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आज जिसे हम महात्मा कहते हैं, वह महात्मा ज्ञानी नहीं है। उसका महात्मा होना भी इस बात पर निर्भर करता है कि वह क्या करता है। उसका महात्मा होना उसके शुद्ध अस्तित्व पर निर्भर नहीं करता। उसका महात्मा होना उसके बीइंग पर निर्भर नहीं, उसके डूइंग पर निर्भर है-वह क्या करता है! सवाल यह नहीं है कि व्हाट ही इज़, सवाल यह है कि व्हाट ही इज़ डूइंग, उसने क्या किया? उसका ब्योरा क्या है?
अगर आज हम पूछे कि लाओत्से ने क्या किया? तो कोई भी ब्योरा नहीं है। करने के नाम पर लाओत्से की जिंदगी बिलकुल खाली है। अगर हम करने से तौलें, तो हमारे गांव का जो छोटा-मोटा सेवक होता है, वह भी बहुत कर रहा है। एक ग्राम-सेवक भी ज्यादा कर रहा है लाओत्से से।
नहीं, लेकिन पुराने दिनों ने यह पूछा ही नहीं कि तुम करते क्या हो? पूछा यह कि तुम हो क्या? और समझ यह थी कि जब इतनी बड़ी आत्मिक सत्ता होती है, तो उसके परिणाम में बहुत कुछ होता है जो करना नहीं पड़ता। लाओत्से अगर इस गांव में मौजूद है, तो उसकी मौजूदगी काफी है। इस गांव के लिए जो भी हो सकता है, वह उसकी मौजूदगी से हो जाएगा। करने जाना पड़े, तो लाओत्से कहता है, बहुत कमजोर ज्ञानी है। ज्ञानी की मौजूदगी सक्रियता है। उसका होना काफी है। जैसे चुंबक मौजूद हो, तो फिर उसे कुछ करना नहीं पड़ता, लोहे के टुकड़े खिंचे चले आते हैं। अगर चुंबक को एक-एक लोहे के टुकड़े को खींचने भी जाना पड़े, तो समझना कि चुंबक नकली है। चुंबक नहीं है। चुंबक का होना जो है, उसकी जो शक्ति है, वह उसके बीइंग में, वह उसके होने में छिपी है। उसके होने से ही उसका फील्ड निर्मित होता है, उसका क्षेत्र बनता है। उस क्षेत्र में जो भी आता है, वह खिंच आता है।
बुद्ध जहां बैठ जाएं, वहां एक चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है। उस बीच घटनाएं घटनी शुरू हो जाती हैं। कहानियां कहती हैं-आज कहानियां हो गई हैं-कि बुद्ध जिस गांव में ठहर जाएं, वहां चोरी बंद हो जाती है। नहीं यह कि बुद्ध एक-एक चोर को समझाते हैं। हत्याएं बंद हो जाती हैं। नहीं कि बुद्ध हत्यारों को जाकर राजी करते हैं कि तुम व्रत लो, अणुव्रत ले लो, कि अब हत्या नहीं करोगे। बुद्ध की मौजूदगी!
और बुद्ध मानते हैं कि अगर मेरी मौजूदगी काम न कर पाए, तो मेरे चिल्लाने से नहीं काम होगा। जब अस्तित्व काम नहीं कर पाता, तो वाणी क्या कर पाएगी? अगर मेरा होना ही काम नहीं कर पाता, तो मेरा प्रचार क्या काम कर पाएगा? अस्तित्व तो बड़ी शक्तिशाली चीज है। अगर वह भी बेकार जा रही है, तो चिल्लाने से क्या होगा? अगर बुद्ध चोर के सामने खड़े हैं और चोर की चोरी नहीं गिर जाती, तो बुद्ध के समझाने से क्या होगा कि चोरी छोड़ दो। अगर बुद्ध की मौजूदगी नहीं चोरी छुड़वा पाती, तो बुद्ध की वाणी क्या बुद्ध से बड़ी है?
इसे थोड़ा ऐसा देखें। तो क्या बुद्ध चोर के हाथ-पैर दाबें तो चोर चोरी छोड़ देगा? तो क्या बुद्ध का हाथ-पैर दाबना बुद्ध के होने से बड़ा है?
नहीं, लाओत्से जब कह रहा है, तो वह यह कह रहा है कि बीइंग से बड़ा कुछ भी नहीं है। वह जो आत्म-स्थिति है, उससे बड़ा कुछ भी नहीं है। कर्म वगैरह तो सब परिधि हैं, छोटी-मोटी बातें हैं। वह जो आत्मा में जो सार है, अगर वही कुछ नहीं कर पाता, तो फिर कुछ और कुछ न कर पाएगा।
इसलिए लाओत्से कहता है, देयरफोर। वह फिर कहता है, इसलिए। क्योंकि एक को पैदा करो तो विपरीत पैदा हो जाता है, इसलिए ज्ञानी निष्क्रिय भाव से अपने कार्यों की व्यवस्था और निःशब्द द्वारा अपने दर्शन का संप्रेषण करते हैं। जो उन्होंने जाना है, उसे मौन से कहते हैं; और जो उन्होंने जीया है, उसे मौजूदगी से फैलाते हैं। यह बड़ी मौन घटना है। यह बड़ी सायलेंट, चुप, शांत घटना है। ज्ञानी एक शून्य की तरह विचरण करते हैं, जैसे नहीं हैं।
बड़ी मजेदार घटना है कि लाओत्से की मरने की कोई खबर नहीं मिली है। लाओत्से कब मरा, इसका कोई उल्लेख नहीं है। लाओत्से का क्या हआ, कहां गया, इसका इतिहास के पास कोई लेखा-जोखा नहीं है। एक लोक-प्रचलित बात जरूर चलती रही है हजारों साल तक कि लाओत्से को जिस आदमी ने आखिरी बार देखा, उसने पूछा कि लाओत्से, कहां जा रहे हो? तो लाओत्से ने कहा, जहां से मैं आया था! तो उस आदमी ने पूछा, लेकिन लोग सदा-सदा चिंता करते रहेंगे कि तुम कहां गए? क्या हुआ?
लाओत्से ने कहा, जब मैं पैदा हुआ तो अज्ञानी था। तो थोड़ा शोरगुल मचा था मेरे पैदा होने का। थोड़ी आवाज, घटना घटी थी मेरे पैदा होने की। तब मैं अज्ञानी था। अब मैं ज्ञानी होकर मरूंगा, तो मेरे मरने की कोई भी, कोई भी आवाज भी पैदा नहीं होगी। मेरे मरने की घटना ही नहीं घटेगी एक अर्थ में। घटनाओं के जगत में मेरा कोई लेखा-खोजा नहीं रहेगा। क्योंकि ज्ञानी चुपचाप जीता है और चुपचाप विदा हो जाता है।
और ऐसा ही चुपचाप वह विदा हो गया। लोगों ने जाना भर कि वह था, और अब नहीं है। लेकिन उसकी मृत्यु की कोई घटना नहीं घटी है। घटना इस अर्थ में कि किसी दूसरे को भी पता चल गया हो कि लाओत्से अब मर गया। लाओत्से ने जो यह अंतिम बात कही है किसी यात्री से कि अब मैं ज्ञानी हूं, अब तो मेरे मरने की कोई आवाज, कोई ध्वनि पैदा नहीं होगी। अब तो मैं ऐसे ही खो जाऊंगा, जैसे नहीं था। क्योंकि सच में मैं उसी दिन खो गया, जिस दिन मैंने जाना। अब मैं उस दिन के बाद एक शून्य हूं। शून्य चले
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