SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग २ हम कहते हैं जन्म-दिन है। लेकिन जिस दिन बच्चा मां के पेट में आता है वह ? तो थोड़ा पीछे हटें। ठीक जन्म-दिन तो वही है जिस दिन बच्चा मां के पेट में आता है। जन्म तो उसी दिन हो गया। लेकिन थोड़ा और गहरे प्रवेश करें। मां के पेट में जिस दिन बच्चे का निर्माण होता है, पहला कोश जब निर्मित होता है, तो उसमें का आधा हिस्सा तो पिता में जिंदा था बहुत पहले से और आधा हिस्सा मां में जिंदा था बहुत पहले से। उन दोनों के मिलने से जन्म की शुरुआत हुई विज्ञान के हिसाब से। तो यह जन्म की घटना दो जीवन, जो पहले से ही मौजूद थे, उनके मिलन की घटना है। यह शुरुआत नहीं है, यह प्रारंभ नहीं है। क्योंकि जीवन दोनों मौजूद थे; एक पिता में छिपा था, एक मां में छिपा था। उन दोनों के मिलने से यह जीवन शुरू हुआ। इस जीवन की, राम नाम के जीवन की शुरुआत होगी यह। लेकिन जीवन की शुरुआत नहीं है। क्योंकि जीवन पिता में छिपा था, मां में छिपा था, मौजूद था। पूरी तरह जीवित था। तो यह प्रकट हुआ, मिलने से प्रकट हुआ। लेकिन मौजूद था। लेकिन और पीछे चलें। जो पिता में छिपा है, वह पिता के मां और पिता में छिपा था। और चलते जाएं पीछे। जो मां में छिपा है, वह मां के पिता और मां में छिपा था। यह जीवन कब शुरू हुआ? आपका जन्म आपका जन्म हो सकता है, लेकिन आपके भीतर जो जीवन है, उसका जन्म नहीं है। उसे हम लौटाए जाएं पीछे, तो समस्त इतिहास, ज्ञात-अज्ञात, समाविष्ट हो जाएगा। अगर कभी कोई पहला आदमी जमीन पर रहा होगा, तो आप उसके भीतर जिंदा थे। लेकिन वह पहला आदमी भी कैसे हो सकता है? पहले आदमी के होने के लिए भी जरूरी है कि जीवन उसके पहले रहा हो। तो जीवन एक सातत्य हो गया। विज्ञान के हिसाब से थोड़ी सरल है बात; धर्म के हिसाब से और थोड़ी जटिल है। क्योंकि धर्म कहता है कि मां और पिता से मिल कर जो परमाणु निर्मित हुआ, वह तो केवल देह का जीवन है; और आत्मा प्रवेश करेगी उसमें। इसलिए बुद्ध के पिता ने जब बुद्ध से कहा कि मैंने तुझे पैदा किया, तो बुद्ध ने कहा कि आपसे मैं पैदा हुआ, आपने मुझे पैदा नहीं किया। मैं आपसे आया हूं, आप मेरे लिए द्वार बने, मार्ग बने; लेकिन मैं आपसे पैदा नहीं किया गया हूं। आप नहीं थे, तब भी मैं था। आपने मेरे लिए मार्ग दिया, मैं प्रकट हुआ हूं। लेकिन मेरी यात्रा बहुत भिन्न है। पिता नाराज थे। पिता नाराज थे, क्योंकि बुद्ध भिक्षा मांग रहे थे उस गांव में, जो उनकी संपदा थी; राज्य उनका था, उस गांव में भिक्षा-पात्र लेकर भिक्षा मांग रहे थे। तो बुद्ध के पिता ने कहा था कि सिद्धार्थ, हमारे परिवार में कभी किसी ने भिक्षा नहीं मांगी। बुद्ध ने कहा था, आपके परिवार का मुझे कुछ पता नहीं; लेकिन जहां तक मुझे अपनी पिछली यात्राओं का पता है, मैं बहुत पुराना भिखारी हूं। मैं इस जन्म के पहले भी भीख मांगा हूं, उस जन्म के पहले भी भीख मांगा हूं, जहां तक मुझे मेरा पता है, मैं बहुत पुराना भिखारी हूं। आपका मुझे कुछ पता नहीं है। वे अलग-अलग बातें कर रहे थे, जिनका कहीं मेल नहीं होगा। बुद्ध के पिता वैज्ञानिक बात कर रहे थे; बुद्ध धार्मिक बात कर रहे थे। अगर धर्म से देखें, तो जीवन की जो घटना मां के पेट में घट रही है आज, वह भी अनंत है। और आत्मा की जो घटना उस जीवन में प्रविष्ट हो रही है, वह भी अनंत है। दो अनंत का मिलन हो रहा है मां के गर्भ में। मैं सदा था इस अर्थ में। मेरे शरीर का कण-कण सदा था। मेरी आत्मा का कण-कण सदा था। ऐसा कोई भी क्षण नहीं था इस अस्तित्व में, जब मैं नहीं था या जब आप नहीं थे। रूप कुछ भी रहे हों, आकृतियां कुछ भी रही हों, नाम कुछ भी रहे हों; ऐसा कोई क्षण कभी नहीं था अस्तित्व में, जब आप नहीं थे; और ऐसा भी कोई क्षण कभी नहीं होगा, जब आप नहीं होंगे। लेकिन बहुत बार जन्मे आप, बहुत बार मरेंगे। लाओत्से कहता है, 'न उसके प्रकट होने पर होता प्रकाश, न उसके डूबने पर होता अंधेरा; ऐसा है वह अक्षय और अविच्छिन्न रहस्य, जिसकी परिभाषा संभव नहीं है।' 188
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy