SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 117 ब हुत से प्रश्न पूछे गए हैं। एक प्रश्न दो तीन मित्रों ने पूछा है और स्वाभाविक है कि आपके मन में भी उठे । योग ऊर्ध्वगमन की पद्धति है, ऊर्जा को, शक्ति को ऊपर की ओर ले जाना हैं। और लाओत्से की पद्धति ठीक विपरीत मालूम पड़ती है- ऊर्जा को नीचे की ओर, नाभि की ओर लाना हैं। तो प्रश्न उठना बिलकुल स्वाभाविक है कि इन दोनों पद्धतियों में कौन सी पद्धति सही है? हमारे मन में ऐसे प्रश्न इसीलिए उठते हैं कि हम चीजों को तत्काल विपरीत में तोड़ लेते हैं, विरोध में तोड़ लेते हैं। और हमारे मन में खयाल ही नहीं आता कि विपरीत के बीच भी एक सामंजस्य है। लाओत्से उसी की बात कर रहा है। इसे ऐसा समझें, यह विपरीतता दिखाई पड़ती है। लाओत्से कहता है कि मस्तिष्क से जीवन-ऊर्जा को वापस नाभि के पास ले आना है। नाभि के पास आते ही अस्तित्व से मिलन हो जाएगा। योग कहता है, ऊर्जा को काम - केंद्र से, मूलाधार से उठा कर सहस्रार तक, मस्तिष्क तक लाना है। और सहस्रार के पार जाते ही विराट से मिलन हो जाएगा । ये दो अतियां हैं। और दोनों अतियों से छलांग हो सकती है। लेकिन मध्य से कहीं भी छलांग नहीं हो सकती। ये दो छोर हैं। या तो बिलकुल नीचे के केंद्र पर समस्त ऊर्जा को ले आएं, तो आप छलांग लगा सकते हैं। या फिर सबसे ऊपर के केंद्र पर ऊर्जा को ले जाएं, तो भी छलांग लगा सकते हैं। लेकिन एक बात में योग और लाओत्से दोनों सहमत हैं कि ऊर्जा बुद्धि पर नहीं रुकनी चाहिए। या तो बुद्धि से नाभि पर आ जाए, या बुद्धि से सहस्रार पर चली जाए। बुद्धि पर नहीं रुकनी चाहिए; बीच में ऊर्जा नहीं रुकनी चाहिए। और दोनों ही अतियों से जिस जगत में छलांग लगती है, वह एक ही है। तो तीन बातें हैं। एक तो जो विरोध हमें दिखाई पड़ता है वह हमें इसीलिए दिखाई पड़ता है कि हम, विरोध के बीच भी एक सामंजस्य है, इसे समझ नहीं पाते हैं। पानी को हम पानी से छुटकारा दिलाना चाहें, तो या तो उसे शून्य डिग्री के नीचे तक ठंडा कर देना चाहिए, ताकि वह बर्फ बन जाए; और या सौ डिग्री तक गरम कर देना चाहिए, ताकि वह भाप बन जाए। दोनों ही स्थितियों में पानी पानी नहीं रह जाएगा। दोनों स्थितियों में छलांग लग जाएगी; पानी कुछ और हो जाएगा। या तो मनुष्य की ऊर्जा पहले केंद्र पर आ जाए या अंतिम पर; दोनों से छलांग लग जाएगी। और ज्यादा कठिन होगा समझना यह कि ऊर्जा वर्तुलाकार होती है, सरकुलर होती है। जगत में कोई भी इनर्जी सीधी नहीं चलती, वर्तुल में चलती है। असल में, ऊर्जा के चलने का मार्ग ही सदा वर्तुलाकार होता है। अगर हम एक वर्तुल खींचें, तो जिस बिंदु से मैं वर्तुल को शुरू करूं, वही बिंदु अंतिम भी होगा जब वर्तुल पूरा होगा। तो जहां नाभि केंद्र से छलांग लगा कर व्यक्ति पहुंचता है, वहीं सहस्रार से भी छलांग लगा कर पहुंचता है।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy