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Chapter 13 : Sutra 2
Praise And Blame
What does it mean to say that,
What we value and what we fear a are as if within the self?
We have fear because we have a self. When we do not regard that self as the self, What have we to fear?
Therefore he who values the self as he does his own self-
May then be entrusted with the government of the world;
And he who loves the world as his self-To his care may the world then be entrusted.
अध्याय 13: सूत्र 2
पशंसा और निंदा
इसका क्या अर्थ हैं कि सम्मान और अपमान दोनों ही स्वयं के भीतर है?
हम इस कारण भयभीत होते हैं, क्योंकि हमने अहंकार को ही अपना होना समझ लिया हैं।
जब हम अहंकार को ही अपनी आत्मा नहीं मानते,
तो डर किस बात का होगा ?
इसलिए जो व्यक्ति संसार को उतना ही सम्मान दे, जितना कि स्वयं को, तो ऐसे व्यक्ति के हाथ में संसार का शासन सौंपा जा सकता है।
और जो संसार को उतना ही प्रेम करे, जितना स्वयं को, तो उसके हाथों में संसार की सुरक्षा सौंपी जा सकती हैं।