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अदृश्य, अश्राव्य व अस्पर्शनीय ताओ
प्रश्न में मेरी सारी की सारी असफलता सिद्ध कर दी। मेरे पिता ने पूछा कि जो अश्राव्य है, वह सुना? मेरे पिता ने पूछा कि जो जाना नहीं जा सका, जाना नहीं जा सकता है, उसे जाना?
तो गुरु ने कहा कि मैं तो वही बता सकता था, जो बताया जा सकता है। मैं तो वही कह सकता था, जो कहा जा सकता है। पागल, कहने से वह कैसे कहा जाएगा, जो सुना नहीं जा सकता?
पर श्वेतकेतु ने कहा, अब तो मेरे घर लौटने का कोई उपाय नहीं, जब तक कि मैं उसे न सुन लूं।
तो गुरु ने कहा, फिर तू ऐसा कर! ये गाएं हैं आश्रम की, इनको त लेकर गहन जंगल में चला जा। और जब तक ये हजार न हो जाएं, तब तक वापस मत लौटना।
श्वेतकेतु ने पूछा, वहां मैं करूंगा क्या?
तो गुरु ने कहा, तू गायों की चिंता करना और अपनी चिंता भूल जाना। खुद को तू भूल ही जाना कि तू है। बस इन गायों की सेवा करना। और जब ये हजार हो जाएं-चार सौ गाएं थीं, कब होंगी हजार? तब तू लौट आना!
श्वेतकेतु चला गया। स्वयं को छोड़ गया गुरु के आश्रम में ही। गायों के साथ चला गया। स्वयं को छोड़ गया। अपनी सब चिंता छोड़ गया। क्योंकि गुरु ने कहाः अपनी चिंता मत करना; नहीं तो जो अश्राव्य है, वह सुना नहीं जा सकता। तू गायों की चिंता में लगा रहना। इनकी फिक्र कर लेना, इनको पानी जुटा देना, भोजन जुटा देना, इनका विश्राम करा देना। बस तू अपने को भूल जाना। एक ही खयाल रखना कि जब गाएं हजार हो जाएं, तब तू आ जाना!
श्वेतकेतु गायों की सेवा करता रहा, करता रहा, करता रहा। वर्ष आए और गए। रात तारे निकल आते, वह देखता हुआ सो जाता। सुबह सूरज उगता, वह देखता हुआ उठ आता। गाएं थीं, कोई बात की चर्चा का उपाय न था। कोई खबर न थी। गायों की खाली कोरी आंखें थीं।
हिंदुओं के गाय को मां मानने के बहुत गहरे कारणों में गाय की आंख भी एक रही है। वह समस्त पशुओं में उस जैसी निराकार और शून्य आंख खोजनी मुश्किल है। वैसी ही आंख जब किसी व्यक्ति की हो जाती है, तो वह ध्यान को उपलब्ध हो जाता है।
तो गायों की आंखों में झांकता था। अपने को भूलता गया, भूलता गया, भूलता गया। फिर कठिनाई खड़ी हो गई। गाएं बड़ी मुश्किल में पड़ गईं; क्योंकि गाएं हजार हो गईं और श्वेतकेतु को गिनती का खयाल ही न रहा। कौन गिनती करे? तो बड़ी मीठी कथा है कि गायों ने एक दिन इकट्ठे होकर कहा, श्वेतकेतु! हम हजार हो गए; वापस लौटने का वक्त आ गया।
तो श्वेतकेतु गायों को लेकर वापस लौट आया। जब वह गुरु के आश्रम में प्रवेश कर रहा था, तो गुरु भागे हुए आए, श्वेतकेतु को गले लगाया और श्वेतकेतु से कहा, अब कुछ पूछने को नहीं है। तू अपने पिता के पास वापस लौट जा सकता है। श्वेतकेतु ने पूछा कि आपको कैसे पता चला कि मैंने सुन लिया वह, जो नहीं सुना जा सकता? तो गुरु ने कहा कि मैंने देखा कि एक हजार एक गाएं आ रही हैं।
एक हजार तो गाएं थीं, एक वह श्वेतकेतु था। वह बिलकुल गाय हो गया था। उसकी आंखों में शून्य आ गया था। गायों के बीच में वह ऐसे चला आ रहा था, जैसे वह भी एक गाय हो। तो गुरु ने कहा, अब कुछ कहने को नहीं है। तू जा सकता है।
बड़ी अदभुत घटना घटी। जब श्वेतकेतु अपने गांव की तरफ आया और पिता ने खिड़की से श्वेतकेतु को आते देखा, तो उसने अपनी पत्नी से कहा-श्वेतकेतु की मां को–कि अब मैं भाग जाऊं यहां से; क्योंकि श्वेतकेतु ब्राह्मण होकर आ रहा है और मेरे पैर छुएगा तो बड़ी अड़चन होगी। मैं खुद अभी ब्राह्मण नहीं हूं। मैंने वह नहीं सुना, अभी वह मैंने नहीं सुना जो सुना नहीं जा सकता है। इसलिए पिता पीछे के दरवाजे से भाग गया।
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