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सिद्धांत व आचरण में नहीं, सरल-महज स्वभाव में जीना
अगर लोग निपट अपने स्वभाव में थिर हो जाएं, तो उनके जीवन से दुख, पीड़ा, बेचैनी, बोझ, तनाव, चिंता, सभी विसर्जित हो जाएंगे; तब वे निर्दोष खिल जाएंगे अपने में। लोग लाभान्वित होंगे, अगर यह सारा ज्ञान, जानकारी, बुद्धिमानी, पांडित्य, यह सारा बोझ हट जाए। यह सारे अनुभव की श्रृंखला हट जाए और चेतना, आत्मा-या जो भी नाम हम देना पसंद करें-वह जो हमारे भीतर छिपा है सत्व, वह अपनी निजता में रह जाए, उसके ऊपर कुछ भी न हो, खाली, शुद्ध, जिसको हाइडेगर ने अभी-अभी प्योर बीइंग कहा है, उसकी ही बात लाओत्से कर रहा है, लोग हजार गुना लाभान्वित होंगे।
हम तो सोचते हैं, लोगों का जितना ज्ञान बढ़ेगा, अनुभव बढ़ेगा, जानकारी बढ़ेगी, बुद्धिमानी बढ़ेगी, उतना लाभ होगा। लाओत्से उलटी बात कह रहा है। असल में, जितना ज्ञान बढ़ेगा, जानकारी बढ़ेगी, बुद्धिमानी बढ़ेगी, उतना ही आपके स्वभाव पर पर्त दर पर्त राख इकट्ठी होती चली जाएगी। आपका अंगारा राख की पर्तों में खो जाएगा। खुद तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। इतने वस्त्र हो जाएंगे शरीर पर कि शरीर तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा।
आमतौर से हर आदमी प्याज की गांठ की भांति है। पर्त-पर्त उखाड़ते चले जाएं, दूसरी पर्त निकल आती है। और उखाड़ें, तीसरी पर्त निकल आती है। आप अनुभव, ज्ञान, जानकारी, समझ, शिक्षा, संस्कार, सभ्यता, संस्कृति, इन सबकी पर्तों का एक जोड़ हैं। आप कहां खो गए हैं, कुछ पता नहीं है। आदमी अपने वस्त्रों में ही खो जाता है। लाओत्से कहता है, हटा दो सब वस्त्र! रह जाए वही, जिसे तुम हटा ही न सको। बस एक ही उसकी शर्त है कि जिसे तुम हटा ही न सको, वही रह जाए। तब तुम वस्तुतः लाभान्वित होओगे। अन्यथा बड़ी से बड़ी हानि जगत में एक ही है-स्वयं को खो देना।
इस सूत्र का नाम है : स्वयं को जानो। अंग्रेजी में नाम और भी सुंदर है : रियलाइज दि सिंपल सेल्फ। 'सिंपल' विचारणीय है-सरल, सहज। स्वयं को जानो में थोड़ी सी असहजता है।
जीसस या सुकरात शब्द का उपयोग करते हैं : नो दाई सेल्फ-स्वयं को जानो। उपनिषद उपयोग करते हैं: स्वयं को जानो, आत्मविद बनो। लाओत्से कहता है: दि सिंपल सेल्फ। अध्यात्मवादियों की आत्मा नहीं, सिद्धांतवादियों की आत्मा नहीं, ज्ञानियों की, पंडितों की आत्मा नहीं, दि सिंपल सेल्फ, वह सरल सी आत्मा जो अज्ञानियों के भीतर भी है। कोई बड़े सिद्धांत की, शास्त्र की बात नहीं, सरलतम तुम जो हो-नग्न, सहज-वही, उसे ही जानो। लेकिन उसे जानना हो, तो तुम जो भी जानते हो, उसे हटाओ। जो भी अब तक जाना है, उसे अलग कर दो। सब प्याज के छिलके अलग निकाल डालो। जब निकालने को कुछ भी न बचे, शून्य रह जाए, तभी तुम जानना कि अब सहज स्वभाव, सिंपल सेल्फ के करीब आए।
'ज्ञान को हटाओ, और लोग सौ गुना लाभान्वित होंगे। मानवता को छोड़ो, न्याय को हटाओ; और लोग अपनों को पुनः प्रेम करने लगेंगे।'
___ अक्सर ऐसा होता है कि जो आदमी किसी को भी प्रेम नहीं कर पाता, वह मानवता को प्रेम करने लगता है। एक आदमी को प्रेम करना बहुत मुश्किल है, मनुष्यता को प्रेम करना बहुत आसान है। पड़ोसी को प्रेम करना बहुत मुश्किल है। मनुष्य-जाति को प्रेम करना बहुत आसान है। एक व्यक्ति को प्रेम करो, तो झंझटें शुरू होती हैं; मनुष्यता को प्रेम करने में कोई भी झंझट नहीं है। मनुष्यता है ही कहां? मनुष्य हैं, मनुष्यता तो कहीं भी नहीं है। और जहां भी जाएंगे, मनुष्य मिलेगा; मनुष्यता तो कहीं मिलेगी नहीं। मनुष्यता तो एक एब्सट्रैक्ट, एक खयाल है। खयाल को प्रेम करना बहुत आसान है। भारत-माता को प्रेम करना हो, मजे से करो; अपनी मां को प्रेम करना बहुत मुश्किल है, बहुत मुश्किल है। क्योंकि दूसरी तरफ जीवित व्यक्ति है। और किसी भी जीवित व्यक्ति से संबंधित होना हो, तो झंझट है, कलह है, उपद्रव है। बहुत कठिनाई है। शब्द को प्रेम करने में कोई कठिनाई नहीं है।
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