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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free पर फिर भी हमारे रंग बहुत फीके हैं। एल एस डी के बाद जो रंग दिखाई पड़ते हैं, वे रंग हमने कभी देखे नहीं हैं। पर एल एस डी कुछ भी नहीं करता, आपकी साधारण चेतना को थोड़ा सा फैलाव देता है, जैसे कि हमने किसी गुब्बारे में थोड़ी हवा और भर दी और वह बड़ा हो गया। पर उस थोड़े से फैलाव में सब रंग बदल जाते हैं। साधारण किनारे, रास्ते के किनारे पड़े हुए कंकड़-पत्थर हीरेमोतियों जैसे चमकने लगते हैं। आज अगर एल एस डी का इतना प्रभाव है सारे पश्चिम पर और सारी पश्चिम की नई पीढ़ी दीवानी है, उसका और कोई कारण नहीं है। यह सारा जगत बहुत रूपवान हो जाता है। यह सारा जगत ऐसा सेंसेशन से भर जाता है, जैसा हमने कभी नहीं जाना। साधारण सा हाथ परमात्मा का हाथ जैसा मालूम हो सकता है। साधारण से कपड़े ऐसी रौनक और ऐसी महिमा ले लेते हैं, जैसा कि कल्पना के बाहर है। यह सब ... एल एस डी ने एक नया खयाल तो खोला। वह नया खयाल यह है कि चेतना अगर जरा सी फैल जाए, तो जगत बिलकुल दूसरा हो जाता है। लेकिन महावीर या लाओत्से जैसी चेतना जब पूरी फैलती होगी, छोटी-मोटी नहीं, पूरी तरह ही फैल जाती होगी असल में, जो-जो रोकने वाले कारण थे अहंकार के, वे सब गिर जाते होंगे, फैलाव पूर्ण हो जाता होगा उस क्षण कुर्सी में और आप में क्या फर्क रहेगा? समझ में आपके अभी आना मुश्किल पड़ेगा, क्योंकि जिस कुर्सी को आप जानते हैं, वह भी असली कुर्सी नहीं है; और जिस आप को आप जानते हैं, वह भी असली आप नहीं हैं। दो नकली चीजों के बीच आप हिसाब लगाने बैठेंगे, कुछ खयाल में नहीं आ सकता । आप असली हो जाइए, तो कुर्सी को भी असली होने का मौका मिले। क्योंकि नकली आदमी असली कुर्सी को नहीं देख सकता है। और तब आपके लिए नए द्वार...। हक्सले ने अपनी किताब का नाम रखा है: न्यू डोर्स ऑफ परसेप्शन-दर्शन के नए द्वार; एल एस डी से और एल एस डी तो सिर्फ एक रासायनिक परिवर्तन है। छह घंटे, आठ घंटे, बारह घंटे के लिए रहेगा, फिर खो जाएगा; और वह भी अत्यल्प। लेकिन जिन्हें परमात्म-अनुभव हुआ, जिनकी स्वचेतना खो गई- चेतना खो गई नहीं, जिनकी स्वचेतना खो गई और जो चैतन्य हुए, उनके लिए तो सारे फासले गिर जाते हैं और प्रत्येक जगत का कण-कण ...। अगर महावीर सम्हल कर चलते हैं, तो जैसा जैनी समझते हैं वैसा नहीं है कि चींटी को बचाने के लिए चल रहे हैं; कि कहीं कोई मच्छर न मर जाए, इसलिए परेशान हैं। जो मच्छर आपको दिखाई पड़ता है, वह महावीर को नहीं दिखाई पड़ता । नहीं तो वे भी इतनी फिक्र उसकी नहीं कर सकते हैं। जो चींटी आपको दिखाई पड़ती है, वह महावीर को दिखाई पड़ती हो, तो इतनी फिक्र वे भी नहीं कर सकते हैं। असल में, चींटी में पहली बार उस ब्रह्म के दर्शन होते हैं, जो हमको कभी नहीं होते। इसलिए महावीर बचा कर चलते हैं, ऐसा नहीं । और कोई उपाय ही नहीं है, चलना ही पड़ेगा ऐसा बच कर मच्छर मच्छर नहीं है, चींटी चींटी नहीं है। उतना ही जीवन उनमें प्रकट हो गया, जितना खुद महावीर के भीतर प्रकट हो रहा है। एक और ही जगत का द्वार खुलता है। उस जगत के द्वार खुलने पर आप इसी दुनिया में नहीं रहते। इसलिए इस दुनिया के सवाल आप मत पूछिए। इस दुनिया के सवाल से उस दुनिया का कोई तालमेल, कोई कंसिस्टेंसी, कोई रेलेवेंस नहीं है। हमारे सवाल करीब-करीब ऐसे हैं, जैसे कि आप मुझसे पूछें कि सपने में मैं सो जाता हूं, तो जब मैं सो जाता हूं तो मेरे स की हालत में मेरे कमरे का और मेरा क्या संबंध होता है? हुए सपने कोई संबंध नहीं होता । कि होता है कोई संबंध? आप इस कमरे में सो सकते हैं और लंदन में हो सकते हैं सपने में। कमरे के भीतर बंद सो सकते हैं और खुले आकाश के नीचे हो सकते हैं, चांदतारों के नीचे, सपने में क्या संबंध होता है आपका इस कमरे से सोते वक्त? नहीं, जैसे ही आप सोते हैं, आप चेतना के दूसरे आयाम में प्रवेश कर जाते हैं। यह कमरा जिस आयाम में था, वहीं पड़ा रह जाता है; आप दूसरी दुनिया में चले गए। फिर आपको इस कमरे के बाहर जाना हो, तो दरवाजा नहीं खोलना पड़ता। स्वभावतः, आप पूछेंगे कि सपने में अगर बाहर जाना हो, तो चाबी पास रखनी चाहिए? कि सपना ठीक से देखना हो, तो चश्मा लगाना चाहिए ? नहीं, चश्मे की कोई जरूरत न पड़ेगी, आंखें कितनी ही कमजोर हों। आप दूसरे आयाम में प्रवेश कर रहे हैं, जहां इस तरह के चश्मे की कोई जरूरत न पड़ेगी। इस आंख की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। इस दरवाजे को खोलने की भी जरूरत नहीं, और बाहर हो जाएंगे। लेकिन जिस आदमी ने सपना न देखा हो कभी, उससे आप कहें कि एक ऐसी भी हालत होती है कि बिना दरवाजा खोले बाहर हो जाते हैं। वह कहेगा, माफ करो, आपका दिमाग ठीक है? अगर आप किसी आदमी से कहें, जिसने सपना न देखा हो, कि एक ऐसी भी हालत होती है कि न हवाई जहाज में बैठो, न ट्रेन में सवार हो, न जहाज में यात्रा करो, क्षण भर में यहां से लंदन पहुंच जाओ, कोई बीच में वाहन की जरूरत ही नहीं पड़ती; दरवाजा खोलो मत, चाबी की जरूरत नहीं, निकल जाओ, पहुंच जाओ। वह कहेगा, आपका दिमाग तो ठीक है न? जिसने सपना न देखा हो, वह आपसे पूछेगा, तो टकरा न जाएंगे बंद दरवाजे से? तो बिना चाबी के ताला कैसे खुलेगा? उसके सब सवाल संगत हैं। फिर भी आप हंसेंगे। आप कहेंगे, तुझे सपने का पता नहीं। वहां ये कोई सवाल संगत नहीं हैं। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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