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एक मित्र ने पूछा है कि क्या जितने भी ज्ञानी हैं, उनका चित्त स्त्रैण हो जाएगा? होही जाएगा। लेकिन स्त्रैण से मतलब नहीं है यह कि वे स्त्रियां हो जाएंगे। स्त्रैण से मतलब यह है कि उनका चित्त एग्रेसिव की जगह रिसेप्टिव हो जाएगा, आक्रामक की जगह ग्राहक हो जाएगा। यह ग्राहकता ही जब होती है पैदा, तभी कोई व्यक्ति परमात्मा के लिए अपने भीतर द्वार खोल पाता है। उन्होंने पूछा है, इसका अर्थ यह हुआ कि मोहम्मद तो ज्ञान के बाद भी तलवार लेकर लड़ने जाते हैं?
निश्चित ही जाते हैं। लेकिन मोहम्मद की तलवार पर आपको पता है, क्या लिखा है? मोहम्मद की तलवार पर लिखा है: शांति के अतिरिक्त यह तलवार और कहीं नहीं उठेगी। तलवार पर खुदा है यह। आपको पता है, इसलाम शब्द का अर्थ ही होता है शांति! अगर मोहम्मद को तलवार भी उठानी पड़ती है, तो मोहम्मद के कारण नहीं, आस-पास की परिस्थितियों के कारण। लेकिन मोहम्मद जिन पर तलवार उठाते हैं, उन पर भी क्रोध और आक्रमण और हिंसा नहीं है। उन पर भी दया है। मोहम्मद को बहुत कम समझा जा सका है। इस जगत में जिन लोगों के साथ बहुत अनाचार हुआ है, उनमें एक मोहम्मद हैं। और उनकी तलवार की वजह से बहुत अनाचार हो गया। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि मोहम्मद की तलवार ठीक सर्जिकल है, ठीक सर्जन के हाथ में जैसे तलवार हो, ऐसी है! और कभी ऐसी जरूरत निश्चित हो जाती है कि किसी ऐसे व्यक्ति को भी तलवार उठानी पड़ती है, जिसके हाथ में तलवार की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। मोहम्मद के हाथ में तलवार की कोई कल्पना करने की जरूरत नहीं है। मोहम्मद के पास जो हृदय है, वह अत्यंत कोमल से कोमल हृदय है। लेकिन मोहम्मद के चारों तरफ जो स्थिति है, अगर इस कोमल हृदय को कुछ भी काम करना है, तो इसे हाथ में तलवार लेनी पड़ेगी।
लेकिन इसका दुष्परिणाम होता है। वह मोहम्मद के हाथ में तलवार लेने से नहीं होता, वह पीछे होता है; क्योंकि तब बहुत से ऐसे लोग मोहम्मद के पीछे खड़े हो जाते हैं, जिनका मजा केवल तलवार हाथ में लेने का है। वे उपद्रव खड़ा करते हैं। उन्होंने मोहम्मद को बदनाम किया। उन्होंने इसलाम को भी विकृत किया।
मोहम्मद तलवार लेते हैं, क्योंकि जरूरत है। कृष्ण युद्ध की सहायता में खड़े हो जाते हैं, युद्ध करवाते हैं; क्योंकि उसकी जरूरत है। असल में, इस जगत में चुनाव जो है, वह एक बात समझ लेंगे, तो खयाल में आ जाएगा। हम जगत में सब चीजों को दो में तोड़ देते हैं: अंधेरी और सफेद, व्हाइट एंड ब्लैक। जब कि वस्तुतः जगत में कोई चीज व्हाइट और ब्लैक नहीं होती, सभी चीजें ग्रे होती हैं; डिग्रीज होती हैं, डिग्रीज ऑफ ग्रे। थोड़ी ज्यादा सफेद और थोड़ी कम सफेद, थोड़ी ज्यादा काली और थोड़ी ज्यादा काली। जब भी हम कहते हैं कि यह ठीक और यह गलत, तो हम भूल जाते हैं कि हम जिंदगी की बात नहीं कर रहे हैं।
