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है। नाम हम देते ही इसीलिए हैं कि हम व्यवहार में ला सकें। चीजों के साथ व्यवहार कर सकें; चीजों का हम उपयोग कर सकें; हमारे सारे दिए हुए नाम ऐसे ही कामचलाऊ, यूटिलिटेरियन हैं। उनकी उपयोगिता है, उनका सत्य नहीं है।
क्या हम परमात्मा को, परम सत्ता को भी नाम दे सकते हैं? क्या हमारा दिया हुआ नाम अर्थपूर्ण होगा?
हम छोटी सी वस्तु को भी नाम देते हैं, तो उसकी सत्ता को भी विकृत कर देते हैं। हमने दिया नाम कि सत्ता विकृत हुई, सीमा बंधी। हम परमात्मा को नाम, पहली तो बात यह है, दे न सकेंगे। क्योंकि कहीं भी उसे हमारी आंखें देख नहीं पाती हैं, कहीं भी हमारे हाथ उसे छू नहीं पाते हैं, कहीं भी हमारे कान उसे सुन नहीं पाते हैं, कहीं उससे हमारा मिलन नहीं होता है। और फिर भी, जो जानते हैं, वे कहते हैं, हमारी आंख उसी को देखती है सब जगह; उसी को सुनते हैं हमारे कान; जो भी हम छूते हैं, उसी को छूते हैं; और जिससे भी हमारा मिलन होता है, उसी से मिलन है। पर ये वे, जो जानते हैं। जो नहीं जानते, उन्हें तो उसका कहीं दर्शन नहीं होता। उसे नाम कैसे देंगे? और जो जानते हैं, जिन्हें उसका ही दर्शन होता है सब जगह, वे भी उसे कैसे नाम देंगे? क्योंकि जो चीज कहीं एक जगह हो, उसे नाम दिया जा सकता है।
एक मित्र को हम मुसलमान कह सकते हैं, क्योंकि वह मस्जिद में मिलता है, मंदिर में नहीं मिलता। वह आदमी मंदिर में भी मिल जाए, वह आदमी गुरुद्वारे में भी मिल जाए, वह आदमी चर्च में भी मिल जाए, वह आदमी एक दिन तिलक लगाए हुए और कीर्तन करता मिल जाए और एक दिन नमाज पढ़ता मिल जाए, तो फिर मुसलमान कहना मुश्किल हो जाएगा। और तब तो बहुत ही मुश्किल हो जाएगा कि जहां भी आप जाएं, वही आदमी मिल जाए। तब तो फिर उसे मुसलमान न कह सकेंगे।
जो नहीं जानते हैं, वे नाम नहीं दे सकते, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं वे किसे नाम दे रहे हैं। और जो जानते हैं, वे भी नाम नहीं दे सकते, क्योंकि उन्हें पता है, सभी नाम उसी के हैं, सभी जगह वही है। वही है।
इसलिए लाओत्से कहता है, उसे नाम नहीं दिया जा सकता। ऐसा कोई नाम नहीं दिया जा सकता, जिसका सुमिरण हो सके।
और नाम तो इसीलिए होते हैं कि उनका सुमिरण हो सके। नाम इसीलिए होते हैं कि हम पुकार सकें, बुला सकें, स्मरण कर सकें। अगर ऐसा उसका कोई नाम है जिसका सुमिरण न हो सके, तो उसे नाम कहना ही व्यर्थ है। नाम है किसलिए? एक बाप अपने बेटे को नाम देता है कि बुला सके, पुकार सके; जरूरत हो, आवाज दे सके। नाम की उपयोगिता क्या है, कि पुकारा जा सके। और लाओत्से कहता है कि सुमिरण हो सके, तो वह नाम उसका नाम नहीं है। सुमिरण के लिए ही तो लोगों ने नाम रखा है। कोई उसे राम कहता है, कोई उसे कृष्ण कहता है, कोई उसे अल्लाह कहता है। सुमिरण के ही लिए तो नाम रखा है। इसलिए कि हम, जो नहीं जानते, उसकी याद कर सकें, उसे पुकार सकें।
लेकिन हमें, जिन्हें उसका पता ही नहीं है, हम उसका नाम कैसे रख लेंगे? और जो भी हम नाम रखेंगे वह हमारे संबंध में तो खबर देगा, उसके संबंध में कोई भी खबर नहीं देगा। जब आप कहते हैं, हमने उसका नाम राम रखा है। तो उससे खबर मिलती है कि आप हिंदू घर में पैदा हुए हैं, और कुछ भी नहीं। इससे उसका नाम पता नहीं चलता। आप कहते हैं, हम उसका नाम अल्लाह मानते हैं। इससे इतना ही पता चलता है कि आप उस घर में बड़े हुए हैं जहां उसका नाम अल्लाह माना जाता रहा है। इससे आपके बाबत पता चलता है; इससे उसके संबंध में कुछ भी पता नहीं चलता। और इसीलिए तो अल्लाह को मानने वाला राम को मानने वाले से लड़ सकता है। अगर अल्लाह वाले को पता होता कि यह किसका नाम है, और राम वाले को पता होता कि यह किसका नाम है, तो झगड़ा असंभव था। वह तो कुछ भी पता नहीं है। नाम ही हमारे हाथ में है। जिसे हमने नाम दिया है, उसका हमें कोई भी पता नहीं है।
लाओत्से बड़ी अदभुत शर्त लगाता है। वह शर्त यह लगाता है कि जिसका स्मरण किया जा सके, वह उसका नाम नहीं है।
और सभी नामों का स्मरण किया जा सकता है। ऐसा कोई नाम आपको पता है जिसका स्मरण न किया जा सके? अगर स्मरण न किया जा सके, तो आपको पता भी कैसे चलेगा?
बोधिधर्म सम्राट वू के सामने खड़ा है। और सम्राट वू ने उससे पूछा है, बोधिधर्म, उस पवित्र और परम सत्य के संबंध में कुछ कहो! बोधिधर्म ने कहा, कैसा पवित्र? कुछ भी पवित्र नहीं है! नथिंग इज़ होली! और कैसा परम सत्य? देयर इज़ नथिंग बट एम्पटीनेस। शून्य के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।
स्वभावतः, सम्राट वू चौंका और उसने बोधिधर्म से कहा, फिर क्या मैं यह पूछने की इजाजत पा सकता हूं कि मेरे सामने जो खड़ा होकर बोल रहा है, वह कौन है? तो बोधिधर्म ने क्या कहा, पता है? बोधिधर्म ने कहा, आई डू नॉट नो, मैं नहीं जानता। यह जो तुम्हारे सामने खड़े होकर बोल रहा है, यह कौन है, यह मैं नहीं जानता।
वू तो समझा कि यह आदमी पागल है। वू ने कहा, इतना भी पता नहीं कि तुम कौन हो? बोधिधर्म ने कहा, जब तक पता था, तब तक कुछ भी पता नहीं था। जब से पता चला है, तब से यह भी नहीं कह सकता कि पता है। क्योंकि जिसका पता चल जाए, जिसे हम पहचान लें, जिसे हम नाम दे दें, वह भी कोई नाम है!
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