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निष्क्रियता, बियति व शाश्वत बियम में वापसी
और पीछे एक रिक्त द्रष्टा, एक ऑनलुकर, एक दर्शक, भीतर देखने वाला पैदा हो जाएगा। और तब सारी जिंदगी एक नाटक हो जाती है। तब क्रिया का जगत एक नाटक हो जाता है। और वह निष्क्रियता ही आपका अस्तित्व बन जाती है। निष्क्रियता को उपलब्ध करें, निष्क्रियता को सदा स्मरण रखें। ध्यान को सदा निष्क्रियता पर दौड़ाते रहें। ध्यान जिस चीज पर दें, वह दिखाई पड़ने लगता है।
• इस कमरे में हम बैठे हैं। इसको मनोवैज्ञानिक गेस्टाल्ट कहते हैं। इस मकान में हम बैठे हैं। एक बार इस तरह देखें कि यह मकान दीवारों से बना है। ध्यान दीवारों पर दें। बीच-बीच में दरवाजे भी दिखाई पड़ेंगे, लेकिन वे केवल दीवारों के बीच-बीच में होंगे। दीवारें महत्वपूर्ण हैं। ध्यान दीवारों पर दें। फिर अचानक, खयाल भूल जाएं कि मकान दीवारों से बना है, खयाल करें कि मकान तो एक रिक्तता है; मकान दरवाजों से बना है, दीवारें बीच-बीच में हैं। और तब आप पाएंगे कि इसी कमरे के भीतर आपको दो तरह के अनुभव होंगे।
शायद यह कठिन मालूम पड़े, तो कुछ ऐसा करें : अपनी तीन अंगुलियां अपनी आंख के सामने कर लें और ध्यान दें कि बीच की अंगुली केंद्र है। बीच की अंगुली पर ध्यान दें, कि वह केंद्र है, दोनों अंगुलियां उसके आजू-बाजू हैं। और देखें, एक-दो मिनट ऐसे देखें। फिर अचानक ध्यान को बदलें, वहीं आंख रखें, दोनों अंगुलियों पर ध्यान दें कि दोनों अंगुलियां महत्वपूर्ण हैं, बीच की अंगुली बस बीच में है। और तब आपको पता चलेगा कि इतने से फर्क से आपके भीतर सब बदलाहट हो जाती है। जब आप बीच की अंगुली पर ध्यान देंगे, तो दोनों अंगुलियां बिलकुल फीकी, मुर्दा मालूम पड़ेंगी, जैसे हैं ही नहीं। कहीं दूर मालूम पड़ेंगी। जब आप दोनों अंगुलियों पर ध्यान देंगे, तो बीच की अंगुली गौण हो जाएगी।
या ऐसा करें। एक हाथ नीचे रखें, अपना दूसरा हाथ ऊपर रखें और दूसरे हाथ को चलाएं। और ध्यान दें कि मैं, जो हाथ चल रहा है, उसमें हूं। तो आपको दूसरा हाथ बिलकुल पराया मालूम पड़ेगा, अपना नहीं है। फिर ध्यान को बदल दें और खयाल करें कि जो हाथ ठहरा हुआ है, वह मैं हूं; और हाथ को चलाएं। तब आप फौरन पाएंगे कि जो हाथ ठहरा हुआ है, वह आप हैं; जो हाथ चल रहा है, वह किसी और का है।
यह इसलिए कह रहा हूं कि ध्यान की बदलाहट सिर्फ फोकस बदलने की बात है, सिर्फ फोकस बदलने की। ये दोनों हाथ मेरे हैं। और आपको पता भी नहीं चलेगा कि मैं इस समय किस हाथ से अपने को जोड़े हुए हूं। जो हाथ ऊपर चल रहा है, अगर मैंने उससे अपने को जोड़ा है, तो नीचे का हाथ पराया हो गया। वह मैं नहीं हूं। और आप बराबर अनुभव करेंगे कि नीचे का हाथ आप नहीं हैं; जो चल रहा है, वह आप हैं। फिर ठहरे हुए के साथ ध्यान को बदल दें। बाहर कोई बदलाहट नहीं हो रही, लेकिन भीतर फोकस बदल गया। ध्यान की धारा ऊपर के हाथ में बह रही थी, वह नीचे के हाथ में चली गई। ऊपर का हाथ दूसरे का मालूम पड़ने लगेगा।
जब आप भोजन कर रहे हैं और सोचते हैं, मैं भोजन कर रहा हूं, तब एक हालत है ध्यान की। और जब आप कहते हैं, अनुभव करते हैं कि भोजन शरीर कर रहा है, मैं देख रहा हूं, तब ध्यान का फोकस बदल गया, ध्यान दूसरा
हो गया। जब आप रास्ते पर चलते वक्त सोचते हैं, मैं चल रहा हूं, तो ध्यान एक है। अगर आप ऐसा ध्यान कर पाएं - कि मैं देख रहा हूं और शरीर चल रहा है, तत्काल फोकस बदल गया, गेस्टाल्ट बदल गया, पूरा ढांचा बदल गया।
लाओत्से की निष्क्रियता को अगर अनुभव करना हो, तो अपने भीतर जो आकाश है, सदा उस पर ध्यान रखें, और जो-जो बादल हैं, उन पर ध्यान मत रखें। उनको उड़ने दें, चलने दें, लेकिन ध्यान आकाश पर हो।
क्या है आपके भीतर आकाश? भूख लगती है, यह एक बादल है; आता है, चला जाता है। क्रोध आता है, यह एक बादल है; आता है, चला जाता है। घृणा आती है, यह एक बादल है; प्रेम आता है, यह एक बादल है; आता है, चला जाता है। दुख या सुख, सम्मान या अपमान, कुछ भी आता है, चला जाता है बादल की तरह। कौन है
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