मोहम्मद तलवार उठाते हैं इसलिए कि उनका न उठाना और भी बुरा होगा। इसको ठीक से समझ लें। लेसर ईविल यही है कि मोहम्मद तलवार उठा लें। क्योंकि तलवार तो उठेगी ही। और मोहम्मद नहीं उठाएंगे, तो जिसके हाथ में भी तलवार उठेगी, वह ग्रेटर ईविल होगा। मोहम्मद जिस स्थिति में हैं, उसमें उन्हें प्रतीत होता है कि उन्हें ही तलवार उठा लेना उचित होगा।
कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू लड़! इसलिए नहीं कि कृष्ण की लड़ने में कोई उत्सुकता है। कृष्ण से ज्यादा स्त्रैण-चित्त का आदमी खोजना तो बहुत मुश्किल होगा। इसलिए हमने तो उनका चित्र भी बिलकुल स्त्रियों जैसा बनाया है। इतना स्त्रैण चित्र हमने किसी का नहीं बनाया। कृष्ण को जितना हमने स्त्री जैसा चित्रित किया है, वैसा हमने बुद्ध-महावीर को भी नहीं किया, लाओत्से को भी नहीं किया। कृष्ण को तो हमने बिलकुल स्त्रैण बनाया है। सब साज-संवार उनका स्त्रियों जैसा है। कपड़े-लते स्त्रियों जैसे हैं। सारा ढंग उनका स्त्रियों जैसा है। उनका नाच, उनका गीत, सब स्त्रियों जैसा है। यह आदमी, जो इतना स्त्रैण हमने चित्रित किया है, यह अर्जुन को, जो कि बहुत बहादुर पुरुष था, भाग रहा था, उसको लड़वाने के लिए प्रेरणा देने वाला बना। आखिर कृष्ण को इतनी-इतनी-इतनी आग्रह करने की क्या जरूरत है कि अर्जुन लड़े?
जरूरत इसलिए है कि कृष्ण को एक बात साफ है: अर्जुन नहीं लड़ता है, तो भी जो बुराई है, वह होकर रहेगी; लेकिन बहुत बुरे हाथों से होकर रहेगी। अर्जुन उन सबसे बेहतर है। और अर्जुन युद्ध से भागना चाहता है, इस वजह से कृष्ण को और भी स्पष्ट हो गया कि यह आदमी बेहतर है और युद्ध इसी के द्वारा करवा लेना ठीक होगा। युद्ध तो होकर रहेगा। युद्धखोर करेंगे। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि अगर अर्जुन की जगह भीम के रथ पर कृष्ण बैठे होते, तो शायद गीता पैदा न होती। क्योंकि भीम इतना आतुर होता कि जल्दी बढ़ाओ, आगे ले चलो। हो सकता है, कृष्ण खुद ही कहते कि क्षमा कर, यह युद्ध ठीक नहीं है। यह अर्जुन इसमें कारगर है, अर्जुन भागने की कहने लगा। उसने सिद्ध कर दी एक बात तो कि वह आदमी भला है, एकदम भला है। कृष्ण को पक्का हो गया कि इस भले आदमी के हाथ में तलवार दी जा सकती है।
असल जो सारी-सारी बात है, वह यह है कि तलवार भले आदमी के हाथ में ही दी जा सकती है। और तलवार अक्सर बुरे आदमी के हाथ में होती है। और भला आदमी तलवार छोड़ देता है और बुरा आदमी तलवार उठा लेता है। इसलिए भला आदमी बुराई को करवाने का कारण बन जाता है। जगत में जब चुनाव करना पड़ता है, तो विकल्प ऐसा नहीं होता कि यह अच्छा है और यह बुरा है। विकल्प ऐसा होता है कि यह कम बुरा है, यह ज्यादा बुरा है। जीवन में सब चुनाव ऐसे ही हैं। यहां ऐसा नहीं है कि यह अमृत है और यह जहर है। यहां ऐसा है कि यह कम जहर है और यह ज्यादा जहर है। कम जहर को चुनना पड़ता है। यही अमृत का चुनाव है।
मोहम्मद और कृष्ण उस कम जहर को चुनते हैं। परिस्थितियां उनकी भिन्न हैं।
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