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अबस्तित्व ऑन वालीपन है आधान सब का
साल का लंबा...। पता ही नहीं है कि तीस साल जीसस क्या करते रहे। महावीर बारह वर्षों तक जंगल में चुपचाप खड़े रहे। बारह वर्ष तक नहीं बोले, इसलिए जब जो बोले, उसका गुण ही और है, उसकी खूबी ही और है, उसकी शक्ति ही और है। तब एक-एक शब्द प्रगाढ़ हो गया मौन के अर्थ से। तब मौन से यह जो शब्द पैदा हुआ, इस शब्द का वजन, इसकी कीमत, इसका मूल्य और है। . शब्द वही आप भी बोल सकते हैं, कोई अड़चन नहीं है। क्योंकि महावीर ने कोई नए शब्द नहीं बोले। बुद्ध या क्राइस्ट ने या कृष्ण ने कोई नए शब्द नहीं बोले। कृष्ण ने जो भी गीता में बोला है, वे सभी शब्द अर्जुन भलीभांति समझता था। उसने एक भी जगह ऐसा नहीं कहा कि आपके शब्द मेरी समझ में नहीं आते हैं। सब शब्द वह समझता था। वही शब्द वह भी बोल सकता था। लेकिन कृष्ण जब उसी शब्द को बोलते हैं, तो उसका मूल्य और हो जाता है। अर्जुन उसी शब्द को बोले, उसका मूल्य वही नहीं रह जाता।
तो शब्द का अर्थ एक तो भाषा-कोश में लिखा हुआ है, डिक्शनरी में लिखा हुआ है। वह एक अर्थ है। और एक और अर्थ है, जो भीतर के मौन से शब्द में प्रवेश करता है। इसलिए कोई व्यक्ति है कि वह कुछ भी बोले, तो उसके बोलने में काव्य हो जाता है। और कोई व्यक्ति है, वह कविता भी पढ़े, तो भी सब बेरौनक, सब बासा। उसके
ओंठ में आकर ही शब्द जैसे मर जाते हैं। किसी के ओंठ पर आते ही शब्द अमृत हो जाते हैं, यात्रा पर निकल जाते हैं विराट की। ये वे ही ओंठ हैं, जिनके भीतर सघन मौन की क्षमता है। उसी मौन में जब कोई शब्द पलता है और बड़ा होता है, प्रिगनेंट होता है, उस मौन के गर्भ में ही जब कोई शब्द बड़ा होता है...।
अगर हम इसको इस तरह समझ लें, तो आसानी पड़ेगी। अगर एक मां के शरीर में गर्भ निर्मित हो इसी क्षण और इसी क्षण गर्भ बाहर आ जाए और नौ महीने के मौन में न डूबा रहे, तो वह गर्भपात होगा, जन्म नहीं। वह एबॉर्शन होगा और उससे प्राण नहीं निकलेगा, उससे मृत घटना घटेगी। लेकिन नौ महीने के मौन में, नौ महीने के अंधकार में, नौ महीने के निषेध में बच्चा बड़ा होता है और जीवन को उपलब्ध होता है। ठीक वैसे ही जब किसी व्यक्ति के भीतर मां के गर्भ जैसा मौन होता है और उसमें एक शब्द पलता है, पलता है, बड़ा होता है, पोषण पाता है और कभी जन्मता है, तब उसमें प्राण होते हैं।
हमारे शब्द सब गर्भपात होते हैं, एबॉर्शन होते हैं। अखबार पढ़ा, पढ़ कर भागे कि किसी को बता दें अखबार में खबर क्या है। किताब पढ़ी कि अब बेचैन हुए कि लड़का कब स्कूल से लौटे कि उसको उपदेश दें। एबॉर्शन! शब्द को जरा भी मौन में जीने की सुविधा नहीं है। हम सब एबॉर्टिव हैं दिमाग में बिलकुल। तो एक-दूसरे पर अपना-अपना गर्भपात किए चले जाते हैं। और उस पर वह जल्दी दूसरे पर फेंक रहा है, दूसरा तीसरे पर फेंक रहा है, फेंके चले जा रहे हैं।
झेन फकीर बोकोजू के पास जब कोई आता था, तो फकीर बोकोजू कहता था कि अगर शब्द से सीखना हो, तो कहीं और जाओ। अगर शून्य से सीखना हो, तो यहां रुको। हम भी शब्द का उपयोग करते हैं, लेकिन बस इतना ही-शून्य की तरफ इशारा करने को, इंगित करने को। हम भी कभी-कभी शब्द का उपयोग करेंगे, लेकिन बस इतना ही-शून्य की तरफ इशारा करने को। लेकिन असली चीज शून्य है। असली चीज मौन है।
मौन अनस्तित्व है, शब्द अस्तित्व है। और जीवन के हर पहलू पर वह जो हमें दिखाई नहीं पड़ता, वही गहन है। वह जो हमारे स्मरण में नहीं आता, हमारी प्रतीति में नहीं पकड़ता, हमारे अनुभव में नहीं पकड़ में आता, वही मूल्यवान है। जो व्यक्ति विधायक, पाजिटिव को, जो दिखाई पड़ता है, पकड़ में आता है, इंद्रियां जिसे पहचान लेती हैं, उसकी फिक्र कम करता है और उसकी फिक्र ज्यादा करने लगता है, जो अनस्तित्व है, शून्य है, नकार है, मौन है, वह व्यक्ति जीवन के परम सत्य की यात्रा पर निकल जाता है।