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________________ ताओ उपनिषद भाग २ 174 यह सूत्र कहता है, 'उसे देखें, फिर भी वह अनदिखा बना रहता है।' इसे खयाल रखें कि वह कभी दिखाई नहीं पड़ेगा। क्योंकि जो साधक भी उसे देखने की चेष्टा में लग जाते हैं, बहुत जल्दी अपनी कोई कल्पना पर ही समाप्त हो जाते हैं। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, कुछ तो सहारा! राम का, कृष्ण का, बुद्ध का, कोई तो सहारा दें। किस पर ध्यान करें? अगर उनसे कहो कि सिर्फ ध्यान करो, किसी पर नहीं, तो कठिन हो जाती है बात। किस पर ध्यान करें? किसे देखें? कहां आंखें गड़ाएं ? कोई जगह चाहिए। कोई रूप, कोई आकार । आंख आकार पर तो टिक जाती है। लेकिन जब तक आंख निराकार पर टिकना न सीखे, तब तक उसका कोई अनुभव न होगा—उसका, जो परम रहस्य है। तब तक जो भी हम जानेंगे, वे हमारी बुद्धि की ही आकृतियां हैं, वे हमारे ही खिलौने हैं। कितने ही पवित्र और कितने ही पूज्य, राम हों कि कृष्ण, कितने ही आकाश में हम उन्हें बिठा दें, वे हमारे मन के ही आखिरी छोर हैं। जहां तक मन आकार बना पाता है, वहां तक उससे कोई मिलन नहीं होता, जो निराकार है। 'इसीलिए उसे अदृश्य कहा जाता है। उसे सुनें, फिर भी वह अनसुना रह जाता है।' सब सुनाई पड़ता है जगत में । प्रत्येक वस्तु की ध्वनि है, प्रत्येक वस्तु की ध्वनि तरंग है; सब सुनाई पड़ता है। सिर्फ परमात्मा सुनाई नहीं पड़ता। उसकी कोई ध्वनि तरंग नहीं मालूम होती । उसे कहीं से भी पकड़ा नहीं जा सकता कि क्या है उसका संगीत ! क्या है उसका स्वर ! सुनें जरूर लेकिन उसे । तो क्या होगा उपाय सुनने का ? एक ही उपाय है उसे सुनने का कि धीरे-धीरे आपके कान और सब सुनना छोड़ते चले जाएं, सब ध्वनियां छोड़ते चले जाएं। एक घड़ी ऐसी आए कान की कि कान निर्ध्वनि हो जाएं, कुछ भी सुनाई न पड़ता हो, शून्य सुनाई पड़ता हो । सन्नाटा रह जाए, कोई ध्वनि पकड़ में न आती हो। तब जो सुनाई पड़ेगा — कहना पड़ता है कि जो सुनाई पड़ेगा - वह वही है, जो सदा अश्राव्य है, जो कभी सुना नहीं जाता। श्वेतकेतु अपने घर वापस लौटा सब शास्त्र पढ़ कर । पिता ने उसके पूछा कि तू वह तो समझ कर आ गया जो सुना जा सकता है, तूने वह भी सुना जो अश्राव्य है ? · श्वेतकेतु बहुत अकड़ कर घर आ रहा था। समस्त वेदों का ज्ञाता हो गया था। जो भी ज्ञान था, सब उसकी मुट्ठी था। आरहा था बड़ी आशा से कि पिता बहुत आनंदित होंगे और कहेंगे: श्वेतकेतु, तू सब पाकर आ गया। लेकिन पिता ने पहला ही प्रश्न पूछा कि वह सुना जो अश्राव्य है? श्वेतकेतु ने कहा, ऐसा कोई शास्त्र ही नहीं था। सभी शास्त्र श्राव्य हैं। तो जो भी मैंने पढ़ा वह सब सुना जा सकता है। इसलिए शास्त्रों का जो भारतीय नाम है, वह है श्रुति और स्मृति - जिसे सुना जा सके और जिसे याद रखा जा सके। इसलिए शास्त्र में परमात्मा नहीं हो सकता, वह अश्राव्य है। शास्त्र तो सुने जा सकते हैं, स्मरण रखे जा सकते हैं। वह उनसे दूर रह जाएगा। तो श्वेतकेतु ने कहा, वह तो नहीं सुना। तो पिता ने कहा, वापस जा ! तू सब जो सीख कर आया वह व्यर्थ है। उससे आजीविका तो मिल सकती है, जीवन नहीं। और मैंने तुझे ब्राह्मण होने के लिए भेजा था, पुरोहित होने के लिए नहीं । ऐसे तो तू ब्राह्मण का बेटा है ही, तो आजीविका तो तुझे मिल जाएगी, लेकिन जीवन ? और ब्राह्मण तू उसी दिन होगा, जिस दिन वह अश्राव्य सुना जा सके। ब्रह्म को सुना जा सके, देखा जा सके, तभी कोई ब्राह्मण होता है। तू वापस जा ! श्वेतकेतु वापस चला गया। वर्षों बाद लौट सका। क्योंकि जब उसने अपने गुरु को जाकर कहा कि मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। आपने तो कहा था जो भी जाना जा सकता है, सब बता दिया। लेकिन मेरे पिता ने पहले ही :
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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