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________________ Download More Osho Books in Hindi इसलिए लाओत्से कहता है कि चुप भी हो जाता है सब, मौन से भी कह दिया जाता है, और निष्क्रियता से भी व्यवस्था हो जाती है। व्यक्ति जो है, वह परमाणु है चेतना का जैसे कि साइंस ने खोज लिया एटम; वह है पदार्थ का। अगर हम व्यक्ति के भीतर उतरते चले जाएं और उसी के भीतर उतरने का नाम धर्म है। और ये सारे के सारे जो सूत्र हैं लाओत्से के, ये उसी की तरफ इशारे हैं कि हम भीतर उतरते चले जाएं। Download Hindi PDF Books For Free अब जब हम कहते हैं, कर्म से क्या व्यवस्था करते हो, होने से ही हो जाएगी। तो कर्म तो होता है बाहर, और होना होता है भीतर। बीइंग तो है भीतर, डूइंग है बाहर । जब लाओत्से कहता है कि तुम शुद्ध हो जाओ तो चारों तरफ शुद्धि फैल जाएगी, तुम शुद्ध करने की कोशिश मत करो; तो वह यह कह रहा है कि भीतर जाओ। जब लाओत्से कहता है, शब्द से न कह सकोगे सत्य को, निःशब्द से। तो शब्द तो है बाहर, निःशब्द है भीतर। तो वह कहता है, भीतर जाओ। यह सारा आयोजन, यह सारा इशारा भीतर की तरफ गति का है। और जब कोई भीतर पहुंचता है, तो उस परमाणु को उपलब्ध हो जाता है, जो चैतन्य का परमाणु है, चिन्मय परमाणु है। दि एटम ऑफ कांशसनेस! और उसकी विराट ऊर्जा है। उस चैतन्य के परमाणु को ही हम परमात्मा कहें। उसकी विराट ऊर्जा है। जैसे ही हम उस जगह पहुंचते हैं, इतनी शक्ति हो जाती है कि शक्ति ही काम करती है। फिर हमें अलग से काम नहीं करना पड़ता। अगर हम ऐसा कहें तो अजीब लगेगा: इस जगत में शक्तिहीन ही काम करते हैं; शक्तिशालियों के तो होने से ही काम हो जाता है। इस जगत में जो नहीं जानते, वे ही केवल श्रम करके कुछ कर पाते हैं; जो जानते हैं, वे तो विश्राम से भी कर लेते हैं। जिन्हें पता है, वे तो मौन से भी बोल देते हैं; और जिन्हें पता नहीं है, वे लाख-लाख शब्दों का उपयोग करके भी कुछ भी नहीं कह पाते हैं। लाओत्से का यह सूत्र बहुत बारीक है। वह आदमी ही बारीक था। अभी एक मित्र ने मुझे भीतर जाकर कहा कि आज का सूत्र तो वह जो भी कह रहा है, ऊपर से दिखाई पड़ेगा कि बहुत छोटा है। बहुत छोटा है। छोटा नहीं है, यह सूत्र बहुत बड़ा है। एक ही पंक्ति में है, पर इस एक सूत्र में करीब-करीब सब वेद आ जाते हैं, सब धर्म-ग्रंथ आ जाते हैं। जो भी जानने वालों ने कहा है, इसमें सब समाया हुआ है - इस छोटे से सूत्र में! इस अकेले को बचा कर पूरी किताब भी फेंक दी जाए, तो जो जानता है, वह इस छोटी सी कुंजी से पूरी किताब फिर से खोज लेगा। काफी है। उसे फिर दोहरा दूं। फिर आपके सवाल होंगे। " देयरफोर दि सेज मैनेजेज अफेयर्स विदाउट एक्शन, एंड कनवेज हिज डॉक्ट्रिन विदाउट वर्ड्स । इसलिए ज्ञानी निष्क्रियता से व्यवस्था करता है, और निःशब्द द्वारा अपने दर्शन को संप्रेषित कर देता है । " प्रश्न: इस संबंध में कोई सवाल हों, या पीछे कोई सवाल रह गए हों, तो वे ले लें और कल एक बैठक और बढ़ानी पड़ेगी, ताकि एक सूत्र रह गया है दूसरे अध्याय का, वह हम कल कर लेंगे। भगवान श्री, लाओत्से के अद्वैत मूलक दर्शन की व्याख्या से पता चलता है कि वह परम ज्ञान को उपलब्ध हो चुका था। फिर क्या कारण है कि संसार के इने-गिने लोगों ने ही उसके जीवन-दर्शन को अपना मार्ग-दर्शक बनाया? क्या उसकी यह विफलता ही उसके दृष्टिकोण की कटु आलोचना नहीं है? और क्या अरस्तू का अपनाया जाना उसके विज्ञान की उत्कृष्टता का प्रमाण नहीं है? कृपया इस पर प्रकाश डालें! लाओत्से को बहुत कम लोग जानते हैं। जितना ऊंचा हो शिखर, उतनी ही कम आंखें उस तक पहुंच पाती हैं। जितनी हो गहराई, उतने ही कम डुबकीखोर उस गहराई तक पहुंच पाते हैं। सागर की लहरें तो दिखाई पड़ती हैं, सागर के मोती दिखाई नहीं पड़ते हैं। लाओत्से की गहराई सागरों की गहराई है। कभी कोई गहरा डुबकीखोर वहां तक पहुंच पाता है। जगत डुबकीखोरों से नहीं बना हुआ है। जगत तो उनसे चलता है, जो लहरों पर तैरने वाली नाव बना लेते हैं। आदमी को उस पार जाना होता है; आदमी को सागर की गहराई में जाने का प्रयोजन नहीं होता। तो जो नाव बनाने का विज्ञान बता सकते हैं, वे प्राथमिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अरस्तू महत्वपूर्ण हो गया। क्योंकि अरस्तू ने जो तर्क दिया, वह संसार के काम का है। चाहे दूर जाकर खतरनाक सिद्ध हो, लेकिन पहले कदम में बहुत प्रीतिकर है। चाहे अंतिम फल जहरीला हो, लेकिन ऊपर मिठास की पर्त है। तो अरस्तू की बात समझ में आएगी, क्योंकि अरस्तू शक्ति कैसे उपलब्ध हो, इसके सूत्र दे रहा है और लाओत्से शांति कैसे मिले, इसके सूत्र दे रहा है। यद्यपि शांति ही अंतिम रूप से शक्ति है, और शक्ति अंतिम रूप से सिवाय अशांति के और कुछ भी नहीं है। लेकिन प्राथमिक रूप से ऐसी बात नहीं है। अरस्तू के रास्ते पर चलिए तो एटम बम तक पहुंच जाएंगे। और लाओत्से के रास्ते पर चलिए तो एटम बम तक नहीं पहुंचेंगे। लाओत्से के रास्ते पर चलिए तो लाओत्से पर ही पहुंच जाएंगे, और कहीं नहीं। तो जिन्हें यात्रा करनी है, उनके लिए तो अरस्तू ही अच्छा लगेगा। क्योंकि कहीं-कहीं-कहीं पहुंचते रहेंगे, चांद पर पहुंचेंगे - दूर! लाओत्से पर तो वे ही लोग यात्रा कर सकते हैं, जो यात्रा नहीं ही करना चाहते हैं। बस, लाओत्से पर ही पहुंच सकते हैं। न किसी चांद पर, न किसी तारे पर, किसी अणु बम पर, कहीं भी नहीं । इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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