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है। इसलिए जहां भी पुरुष सोचेगा, वहां गणित, तर्क और नियम होगा। और जहां भी स्त्री सोचेगी, वहां न गणित होगा, न तर्क होगा; सीधे निष्कर्ष होंगे, कनक्लूजंस होंगे। इसलिए स्त्री और पुरुष के बीच बातचीत नहीं हो पाती।
और सभी पुरुषों को यह अनुभव होता है कि स्त्री से बातचीत करनी मुश्किल है, क्योंकि वह इल्लॉजिकल है। जब वह तर्क देता है, तब वह सीधे निष्कर्ष देती है। अभी वह तर्क भी नहीं दे पाया होता है और वह कनक्लूजंस पर पहुंच जाती है। स्त्री-पुरुष के बीच कम्युनिकेशन नहीं हो पाता, संवाद नहीं हो पाता। हर पति को यह खयाल है कि स्त्री से बात करनी बेकार है; क्योंकि आखिरी निर्णय उसके ही हाथ में हो जाने को है। और वह कितने ही तर्क दे, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता; क्योंकि स्त्री तर्क सुनती ही नहीं। इसलिए कई बार पुरुष को बहुत परेशानी भी होती है कि वह बात ठीक कह रहा है, तर्कयुक्त कह रहा है, फिर भी स्त्री उसकी सुनने को राजी नहीं है। उसे क्रोध भी आता है। लेकिन स्त्री के सोचने का ढंग ही तर्क नहीं है। इसमें स्त्री का कोई कसूर नहीं है।
दो तरह से सोची जाती है; जगत में कोई भी बात दो ढंग से सोची जा सकती है। या तो हम एक-एक कदम विधिपूर्वक सोचें और फिर विधि के माध्यम से निष्कर्ष को निकालें। और या हम एकदम से छलांग लें और निष्कर्ष पर पहुंच जाएं; कोई बीच की सीढ़ियां न हों। अंतर्दृष्टि, इंटयूशन का ढंग सीधी छलांग लेने का है।
हम सब में भी किन्हीं क्षणों में अंतर्दृष्टि होती है। एक आदमी आपको दिखाई पड़ता है, और अचानक आपके मन में निष्कर्ष आ जाता है कि इस आदमी से बच कर रहना ही ठीक है। आपके पास कोई तर्क नहीं होता। आपके पास कोई कारण नहीं होता। अभी इस आदमी से आपका परिचय भी नहीं हुआ है। लेकिन इस आदमी को देखते ही आपकी चेतना एक निष्कर्ष लेती है। यह निष्कर्ष बिलकुल सडन फ्लैश लाइट, जैसे बिजली कौंध गई हो, ऐसा है।
और अगर अब ठीक से खयाल करेंगे, तो अक्सर सौ में निन्यानबे मौके पर यह जो बिना विचारा, सीधा निष्कर्ष आपमें कौंध जाता है, सही होता है। जो लोग अंतर्दृष्टि पर काम करते हैं, वे कहते हैं कि अगर अंतर्दृष्टि शुद्ध हो, तो सदा ही सही होती है। तर्क गलत भी हो सकता है; अंतर्दृष्टि गलत नहीं होती।
इसलिए पुरुष की और परेशानी होती है। क्योंकि वह तर्क भी देता है, ठीक बात भी कहता है, लेकिन फिर भी वह अचानक पाता है कि स्त्री बिना तर्क के जो कह रही है, वह भी ठीक है। इससे क्रोध और भारी हो जाता है। जिन लोगों ने भी स्त्री के संबंध में चिंतन किया है और लिखा है, उन सब को एक भारी क्रोध है। और वह क्रोध यह है कि वह न तर्क देती, न वह व्यवस्था से विचार करना जानती; फिर भी वह जो निष्कर्ष लेती है, वे अक्सर सही होते हैं।
