SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free लाओत्से कहता है, "जिस पथ पर विचरण किया जा सके, वह सनातन, अविकारी पथ नहीं है।' बहुत सी बातें इस छोटे से सूत्र में हैं। एक, जिस पथ पर चला जा सके, जिस पर चलने की घटना घट सके, उस पर पहुंचने की घटना न घटेगी। क्योंकि जहां हमें पहुंचना है, वह कहीं दूर नहीं, यहीं और अभी है। अगर मुझे आपके पास आना हो, तो मैं किसी रास्ते पर चल सकता हूं। लेकिन मुझे अपने ही पास आना हो, तो मैं किस रास्ते पर चलूंगा? और जितना चलूंगा रास्तों पर, उतना ही भटक जाऊंगा; अपने से दूर, और दूर होता चला जाऊंगा। जो आदमी स्वयं को खोजने किसी रास्ते पर जाएगा, वह अपने को कभी भी नहीं पा सकेगा। कैसे पा सकेगा? अपने ही हाथ से, खोज के ही कारण, वह अपने को खो देगा। जिसे स्वयं को खोजना है उसे तो सब रास्ते छोड़ देने पड़ेंगे, क्योंकि स्वयं तक कोई भी रास्ता नहीं जाता है। असल में, स्वयं तक पहुंचने के लिए रास्ते की जरूरत ही नहीं है। रास्ते की जरूरत तो दूसरे तक पहुंचने के लिए है। स्वयं तक तो वह पहुंच जाता है, जो सब रास्तों से उतर कर खड़ा हो जाता है। जो चलता ही नहीं, वह पहुंच जाता है। तो लाओत्से कहता है, जिस पथ पर चला जा सके, वह सनातन और अविकारी पथ नहीं है। दो बातें कहता है। वह सनातन नहीं है। असल में, जिस रास्ते पर भी हम चल सकें, वह हमारा ही बनाया हुआ होगा। हमारा ही बनाया हुआ होगा, इसलिए सनातन नहीं होगा। आदमी का ही निर्मित होगा, इसलिए परमात्मा से निर्मित नहीं होगा। और जो पथ हमने बनाया है, वह सत्य तक कैसे ले जाएगा? क्योंकि अगर हमें सत्य के भवन का पता होता, तो हम ऐसा रास्ता भी बना लेते जो सत्य तक ले जाए। ध्यान रहे, रास्ता तो तभी बनाया जा सकता है, जब मंजिल पता हो। मुझे आपका घर पता हो, तो मैं वहां तक रास्ता बना लूं। लेकिन यह बड़ी कठिन बात है। अगर मुझे आपका घर पता है, तो मैं बिना रास्ते के ही आपके घर पहुंच गया होऊंगा। नहीं तो फिर मुझे आपके घर का पता कैसे चला है? इजिप्त के पुराने सूफियों के सूत्रों का एक हिस्सा कहता है कि जब तुम्हें परमात्मा मिलेगा और तुम उसे पहचानोगे, तब तुम जरूर कहोगे कि अरे, तुम्हें तो मैं पहले से ही जानता था! और अगर तुम ऐसा न कह सकोगे, तो तुम परमात्मा को पहचान कैसे सकोगे? रिकग्नीशन इज़ इम्पासिबल। रिकग्नीशन का तो मतलब ही यह होता है। अगर परमात्मा मेरे सामने आए और मैं खड़े होकर उससे पूछं कि आप कौन हैं? तब तो मैं पहचान न सकूँगा। और अगर मैं देखते ही पहचान गया कि प्रभु आ गए, तो उसका अर्थ है कि मैंने कभी किसी क्षण में, किसी कोने से, किसी दवार से जाना था; आज पहचाना। यह रिकग्नीशन है। हम जाने को ही पहचान सकते हैं। अगर आपको पता ही है कि सत्य कहां है, तो आपके लिए रास्ते की जरूरत कहां रही? आप सत्य तक कहीं पहुंच ही गए हैं, जान ही लिया है। तो जिसे पता है वह रास्ता नहीं बनाता। और जिसे पता नहीं है वह रास्ता बनाता है। और जो नहीं जानते, उनके बनाए हुए रास्ते कैसे पहुंचा पाएंगे? वे सनातन पथ नहीं हो सकते। सनातन पथ कौन सा है? जो आदमी ने कभी नहीं बनाया। जब आदमी नहीं था, तब भी था। और जब आदमी नहीं होगा, तब भी होगा। सनातन पथ कौन सा है? जिसे वेद के ऋषि नहीं बनाते, जिसे बुद्ध नहीं बनाते, जिसे महावीर नहीं बनाते, मोहम्मद, कृष्ण और क्राइस्ट जिसे नहीं बनाते। ज्यादा से ज्यादा उसके संबंध में कुछ खबर देते हैं, बनाते नहीं। इसलिए ऋषि नहीं कहते कि हम जो कह रहे हैं, वह हमारा है। कहते हैं, ऐसा पहले भी लोगों ने कहा है, ऐसा सदा ही लोगों ने जाना है। यह जो हम खबर ला रहे हैं, यह उस रास्ते की खबर है जो सदा से है। जब हम नहीं थे, तब भी था। और जब कोई नहीं था, तब भी था। जब यह जमीन बनती थी और इस पर कोई जीवन न था, तब भी था। और जब यह जमीन मिटती होगी और जीवन विसर्जित होता होगा, तब भी होगा। आकाश की भांति वह सदा मौजूद था। यह दूसरी बात है कि हमारे पंख इतने मजबूत न थे कि हम उसमें कल तक उड़ सकते; आज उड़ पाते हैं। यह दूसरी बात है कि आज भी हम हिम्मत नहीं जुटा पाते और अपने घोंसले के किनारे पर बैठे रहते हैं, परों को तौलते रहते हैं, और सोचते रहते हैं कि उड़ें या न उड़ें। लेकिन वह आकाश आपके उड़ने से पैदा नहीं होगा। वह आपके पंख भी जब पैदा न हुए थे, जब आप अंडे के भीतर बंद थे, तब भी था। और आपके पास पंख भी हों, और आप बैठे रहें और न उड़ें, तो ऐसा नहीं कि आकाश नहीं है। आकाश है। आकाश आपके बिना है। तो सनातन पथ तो वह है जो चलने वाले के बिना है। अगर चलने वाले पर कोई पथ निर्भर है, तो वह सनातन नहीं है। और जिस पथ पर भी चला जा सकता है वह विकारग्रस्त हो जाता है, क्योंकि चलने वाला अपनी बीमारियों को लेकर चलता है। इसे भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy