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सफलता के खतरे, अळंकार की पीड़ा और स्वर्ग का द्वार
पूरे जीवन में ऐसी घटना घटती है। आदमी मकान बनाता है; फिर मकान पर पहरेदार बिठाने पड़ते हैं। धन इकट्ठा करता है; फिर धन की सुरक्षा करनी पड़ती है। और यह जाल बढ़ता चला जाता है। और यह बात ही भूल जाती है कि मैंने जिस आदमी के लिए यह सब इंतजाम किया था, वह अब सिर्फ एक पहरेदार रह गया है, और कुछ भी नहीं।
अमरीका के अरबपति एंड्र कारनेगी ने अपने आत्म-संस्मरण में लिखवाया है। मरने के दो दिन पहले उसने अपने सेक्रेटरी को पूछा कि मैं तुझसे यह पूछना चाहता हूं कि अगर दुबारा हम दोनों को जन्म मिले, तो तू मेरा सेक्रेटरी होना चाहेगा या तू एंड कारनेगी होना चाहेगा और मुझे अपना सेक्रेटरी बनाना चाहेगा?
एंडु कारनेगी मरा, तो दस अरब रुपए छोड़ कर मरा।
उसके सेक्रेटरी ने कहा, माफ करिए, आपको मैं इतना जानता हूं कि कभी भी परमात्मा से ऐसी प्रार्थना नहीं कर सकता कि मैं एंड कारनेगी होना चाहूं। काश, आपका मैं सेक्रेटरी न होता, तो शायद इस कामना से भी मर सकता था कि भगवान मुझे भी एंड्र कारनेगी बना दे। कारनेगी ने पूछा, तेरा क्या मतलब? तो उस सेक्रेटरी ने कहा कि मैं देखता हूं रोज जो हो रहा है। आप सबसे ज्यादा गरीब आदमी हैं। न आप ठीक से सो सकते हैं, न आप ठीक से बैठ सकते हैं, न आप ठीक से बात कर सकते हैं। न आपको अपनी पत्नी से मिलने की फुर्सत है, न अपने बच्चों के साथ बात करने की फुर्सत है। और देखता हूं कि दफ्तर में आप सुबह साढ़े आठ बजे पहुंच जाते हैं; चपरासी भी साढ़े नौ बजे आते हैं; क्लर्क साढ़े दस बजे आते हैं; मैनेजर बारह बजे आता है; डायरेक्टर्स एक बजे पहुंचते हैं। डायरेक्टर्स तीन बजे चले जाते हैं; मैनेजर चार बजे चला जाता है; साढ़े चार बजे क्लर्क भी चले जाते हैं; पांच बजे चपरासी भी चले जाते हैं; मैंने आपको सात बजे से पहले कभी घर लौटते नहीं देखा।
चपरासी भी पहले चले जाते हैं। क्योंकि चपरासी दूसरे की सुरक्षा कर रहे हैं, अपनी नहीं। एंड्र कारनेगी अपनी ही सुरक्षा कर रहा है।
यह लाओत्से कहता है कि जब सोने और हीरे से भवन भर जाता है, तब मालिक उसकी रक्षा नहीं कर सकता है। और जब मालिक रक्षा नहीं कर सकता, तो मालिक मालिक नहीं रह जाता है। वह सोने और हीरों का गुलाम हो जाता है।
हम अपनी संपत्ति के कब गुलाम हो जाते हैं, हमें पता ही नहीं चलता। मालिक होने के लिए ही कोशिश करते हैं। भूल ही जाते हैं कि जिसका हमने मालिक होना चाहा था, हम बहुत पहले ही उसके गुलाम हो चुके हैं। असल में, इस दुनिया में कोई भी आदमी यदि मालिक बनने की कोशिश करेगा, तो गुलाम हो जाएगा। असल में, हम जिसके भी मालिक बनना चाहेंगे, उसका हमें गुलाम होना ही पड़ेगा। बिना गुलाम बने मालिक बनने का कोई उपाय नहीं है। इसीलिए जीवन एक रहस्य है। यहां मालिक तो केवल वे ही लोग बन पाते हैं, सच्चे मालिक, जो किसी के मालिक ही नहीं बनते हैं, जो किसी पर अपनी मालकियत ही स्थापित नहीं करते हैं।
आदमी की तो हम बात छोड़ दें। चीजों पर भी अगर आपने मालकियत स्थापित की, तो चीजें आपकी मालिक हो जाती हैं। जब आपको एक मकान छोड़ना पड़ता है, तो मकान नहीं रोता आपके लिए कि आप जा रहे हैं, आप रोते हैं। आपसे एक कमीज भी छीन ली जाए, तो कमीज जरा भी परेशान नहीं होती, आप परेशान होते हैं। वस्तुएं भी मालिक हो जाती हैं; दि पजेसर बिकम्स दि पजेस्ड। वह जो मालिक है, वह गुलाम हो जाता है। और जिसका मालिक है, उसी का गुलाम हो जाता है।
'जब समृद्धि और सम्मान से घमंड उत्पन्न होता है, तो वह स्वयं के लिए अमंगल का कारण है। और कार्य की सफल निष्पत्ति के अनंतर जब कर्ता का यश फैलने लगे, तब उसका अपने को ओझल कर लेना ही स्वर्ग का रास्ता है।'