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सिद्धांत व आचरण में बही, सरल-महज स्वभाव में जीना
लेकिन सिद्धांत हमें अंतिम कदम को पहले पकड़ा देते हैं। हम सबके मन में ऊंचे शब्द हैं। और लाओत्से दुश्मन है शब्दों का। हम सबके मन में बड़े अच्छे सिद्धांत हैं। सिद्धांतों की कोई कमी नहीं है हमारे मन में। हम नरक में हों भला, हमारे पास स्वर्ग के शब्द हैं। और हम इन शब्दों को जोर से पकड़ते हैं। क्योंकि हमें डर भी लगता है कि अगर ये शब्द भी हम से छूट गए, तो नरक, जिसमें हम खड़े हैं, वह साफ-साफ दिखाई पड़ने लगेगा। नरक दिखाई उ पड़े, इसलिए हम स्वर्ग के शब्दों की चर्चा में तल्लीन रहते हैं। नरक को भुलाने के लिए हम शब्दों का जाल बिछाए हुए हैं अपने चारों तरफ। नरक में खड़े हुए ईश्वर की बातें करते रहते हैं। वे ईश्वर की बातें सिर्फ भुलावा हैं।
लाओत्से कहता है, छोड़ो इन शब्दों को! छोड़ो यह ज्ञान, छोड़ो ये शास्त्र! अगर प्रेम नहीं है जीवन में, हर्ज नहीं कोई; लेकिन मनुष्यता को प्रेम मत करो।
यह बहुत मजे की बात है, और गहरी है। आदमी बिना प्रेम किए तो रह नहीं सकता। अगर उसे पता चल जाए कि मनुष्यता को मैं प्रेम कर नहीं सकता और मनुष्य को मैं प्रेम कर नहीं पाता हूं, तो उसके जीवन में पहली दफा क्रांति शुरू होगी। एक इतनी बेचैनी शुरू होगी, एक ऐसा संताप शुरू होगा कि उस संताप से ही, उस अग्नि से ही रूपांतरण हो जाएगा। लेकिन एक आदमी पड़ोसी को तो प्रेम कर नहीं सकता, कर नहीं पाता, ईश्वर को प्रेम करता रहता है। तो खाली जगह पैदा नहीं होती, जिसमें क्रांति हो जाए। ऐसा लगता है कि प्रेम तो कर रहा हूं। अगर यह पता चल जाए कि ईश्वर को प्रेम मैं कर कहां सकता हूं! कर सकता हूं पड़ोसी को, और पड़ोसी को कर नहीं पाता हूं।
इसे थोड़ा ठीक से समझें। अगर पड़ोसी को प्रेम करना हो, तो आपको अपने को बदलना पड़ेगा। ईश्वर को प्रेम करना हो, तो कुछ भी बदलने की जरूरत नहीं है। अगर मनुष्यता को प्रेम करना हो, तो आप जैसे हैं, वैसे ही योग्य हैं। कोई शर्त नहीं है, कोई पात्रता नहीं है। एक छोटे से बच्चे को प्रेम करें, और आपको बदलना पड़ेगा। एक छोटे से बच्चे का प्रेम से हाथ हाथ में ले लें, और आपकी पूरी जिंदगी आपको बदलनी पड़ेगी। आप वही आदमी नहीं हो सकते। प्रेम आग है; वह आपको बदल ही डालेगी। और अगर कोई प्रेम आपको नहीं बदल रहा है, तो उसका मतलब यह है कि आप सिर्फ खयाल में हैं; कोई प्रेम नहीं है।
लाओत्से कहता है, हटाएं बड़े शब्दों को। मानवता, ईश्वर, विराट-हटा दें। अनुभव करें कि कोई प्रेम आपके जीवन में नहीं है। और ध्यान रहे, लाओत्से की कीमिया, उसकी अल्केमी यही है कि खाली तो प्रेम के बिना आप नहीं रह सकते। अगर आप अपने को धोखा न दें, तो जो निकट है, उसे आपको प्रेम करना ही पड़ेगा।
इसलिए वह कहता है, 'मानवता को छोड़ो, न्याय को हटाओ और लोग अपनों को पुनः प्रेम करने लगेंगे।' अपनों को पुनः प्रेम करने लगेंगे! आज अपनों को कोई प्रेम करता ही नहीं है।
मैं पढ़ रहा था, फोर्कविथ ने लिखा है कि अंतर्राष्ट्रीयतावादी वह है, जो अपने देश को छोड़ कर और सब देशों को प्रेम करता है। मानवतावादी भी वह है, जो अपने निकट के लोगों को छोड़ कर दूर के लोगों को प्रेम करता है।
_दूर में अड़चन ही नहीं है कोई। क्या अड़चन है? आपके दरवाजे पर एक भिखारी भूखा बैठा हो, तो कोई अड़चन नहीं आती; बंगला देश में कोई भूखा है, तो आप बड़े बेचैन होते हैं। बहुत मजेदार बात है। आपकी सड़क पर कोई मरा हुआ पड़ा हो, तो कोई हर्ज नहीं है। वियतनाम में कोई मर गया, तो आप पर बड़ा आध्यात्मिक संकट आ जाता है ! क्या, हो क्या गया है आदमी को? यह दूर इतना क्यों आकर्षित करता है?
यह इसलिए आकर्षित करता है कि दूर के लिए सदा आप दूसरों को जिम्मेवार ठहरा सकते हैं। आपकी सड़क पर जो आदमी भूखा मर रहा है, उसके लिए आप जिम्मेवार ठहरेंगे। बंगला देश में कोई मर रहा है, तो भुट्टो होंगे जिम्मेवार, कोई और होगा जिम्मेवार; आप नहीं। वियतनाम में कोई मरता है, तो अमरीका होगा जिम्मेवार, निक्सन होंगे जिम्मेवार; आप नहीं।
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