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ताओ उपनिषद भाग २
फिर बड़ी मुश्किल में पड़ा। दूसरे दिन ही दफ्तर बंद करना पड़ा। क्योंकि एक क्लर्क दफ्तर की सेक्रेटरी को लेकर भाग गया। कैशियर ने डाका डाल दिया। सोचता था बहुत दिन से डाका डालने का; जो कल करना है, वह आज ही करो। और जो आफिस बॉय था, उसने मालिक की जूतों से पिटाई कर दी। वह भी कई दिन से सोच रहा था; सभी आफिस बॉय सोचते हैं। लेकिन अब तक यह सोचता था कि कर लेंगे कभी, पोस्टपोन करता जा रहा था। जब यह नियम मालूम पड़ा-काल करते आज कर, आज करते अब-उसने भी जूते...।
मालिक ने कहा, वह तख्ती अलग करो!
अगर आप भी लाओत्से का नियम सोचेंगे, तो सोचना थोड़ा, ध्यान करना। उससे लाओत्से के नियम पर कोई बाधा नहीं पड़ेगी, आपको अपने व्यक्तित्व का पता चलेगा कि अगर आप पर कोई नियम न हों तो आप क्या करेंगे, वही आपका असली चरित्र है। आप पर कोई नियम न हों तो आप क्या करेंगे, वही आप हैं। वही आपका असली चरित्र है। नियमों की वजह से जो आप कर रहे हैं, वह आप नहीं हैं। वह आपका चरित्र भी नहीं है। वह आपका अभिनय है। वह जबर्दस्ती है। उसका कोई मूल्य नहीं है।
तो आपको अपने भीतर उतरने में, सेल्फ-आब्जर्वेशन में बड़ी सहायता मिलेगी लाओत्से से। सोच लें, एक दिन चौबीस घंटे के लिए कोई नियम नहीं है आपके लिए। अब आप वही करें, जो सहज हो रहा है। सोचें सिर्फ, अभी करना मत। सिर्फ सोचना। तो पता चलेगा कि मनुष्यता कितनी विकृत हो गई है नियमों के कारण।
आज इतना ही। पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें, फिर जाएं।
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