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एक परिवार नहीं बना पाए। वह स्त्री केंद्र पर न हो, तो कोई भी घर पागलखाना हो जाएगा। वह स्त्री केंद्र पर हो, तो हमारे हजार तरह के तनावों को विसर्जित करने का काम करती है। अगर संस्कृति के केंद्र पर भी स्त्री हो, तो हमारे हजार तरह के तनाव विसर्जित हो जाते हैं। स्त्रैण चित्त को हमें संस्कृति के निर्माण में बुनियादी आधार देना पड़ेगा और वक्त आ गया है कि हमें आने वाले तीसचालीस वर्षों में निर्णय करना है। इसलिए मैंने लाओत्से पर बात शुरू करनी उचित समझी।
निश्चित ही, आज लाओत्से बिलकुल उलटा दिखाई पड़ता है। आदमी बहुत जटिल है, और लाओत्से सरलता की बात करता है। और आदमी बहुत अहंकारी है, और लाओत्से विनम्रता की बात करता है। और आदमी शिखर चढ़ना चाहता है चांदतारों के, और लाओत्से खाइयों और गड्ढों के नियम की बात करता है। आदमी प्रथम होना चाहता है, और लाओत्से कहता है, अंतिम हुए बिना कोई और जीवन के आनंद को पाने का उपाय नहीं है। तो लग सकता है कि ऐसे उलटे युग में लाओत्से की बात कौन सुनेगा ?
लेकिन मैं आपसे कहूं, जब हम एक अति पर पहुंच जाते हैं, तभी दूसरी अति पर बदलने की हमारी तैयारी शुरू होती है । जटिलता की हम अति पर पहुंच गए हैं। अब उसके आगे कोई उपाय नहीं है। और विपरीत बात हमारी समझ में आ सकती है। जैसे कोई आदमी बहुत श्रम करके थक गया हो, तभी उसे नींद की बात समझ में आ सकती है। निद्रा श्रम के बिलकुल विपरीत है।
लेकिन कोई थका ही न हो, जैसा कि अक्सर होता है। जिनके पास सुविधा है, वे दिन में श्रम करने से बच जाते हैं और फिर शिकायत करते हैं कि रात उन्हें नींद नहीं आती । सुविधा है, श्रम करने से बच जाते हैं, तो वे सोचते हैं कि उन्हें और भी गहरा विश्राम उपलब्ध होना चाहिए। लेकिन वे गलती में हैं। क्योंकि विश्राम केवल उसी को उपलब्ध होता है, जो गहरे श्रम में गया हो। गहरे श्रम में जाने के बाद ही विश्राम में जाने की सुविधा बनती है। और गहरे विश्राम में जाने के बाद ही पुनः श्रम में उतरने की शक्ति अर्जित होती है। जीवन सदा ही विपरीत तटों बीच में बहती हुई नदी की धार जैसा है।
हमने पुरुष के किनारे पर काफी जी लिया। और अब वक्त आ गया है कि हम स्त्री के किनारे पर सरक जाएं। और उस सरकने से एक संतुलन और एक बैलेंस और एक सम्यक स्थिति निर्मित हो सकती है। यह बदलाहट का वक्त है। इसलिए मैं ऐसा नहीं देखता कि जटिल आदमी हैं, इसलिए कैसे हम लाओत्से की बात समझेंगे! मैं ऐसा देखता हूं कि चूंकि आदमी इतना जटिल हो गया है कि अब और जटिलता की बात उसकी समझ में नहीं आ सकेगी, अब विश्राम की बात ही समझ में आ सकती है।
