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सफलता के खतरे. अळंकार की पीड़ा और स्वर्ग का द्वार
और वह इतनी निष्ठा से कहता कि कई बार अपरिचित आदमी तो मान ही लेते-कि माफ करिए, तो आप वह नहीं हैं, तातासुसु आप नहीं हैं! हम तो तातासुसु समझ कर ही आपके चरणों में आ गए। तो तातासुसु कहता कि नहीं, तुम्हें किसी ने गलत रास्ता बता दिया।
अगर तातासुसु की कोई निंदा करते आता और ऐसी बातें भी कहता जिनसे उसका कोई संबंध नहीं, तो तातासुसु स्वीकार कर लेता। वह कहता कि ठीक ही कहते होंगे।
तातासुसु के मरने के बाद ही पता चला कि उसने न मालूम कितनी झूठी निंदाओं में हां भर दी थी। और यह भी पता चला कि वह निंदा करने वाले को कहीं ऐसा न लगे कि इसने झूठी ही हां भर दी है, तो वह सब तरह के उपाय भी करता था कि निंदा करने वाला तृप्त होकर जाए कि निंदा उसने की तो ठीक ही की है।
एक आदमी आया है तातासुसु के पास और वह कहता है कि मैंने सुना है कि तुम बहुत क्रोधी आदमी हो! तो तातासुसु के पास में एक डंडा पड़ा है, वह डंडा उठा लेता है और आगबबूला हो जाता है और उसकी आंखों से आग निकलने लगती है। उसके साथी-शिष्यों ने, संगियों ने कभी उसे जिंदगी में क्रोध से भरा नहीं देखा था। वे भी चकित हो गए हैं। और उस आदमी ने कहा, तो बिलकुल ठीक ही है। अब और प्रमाण की क्या जरूरत है? तातासुसु ने कहा कि बिलकुल ठीक ही है। वह आदमी चला गया।
तातासुसु के शिष्य पूछते हैं कि हमने कभी आपको क्रोध में नहीं देखा। तो तातासुसु ने कहा कि तुमने कभी मुझे मौका ही नहीं दिया। तुम अगर आकर मुझे कहते, तो मैं प्रमाण जुटा देता। क्योंकि अकारण वह आदमी इतने दूर से चल कर आया यह बात कहने के लिए कि तुम क्रोधी हो, तो उसके लिए इतना सा करने में हर्ज भी क्या है! वह संतुष्ट होकर गया है। और अब उसे दुबारा तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। प्रमाण भी हाथ में है।
लाओत्से इस तरह के व्यक्ति की बात कर रहा है। और इस तरह के व्यक्ति का नाम ही संन्यासी है। तो जीवन में एक दूसरा आयाम खुलना शुरू होता है।
इस दूसरे आयाम पर हम आगे सूत्रों में बात करेंगे।
पांच मिनट बैठेगे; कीर्तन में सम्मिलित हों, और फिर जाएं।