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ताओ उपनिषद भाग २
अनचार्टर्ड, कोई नक्शा नहीं है, समुद्र का कोई पता नहीं है कि कहां ले जाएगा, हाथ में कोई दिशा-सूचक यंत्र नहीं है, तो चौकन्ना रहना ही पड़ेगा। जितना अनिर्णीत होगा व्यक्ति, उतना ही ज्यादा चौकन्ना होगा। जितना निर्णीत होगा, उतना सुरक्षित होगा, उतना मूर्छित होगा।
यह भी लाओत्से भीतर की ही बात कर रहा है-अनिर्णीत और चौकन्ने! चौकन्ने का मतलब है अलर्ट। जैसे कि सब ओर से खतरा घिरा हो!
कभी आपने किसी हिरन को देखा है जंगल में? जरा सी आवाज होती है कहीं, पत्ता सरकता है, हिरन जैसा अलर्ट, चौकन्ना होकर खड़ा हो जाता है। उसका रो-रोआं सुनने लगता है, कहां क्या हो रहा है। उसका पूरा व्यक्तित्व एक जागरूकता बन जाता है। खतरा चारों तरफ है। एक छोटा सा खरगोश भी जरा सी आवाज सुन कर-कभी उसे देखें-कैसा चौकन्ना हो जाता है! बिल्ली सो रही हो आपके घर में, जरा सी आवाज हो, एकदम चौकन्नी हो जाती है। नींद से एकदम छलांग जागरूकता में लग जाती है। खतरा!
आदमी सबसे सुरक्षित जानवर है। और आदमी ने इतनी सुरक्षा कर ली है कि जानवर जैसा चौकन्नापन भी उसके पास नहीं है। सुरक्षित है। मकान है, दरवाजा है, ताला है, सब सुरक्षा है। घर में पैसा था, वह भी बैंक में है। सब सुरक्षित है। कहीं कोई खतरा नहीं है। मर भी जाए, तो लाइफ इंश्योरेंस है। मर भी गए, तो भी कोई खतरा नहीं है, कोई खतरा नहीं है। मरने में भी कोई डर नहीं है। क्योंकि पैसा तो मिलने ही वाला है। यह सारी सुरक्षा, भीतर के चौकन्नेपन को खतम कर दिया। हमसे पशु भी ज्यादा चौकन्ने हैं।
- लाओत्से कहता है, संत ऐसा ही चौकन्ना होता है भीतर से। कोई सुरक्षा नहीं बनाता। कोई इंतजाम नहीं बनाता। चारों तरफ जैसे खतरा हो प्रतिपल, उस खतरे में जीता है।
खतरा है भी। हम कितना ही इंतजाम करें, खतरा मिटता नहीं। खतरा है ही। मौत तो हर वक्त मौजूद है, चारों तरफ मौजूद है। किसी भी क्षण। लेकिन हम उसे टालते रहते हैं, स्थगित करते रहते हैं। हम मानते रहते हैं मन में कि मरते होंगे दूसरे लोग, यह कोई अपना काम नहीं है। मौत हमेशा दूसरे की होती है, इतना तो पक्का ही है, अपनी कभी नहीं होती। जब भी देखते हैं, कोई और मरता है। निश्चित रहते हैं कि हमेशा और ही कोई मरता है। हम तो कभी नहीं मरते। लेकिन वे जो मर रहे हैं, वे भी इतने ही निश्चित थे। मौत है चारों तरफ। किसी भी क्षण सब खो जा सकता है। खयाल करें, एक आदमी आपकी छाती पर छुरा रख दे और कहे कि बस, एक सेकेंड! जो भी सोचना हो, सोच लें। सोचना बंद हो जाएगा। एक सेकेंड ही बचा, तो सोचना क्या है? सोचना एकदम बंद हो जाएगा। सब सुरक्षा टूट गई। सोच-विचार कुछ न रहा। यही क्षण सब कुछ हो गया; क्योंकि मौत खड़ी है। चौकन्ने हो जाएंगे।
तो बुद्ध तो अपने भिक्षुओं को मरघट भेजते थे कि तुम तब तक ध्यान में न जा सकोगे, जब तक तुम मौत की निकटता अनुभव न करो। तो जाओ, मरघट पर बैठो, जलते हुए लोगों को देखो। लाशें गलती हुई देखो। जानवर लाशों को तोड़ रहे हैं, खींच ले जा रहे हैं, वह देखो। हड़ियां, खोपड़ियां बिखरी हुई देखो। रहो मरघट पर। जब तुम्हें मौत ऐसा मालूम पड़ने लगे कि चारों तरफ है; सुबह उठते हो, और लाश जल रही है; दोपहर उठते हो, और लाश जल रही है। रात उठते हो, और लपटें उठ रही हैं; जहां भी जाते हो, हड्डियां हैं; जहां भी हिलते हो, खोपड़ियां हैं; तुम्हें मौत चारों तरफ मालूम होने लगे।
मोग्गलायन जब बुद्ध के पास पहले गया, तो बुद्ध ने कहा, तू मरघट जा मोग्गलायन, वहीं तू चिंतन कर। मोग्गलायन ने कहा, आप.मौजूद हैं, तो आपके पास ही चिंतन करूं। मरघट से क्या होगा? बुद्ध ने कहा, तू अभी चिंतन न कर सकेगा; क्योंकि मैं भी तेरे लिए एक सुरक्षा हूं कि बुद्ध के पास है। क्या डर? पहले तू जा, पहले मौत को अपने पास देख! जिस दिन मौत तेरे पास होगी, उसी दिन मैं भी तेरे पास हो सकता हूं, उसके पहले नहीं।
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