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एक ही सिक्के के दो पहल : सम्मान व अपमान, लोभव भय
तो क्या हम खड़े रह जाएं? क्या हम रुक जाएं इस दौड़ से?
लाओत्से नहीं कहता कि रुक जाएं। यह थोड़ी बारीक बात है, इसे भी थोड़ा खयाल में ले लेना चाहिए कि लाओत्से नहीं कहता कि हम रुक जाएं। क्योंकि लाओत्से कहता है कि अगर हम रुकेंगे भी, तो वह भी हमारी एक दौड़ होगी, किसी लोभ के कारण रुकेंगे। अगर हम रुकेंगे भी, तो इस वजह से कि ठीक है, फिर निंदा नहीं मिलेगी, अपमान नहीं मिलेगा, असफलता नहीं मिलेगी। अगर हम रुकेंगे भी, तो हमारे मन में वही लोभ सम्मान का, यश का, प्रतिष्ठा का, सफलता का, धन का, अमरत्व का बना रहेगा।
लाओत्से कहता है, मैं रुकने के लिए नहीं कहता। मैं तो दौड़ने की व्यर्थता को देखने के लिए कहता हूं। उसके परिणाम में रुकना हो जाता है; रुकने के लिए चेष्टा नहीं करनी पड़ती।
बुद्ध से कोई पूछता है, क्या हम इच्छाओं को छोड़ दें, तो शांति मिलेगी? तो बुद्ध कहते हैं, यह एक नई इच्छा है। यह एक नई इच्छा है। तो बुद्ध कहते हैं, मैं तुम्हें इच्छाएं छोड़ने को नहीं कहता, इच्छाओं को समझने को कहता हूं। क्योंकि अगर तुम समझ लोगे, तो तुम इच्छा नहीं कर पाओगे। तब तुम ऐसा नहीं पूछोगे कि क्या मैं इच्छाएं छोड़ दूं, तो मुझे शांति मिलेगी? यह शांति भी इच्छा का एक विषय बन जाती है। इच्छा जब नहीं होती, तब जो होता है, उसका नाम शांति है। और जब सुख-दुख की कोई खोज नहीं होती, तब जो होता है, उसका नाम आनंद है।
___ लाओत्से का सूत्र बहुमूल्य है। और इस सूत्र को प्रयोग करने के लिए न तो किसी विशेष साधना में लगने की जरूरत है, न किसी क्रियाकांड में पड़ने की जरूरत है। इस सूत्र को तो आप चलते, उठते, बैठते, काम करते, सोते, खाना खाते, बाजार में निकलते, दुकान पर बैठते पूरा कर सकते हैं। सिर्फ इतना ही खयाल रखें : पहला कदम आप न उठाएं, तो दूसरा कदम कभी नहीं उठेगा। पहले कदम पर सजग हो जाएं, दूसरे कदम से छुटकारा हो जाएगा। पहले कदम उठाने से अपने को देख लें कि कहां आप जा रहे हैं।
___ च्वांगत्से के घर बच्चा पैदा हुआ—वह लाओत्से का शिष्य था-च्चांगत्से के घर बच्चा पैदा हुआ। और च्वांगत्से बाहर अपने दरवाजे पर बैठ कर छाती पीट कर रोने लगा। गांव के लोग धन्यवाद देने आए थे। उन्होंने कहा, च्वांगत्से, यह तुम क्या कर रहे हो? तो च्यांगत्से ने कहा कि मेरे गुरु ने कहा है, पहला कदम ही जब उठे, तभी सम्हल जाना। मैंने जन्म में मृत्यु देख ली, इसलिए रो रहा हूं।
फिर उस च्वांगत्से की पत्नी मरी, कई वर्षों बाद। सम्राट आया। तब वह अपने झाड़ के नीचे बैठ कर ढपली बजा कर गीत गा रहा था। सम्राट शोक प्रकट करने आया है। उसने कहा कि पागल हो च्यांगत्से! दुखी मत हो, इतना ही काफी है। लेकिन गीत गाने का यह कोई मौका है? च्यांगत्से ने कहा, एक बार मैंने जन्म में मृत्यु देखी थी, इस बार मैंने मृत्यु में जन्म को भी देख लिया।।
इस सूत्र को जीवन के सारे पहलुओं पर हम देखते रहें। और धीरे-धीरे आप पाएंगे कि बहुत कुछ बिना छोड़े छूट गया, बहुत कुछ बिना प्रयास के ही गिर गया। और एक दिन अचानक आदमी पाता है कि वह खड़ा है, दौड़ बंद हो गई। और एक दिन अचानक पाता है, वह अहंकार, जो दूसरों के सहारे निर्मित था, बिखर गया। और उसके बिखरते ही उसकी प्रतीति शुरू होती है, जो हमारा वास्तविक अस्तित्व, हमारी आत्मा है।
आज इतना ही। लेकिन अभी पांच मिनट रुकेंगे। सब कीर्तन करेंगे। फिर आप जाएं। जिन मित्रों को भी कीर्तन में आना है, वे ऊपर आ जाएं। और आप लोगों में से भी कोई सम्मिलित होना चाहें, तो नीचे मंच के नीचे आ जाएं। बैठे मत रहें कोई, ताली बजाएं और कीर्तन में साथ दें।
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