असल में, आदमी वहां पहुंच गया है, जहां पुरुष-चित्त अपनी पूरी अभिव्यक्ति में है। अब और आगे उपाय नहीं है। तनाव पूरा हो जाए, तो विश्राम उपलब्ध हो जाता है। और आदमी दौड़ता रहे, दौड़ता रहे, और पूरी तरह दौड़ ले, तो गिर जाता है और रुक जाता है। कभी आपने सोचा कि दौड़ने की अंतिम मंजिल क्या होती है? दौड़ने की अंतिम मंजिल गिरने के सिवाय और कुछ भी नहीं होती । विपरीत आ जाता है अंत में हाथ ।
लाओत्से अभी हाथ में आया जा सकता है। अपने समय में लाओत्से की बात लोगों की समझ में नहीं आई, क्योंकि लोग इतने जटिल नहीं थे कि लाओत्से उनके लिए चिकित्सक बन सकता। लोग इतने परेशान भी नहीं थे कि लाओत्से की बात उनके खयाल में आती । लोग अभी प्रथम खड़े ही नहीं हुए थे कि अंतिम खड़े होने का सूत्र समझ पाते। लेकिन हम प्रथम खड़े हो गए हैं। लोगों के पास इतना धन भी नहीं था कि निर्धनता की मौज, निर्धनता का आनंद भी उनके खयाल में आ सकता। लेकिन अब इतना धन जमीन पर इकट्ठा हुआ जा रहा है कि निर्धनता, स्वतंत्रता किसी भी दिन मालूम पड़ सकती है।
एक घटना मुझे याद आती है। कनफ्यूशियस एक गांव से गुजरता है; और देखता है, एक बूढ़ा आदमी अपने बगीचे में अपने बेटे को अपने साथ जोते हुए कुएं से पानी खींच रहा है। कनफ्यूशियस चकित हुआ । और कनफ्यूशियस ने बूढ़े आदमी के पास जाकर कहा कि क्या तुम्हें पता नहीं है कि अब लोग घोड़ों या बैलों से पानी खींचने लगे हैं! और राजधानी में तो कुछ मशीनें भी बना ली गई हैं, जिनके द्वारा पानी खींचा जाता है! उस बूढ़े आदमी ने कनफ्यूशियस को कहा कि जरा धीरे बोलो, कहीं मेरा बेटा न सुन ले। तुम थोड़ी देर से आना।
कनफ्यूशियस बहुत हैरान हुआ। जब वह थोड़ी देर बाद पहुंचा, तो उस बूढ़े ने, जो वृक्ष के नीचे लेटा था, कनफ्यूशियस से कहा कि ये बातें यहां मत लाओ। यह तो मुझे पता है कि अब घोड़े जोते जाने लगे हैं। घोड़ा जोत कर मैं बेटे का समय तो बचा दूंगा; लेकिन फिर बेटे के उस समय का मैं क्या करूंगा? और घोड़ा जोत कर मैं बेटे की शक्ति भी बचा दूंगा; लेकिन उस शक्ति का मेरे पास कोई उपयोग नहीं है। तुम अपनी मशीन और अपने घोड़े को शहर में रखो, यहां उसकी खबर मत लाओ।
लेकिन यह खबर रुक नहीं सकती थी। यह पहुंच गई। एक बाप के पास नहीं, दूसरे बाप के पास पहुंच गई होगी। और धीरे-धीरे सब जगह आदमी को हटा कर मशीन आ गई। यह जो बूढ़ा था, यह लाओत्से का अनुयायी था। लेकिन कनफ्यूशियस जीत गया। लेकिन आज फिर लाओत्से वापस जीत सकता है। क्योंकि जहां-जहां मशीन पूरी तरह आ जाएगी, वहीं-वहीं सवाल उठेगा कि आदमी समय का अब क्या करे? शक्ति का क्या करे? और जिस शक्ति और समय का हम उपयोग नहीं कर पाते, उसका हमें दुरुपयोग करना पड़ता है; क्योंकि बिना किए हम नहीं रह सकते। करना तो कुछ पड़ेगा ही। जां पाल सार्त्र ने कहा है कि चुनाव तुम कर सकते हो, लेकिन चुनाव करने के चुनाव की कोई स्वतंत्रता नहीं है। यू कैन चूज, बट यू कैन नॉट चूज नॉट चूजिंग चुनना तो पड़ेगा ही। करना तो कुछ
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