SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अदृश्य, अश्राव्य व अस्पर्शबीय ताओ समझ की प्रक्रिया का पहला हिस्सा है: जो ज्ञात है, उसको हम अज्ञात पर बिठाते हैं। जो हमें पता है, उसको हम उससे जोड़ते हैं, जो हमें पता नहीं है। समझ का मतलब ही यही है कि हम अज्ञात को ज्ञात की भाषा में अनुवादित करते हैं—दि अननोन रिड्यूस्ड टु दि लैंग्वेज ऑफ दि नोन। यही हम कोशिश कर रहे हैं पूरे समय। और जब हम अज्ञात को ज्ञात की भाषा में पकड़ लेते हैं, तो हम कहते हैं समझ गए। लेकिन यह जो परमात्मा है, यह अगर अज्ञात होता, अननोन होता, तो इसे समझने का उपाय हो सकता था। वह अननोन नहीं है, अननोएबल है। वह अज्ञात नहीं है, अज्ञेय है। यहीं तकलीफ है। विज्ञान दो चीजें मानता है : नोन और अननोन, ज्ञात और अज्ञात। ये दो विभाजन हैं जगत के। अज्ञात का मतलब है, जो अभी अज्ञात है, आज नहीं कल ज्ञात हो जाएगा। समझ कर रहेंगे उसे हम। मतलब यह है कि जो हमें ज्ञात है, इसकी सीमा को हम बड़ा करेंगे और अज्ञात को इसी की परिधि में ले आएंगे। जब इतना ज्ञात हो सका है, तो जो अज्ञात है, वह भी ज्ञात हो जाएगा। यह समय की ही बात है। आज नहीं कल, आज नहीं कल अज्ञात कम होता जाएगा, ज्ञात बढ़ता जाएगा। एक दिन ऐसा आएगा कि हम कहेंगे, सब ज्ञात हो गया है। धर्म तीन कोटियां मानता है : ज्ञात, अज्ञात और अज्ञेय। विज्ञान दो कोटियां मानता है : ज्ञात और अज्ञात। यही फर्क है धर्म और विज्ञान में। धर्म एक नई कोटि मानता है-अननोएबल। वह कहता है, कुछ ज्ञात है, कुछ अज्ञात है। ये दो विभाजन हैं, ये बुद्धि के विभाजन हैं: ज्ञात-अज्ञात, प्रकाश-अंधेरा, जन्म-मृत्यु। इनके पीछे जो छिपा है, वह अननोएबल है। अविभाजित, बुद्धि के पार जो है, वह अज्ञेय है। वह कभी नहीं जाना जा सकेगा। तुम ज्ञात को अज्ञात बनाते रहो, अज्ञात को ज्ञात बनाते रहो; लेकिन इसका जो मौलिक आधार है, वह सदा ही अज्ञेय बना रहेगा, जाना जा सकेगा। तुम ज्ञात को वह कभी भी जाना नहीं जानात रहा; लेकिन इसका जो मौलि यही धर्म का विज्ञान से भेद है। यही झगड़ा भी है। विज्ञान कहता है, अज्ञात हम मानने को तैयार हैं। अगर तुम कहो कि तुम्हारा ईश्वर अज्ञात है, तो हम मानते हैं। तो फिर हम आज नहीं कल उसको ज्ञात कर लेंगे। लेकिन धर्म कहता है, ईश्वर अज्ञेय है। तुम कभी भी उसे ज्ञात न कर सकोगे। अज्ञेय का मतलब है, जिसे ज्ञात की भाषा में रूपांतरित नहीं किया जा सकता। जीवन का जो परम सत्य है, वह अज्ञेय रहेगा ही। उसका कारण है। उसका कारण यह है कि उस परम सत्य में मेरा होना एक परमाणु का होना है। मैं हूं जानने वाला। और जिसे मुझे जानना है, वह यह विराट विस्तार है, अनंत विस्तार है, असीम विस्तार है। मैं हूं जानने वाला, एक परमाणु, जिसका जानना बड़ी साधारण सी बातों पर निर्भर है। एक अफीम की गोली दे दी जाए, और जिसका जानना समाप्त हो जाता है। एक इंजेक्शन दे दिया जाए मार्फिया का, और जानना खतम हो जाता है। मार्फिया के एक इंजेक्शन से जो जानना खो जाता है, वह जानने की क्षमता कितनी बड़ी है? सिर पर एक पत्थर मार दिया जाए, और चेतना खो जाती है। इस विराट अस्तित्व को जानने चले हैं हम उस सिर से, जो एक छोटे से पत्थर से विनष्ट हो जाता है, एक छोटी सी अफीम की गोली जिसे बेहोश कर देती है। जानने की तो बात और, एक जरा सा इंजेक्शन जिसे जीवन के पार हटा देता है। एक छुरी छाती में घुस जाती है और जीवन तिरोहित हो जाता है। इस अत्यल्प शक्ति से हम जानने चले हैं इस विराट को! धर्म कहता है, हम नहीं जान सकेंगे। और धर्म का कहना वैज्ञानिक मालूम पड़ता है, तर्कसंगत मालूम पड़ता है। क्षमता कितनी है हमारी जानने की? फिर इस जानने को भी अगर हम और थोड़े गौर से देखें। तो बच्चा मां के पेट में नौ महीने बिलकुल बेहोश होता है, कुछ भी नहीं जानता। पैदा होता है, तो बाईस घंटे सोता है, बीस घंटे सोता है, अठारह घंटे सोता है। सोता रहता है। बड़ा भी हो जाता है, तो भी हम अगर साठ साल जिंदा रहें, तो बीस साल सोते हैं। तब हम कुछ नहीं 177
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy