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ताओ उपनिषद भाग २
क्या ऐसा भी कोई सूत्र है, जो वस्त्र की तरह नहीं है हमारे लिए, अस्तित्व है हमारा? अगर उससे हम अपने को एक जान पाएं, तो फिर कोई विनाश नहीं है। मृत्यु है इसीलिए कि हम मरणधर्मा से अपने को जोड़ लेते हैं। मृत्यु है इसीलिए कि जो मरने वाला है, उसके साथ हम अपने को एक समझ लेते हैं। उसी क्षण मृत्यु विसर्जित हो जाती है, जिस दिन हमने मरणधर्मा के साथ अपना संबंध छोड़ दिया। उस दिन जिससे हमारा संबंध है, उसकी कोई मृत्यु नहीं है।
तो लाओत्से कहता है, 'ताओ में प्रविष्ट हुआ वह अविनाशी है। और इस प्रकार उसका समग्र जीवन दुख के पार हो जाता है।'
दुख ही क्या है? मृत्यु की ही छाया है दुख। मृत्यु की ही लंबी हो गई छाया दुख है। जहां-जहां मृत्यु दिखाई पड़ती है, वहीं-वहीं दुख है। और जहां भी हम थोड़ी देर को मृत्यु को भुला पाते हैं, वहीं सुख मालूम पड़ता है।
लेकिन आदमी बड़े दुष्टचक्र में घूमता है। भुलाने से कुछ भूलता तो नहीं है।
सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन एक सांझ शराब पी रहा है। अपने घर के सामने वृक्ष के नीचे बैठ कर शराब . के प्याले पर प्याले ढाले चला जा रहा है। मेहमान एक घर में आया है। वह मुल्ला को कहता है कि नसरुद्दीन, क्यों इतनी शराब पीते हो? तो नसरुद्दीन कहता है, भुलाने के लिए। तो वह मेहमान पूछता है, क्या भुलाने के लिए? तो नसरुद्दीन कहता है, अपनी बेशर्मी, अपना पाप, अपना अपराध। तो वह मेहमान पूछता है, क्या है अपराध? क्या है पाप? क्या है बेशर्मी? नसरुद्दीन कहता है, यही कि यह शराब की लत पड़ी है। पाप यह है कि शराब पीता हूं; इस पाप को भुलाने के लिए शराब पीए चला जाता हूं।
अगर हम अपने जीवन के क्रम को गौर से देखें, तो वह ऐसा ही मिलेगा। उसमें हम एक चक्कर में घूमते रहते हैं। एक चीज से बचने को दूसरी चीज पकड़ते हैं। दूसरी से बचने को तीसरी पकड़ते हैं; और तीसरी से बचने के लिए उसको पकड़ते हैं, जिससे बचने के लिए इन सब को पकड़ा था। और तब हम एक गोल चक्र में वर्तुलाकार घूमते रहते हैं। इससे घूमना तो हो जाता है काफी, यात्रा भी बहुत हो जाती है, पहुंचना नहीं हो पाता। पहुंचने का कोई उपाय भी नहीं है इसमें। दुख यही है कि सुख का तो हमें कोई पता नहीं है, दुख का ही पता है। और कभी-कभी दुख को भुला लेते हैं, तो उसको हम सुख कहते हैं। और जिन-जिन चीजों से हम दुख को भुलाते हैं, वे सभी चीजें और दुख को लाने वाली हैं। तब हम वर्तुल में फंस जाते हैं।
एक बात बहुत गहरे में समझ लेने की जरूरत है कि जब तक मैं मरने वाला हूं, तब तक मैं कोई भी उपाय करूं, मैं सुखी नहीं हो सकता। मौत वहां खड़ी है और उसकी छाया मेरे ऊपर पड़ रही है। वह मेरे हर सुख को जहर में डुबा देगी। आप भोजन कर रहे हैं, बहुत सुस्वादु भोजन है। और तत्काल आपको खबर मिलती है कि आज ही सांझ आपको फांसी लग जाने वाली है, स्वाद खो जाएगा। आप लाख उपाय करें, स्वाद नहीं आ सकता अब। आप किसी के प्रेम में डूबे हैं, और सोचते हैं, चांद जमीन पर उतर आया है। और अचानक खबर मिलती है कि सांझ आपको फांसी हो जाएगी। आपके पास कौन है, उसका आपको पता भी नहीं रहेगा। सब बेमानी हो गया।
कामू ने कहीं लिखा है कि जब तक मौत है, तब तक कैसे सुख संभव है? इसलिए जानवर थोड़े सुखी मालूम पड़ते हैं; क्योंकि मौत का उन्हें बोध नहीं है। और आदमी सुखी मालूम नहीं पड़ता; क्योंकि मौत का उसे बोध है। जानवर सुखी मालूम पड़ते हैं; क्योंकि मौत का कोई बोध नहीं है, कोई धारणा नहीं है।
इसलिए आदमियों में भी जो जानवरों के थोड़े ज्यादा निकट हैं, वे थोड़े ज्यादा सुखी मालूम पड़ते हैं। वे भी मौत को भुलाए रखते हैं : कि होगी, कोई और मरता है सदा, हम तो कभी नहीं मरते। कभी अमरता, कभी ब मरता, कभी स मरता; हम तो अभी तक नहीं मरे। और जब अभी तक नहीं मरे, तो मरने का आगे भी क्या कारण है? हमेशा कोई और ही मरा है, हम तो कभी नहीं मरे। सीधा-साफ तर्क है कि हम नहीं मरेंगे।
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