पुराने हैं और इतने प्राचीन हैं और इतने परंपरागत हैं और उनकी आदत इतनी गहरी हो गई है कि वे हमें दिखाई नहीं पड़ते। वे हमें दिखाई नहीं पड़ते; हम उनके प्रति बिलकुल ही बेहोश की तरह जीए चले जाते हैं। हमारे खून और हड्डी में वे मिल गए हैं। अगर कोई हमें बताए, तो हमें बहुत हैरानी होती है कि यह क्या बात है! अगर यह लीहत्जू कहे कि छह महीने की सजा उसको भी जिसके यहां चोरी हुई है, तो हमें बहुत चौंकाने वाली बात मालूम पड़ती है। लेकिन क्या सच में ही यह चौंकाने वाली बात है ? या सिर्फ हमारी एक आदत हो गई है? इसमें चौंकाने वाला क्या है? यह बात तो गहरे में ठीक ही है। लेकिन हमारी धारणा में उसके लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए बात एकदम चौंकाने वाली मालूम पड़ती है। आस्कर वाइल्ड ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैंने जिंदगी में बहुत तरह से लोगों को चौंकाने के उपाय किए, लेकिन सबसे ज्यादा लोग तभी चौंकते हैं, जब तुम कोई सत्य कह दो। बड़े से बड़ी झूठ भी इतना नहीं चौंकाती क्योंकि लोग अभ्यस्त हैं; लेकिन सत्य बहुत चौंकाता है।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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