उसके निष्कर्ष इंटयूटिव हैं, उसके पूरे अस्तित्व से निकलते हैं। पुरुष के जो निष्कर्ष हैं, वे उसकी बुद्धि से निकलते हैं, पूरे अस्तित्व से नहीं निकलते। पुरुष सोच कर बोलता है। जो सोच कर बोला जाता है, वह गलत भी हो सकता है। इंटयूशन को थोड़ा समझ लेंगे, तो खयाल में आ जाएगा।
जापान में एक साधारण सी चिड़िया होती है, घरों के बाहर, आम गांव में। भूकंप आता है, तो चौबीस घंटे पहले वह चिड़िया गांव को खाली कर देती है। अभी तक वैज्ञानिकों ने भूकंप को पकड़ने के लिए जो यंत्र तैयार किए हैं, वे भी छह मिनट से पहले भूकंप की खबर नहीं देते। और छह मिनट पहले मिली हुई खबर का कोई उपयोग नहीं हो सकता। लेकिन जापान की वह साधारण सी चिड़िया चौबीस घंटे पहले किसी न किसी तरह जान लेती है कि भूकंप आ रहा है। जापान में हजारों साल से उस चिड़िया पर ही अंदाज रखा जाता है। जब वह चिड़िया गांव में नहीं दिखाई पड़ती-और बहुत कामन है, बहुत ज्यादा संख्या में है-जैसे ही गांव में चिड़िया दिखाई नहीं पड़ती, गांव को लोग खाली करना शुरू कर देते हैं। क्योंकि चौबीस घंटे के भीतर भूकंप अनिवार्य है।
लेकिन उस चिड़िया को भूकंप का पता कैसे चलता है? क्योंकि उसके पास कोई तर्क की व्यवस्था नहीं हो सकती। उसके पास कोई गणित नहीं है। और कोई अरिस्टोटल और कोई प्लेटो उसे पढ़ाने के लिए नहीं हैं। कोई विश्वविद्यालय नहीं है, जहां वह तर्कशास्त्र को पढ़ पाए। लेकिन उसे कुछ प्रतीति तो होती है। उस प्रतीति के आधार पर वह व्यवहार करती है। सारे जगत में पशु इंटयूटिव हैं। पशु बहुत से काम करते हैं, जो बिलकुल ही इंटयूशन से चलते हैं, अंतर्दृष्टि से चलते हैं, जिसमें कोई तर्क नहीं होता। लेकिन सारा पशु-जगत अंतर्दृष्टि से काम करता है और ठीक काम करता है। यह अंतर्दृष्टि क्या है? अस्तित्व से हमारा जुड़ा होना। अगर वह चिड़िया अपने आस-पास के सारे वातावरण से एक है, तो उस वातावरण में आते हुए सूक्ष्मतम कंपन भी उसको एहसास होंगे। वह प्रतीति बौद्धिक नहीं है। उसका पूरा अस्तित्व ही उन कंपनों को अनुभव करता है।
जब पुरुष किसी स्त्री को प्रेम करता है, तो उसका प्रेम भी बौद्धिक होता है। वह उसे भी सोचता-विचारता है। उसके प्रेम में भी गणित होता है। स्त्री जब किसी को प्रेम करती है, तो वह प्रेम बिलकुल अंधा होता है। उसमें गणित बिलकुल नहीं होता। इसलिए स्त्री और पुरुष के प्रेम में फर्क पाया जाता है। पुरुष का प्रेम आज होगा, कल खो सकता है। स्त्री का प्रेम खोना बहुत मुश्किल है।
और इसलिए स्त्री-पुरुष के बीच कभी तालमेल नहीं बैठ पाता। क्योंकि आज लगता है प्रेम करने जैसा, कल बुद्धि को लग सकता है न करने जैसा। और आज जो कारण थे, कल नहीं रह जाएंगे। कारण रोज बदल जाएंगे। आज जो स्त्री सुंदर मालूम पड़ती थी, इसलिए प्रेम मालूम पड़ता था; कल निरंतर परिचय के बाद वह सुंदर नहीं मालूम पड़ेगी। क्योंकि सभी तरह का परिचय सौंदर्य को कम कर
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