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विश्रांति से समता व मध्य मार्ग से मुक्ति
सभी को यह अनुभव हुआ होगा, जो भी मन को शांत करने की कोशिश करेगा, उसे पता चला होगा कि शांत करने जाओ, तो और अशांत हो जाता है। क्योंकि शांत करने जाएगा कौन? आप अशांत हैं और आप शांत करने जा रहे हैं! तो अशांति दुगुनी हो जाएगी। बहुगुनी भी हो सकती है। तो अगर कोई बहुत ज्यादा शांत करने की कोशिश करे, तो पहले अशांत था, पीछे विक्षिप्त हो सकता है। फिर रास्ता क्या है? . लाओत्से का रास्ता खयाल में रखने जैसा है। यह परम मार्ग है। लाओत्से कहता है, मन की धारा के पास चुपचाप बैठ जाएं, लाइंग स्टिल, लेट जाएं। बहने दें धार को, होने दें गंदगी; मटमैली है धार, रहने दें। शांत बैठ जाएं, सिर्फ प्रतीक्षा करें। और कुछ न करें। कोशिश न करें शांत करने की।
कौन आदमी इस जगत में शांति को उपलब्ध हो सकता है? वही जो अशांति को मिटाने की चेष्टा से बचे। यह बहुत अजीब लगेगा-जो अशांति को मिटाने की चेष्टा से बचे। क्योंकि सब अशांति हमारी चेष्टाओं का फल है। और अब हम शांत होने की भी चेष्टा करें, तो हम और गहन अशांति पैदा कर लेंगे।
बोकोजू अपने गुरु के पास गया। गुरु से उसने जाकर कहा कि मेरा मन बड़ा अशांत है, मुझे शांत करने का उपाय दें। क्या मैं ध्यान करूं? क्या मैं उपवास करूं? क्या मैं तप करूं? उसके गुरु ने कहा, तू इतना कर-करके अभी करने से थका नहीं? तू जिंदगी भर करता ही रहा। उस करने का ही यह तेरी अशांति फल है। और अभी भी तू करने को उत्सुक है! तो फिर मेरे दरवाजे के भीतर मत आना। क्योंकि यह न करने वालों का घर है। अगर तू यहां न करने को राजी हो, तो भीतर आ; अन्यथा अभी और भटक!
बोकोजू की कुछ समझ में नहीं पड़ा। उसने कहा, अशांति बहुत है। आपको पता नहीं मेरी पीड़ा का। इसे शांत करना ही है। उसके गुरु ने कहा, यह तेरा कहना कि इसे शांत करना ही है, और दोहरी अशांति को जन्म दे रहा है। तू कुछ मत कर; तू यहां रह! तू सिर्फ मेरे पास बैठ!
बोकोजू एक साल तक अपने गुरु के पास बैठता था। दो, चार, आठ दिन में पूछता था कि अब कुछ बताएं करने को! क्योंकि बिना किए मन मानता नहीं। कुछ तो करवाएं। कोई मूढ़तापूर्ण कृत्य भी दे दें कि चलो, माला ही फेरो। तो कुछ तो करवाएं! कोई मंत्र, कोई नाम, कुछ तो पकड़ा दें कि मैं लगा रहूं। बोकोजू का गुरु कहता है कि तू काफी कर चुका। अब कुछ दिन कुछ भी नहीं करना है। महीना, पंद्रह दिन बीतता है कि बेचैनी बढ़ जाती है उसकी। कहता है, कुछ। क्या मैं पात्र नहीं हूं? क्या अपात्र हूं? आप मुझे कुछ बताते क्यों नहीं? गुरु कहता है, तू बस बैठ!
जापान में एक शब्द है झाझेन, जिसका मतलब होता है जस्ट सिटिंग, सिर्फ बैठ। तो गुरु बस उससे, साल में जब भी वह पूछता है, गुरु इतना ही कहता है; झाझेन, तू बैठ। तू कुछ और मत कर!
सिर पच गया। कुछ बताता नहीं है यह आदमी। और बोकोजू को बैठना पड़ा, बैठना पड़ा, बैठना पड़ा। फिर उसने पूछना भी छोड़ दिया, कि इस आदमी से पूछना भी क्या!
लेकिन बैठे-बैठे इस आदमी से, इसके पास, इसकी सन्निधि में, ऐसा लगाव भी बन गया कि अब छोड़ कर जाना भी न हो। इसके पास बैठे-बैठे कुछ चीजें जुड़ गईं भीतर कि अब इस घर के बाहर जाना भी न हो। आखिर जिस दिन चीजें जुड़ गईं भीतर, तो बोकोजू के गुरु ने कहा कि अब अगर तूने पूछा कि कुछ बताओ, तो दरवाजे के बाहर निकलने का ही एकमात्र कर्म बचा है। निकाल दूंगा बाहर। अब तू पूछना मत! जिस दिन बोकोजू के गुरु को लगा कि अब वह जगह आ गई, जहां से यह अब भाग भी नहीं सकता, बैठना ही पड़ेगा। और बैठ भी नहीं सकता, क्योंकि मन भीतर कहता है: कुछ करो, कोई व्यस्तता, कोई आक्युपेशन, कहीं तो उलझे रहो। कुछ तो करने को चाहिए।
कहावत है, हमने सुनी है कि खाली मन शैतान का कारखाना हो जाता है। बात गलत है। शैतान के कारखाने आप हैं। खाली में आपको पता चलता है। खाली की वजह से कोई शैतान का कारखाना नहीं बनता,
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