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वह आदमी भी मर गया, फरीद भी मर गया। न वह आदमी कभी फरीद के पास गया; न कभी वह फरीद का उत्तर किसी को सुनने मिला। मरते वक्त किसी ने फरीद से पूछा कि वह तैयार उत्तर आपके पास है; वह आदमी तो आता ही नहीं, हम सब सुनने को उत्सुक हैं। वह आप हमें बता जाएं! फरीद चुप बैठा रहा। उन्होंने कहा, बता दें! फरीद चुप बैठा रहा। उन्होंने कहा, बता दें, आपकी आखिरी घड़ी है, कहीं उत्तर आपके साथ न चला जाए। फरीद ने कहा कि मैं बता रहा हूं; मैं मौन हूं, यही मेरा उत्तर है। लेकिन अगर मैं इतना भी कहूं कि मैं मौन से बता रहा हूं, तो उससे वैत पैदा होता है। क्योंकि उसका मतलब होता है, मौन से बताया जा सकता है, बिना मौन के नहीं बताया जा सकता। डुआलिटी खड़ी हो जाती है, डिस्टिंकशन पैदा हो जाता है, भेद निर्मित हो जाता है। इसलिए तुम मुझसे यह मत कहलवाओ कि मैं मौन से बता रहा हूं; मैं मौन हूं और तुम समझ लो, शब्द मत उठाओ।
पर अकेले मौन से कैसे समझा जा सकता है?
लाओत्से ने यह अकेली एक ही किताब लिखी है। और यह उसने लिखी जिंदगी के आखिरी हिस्से में। उसने कोई किताब कभी नहीं लिखी। और जिंदगी भर लोग उसके पीछे पड़े थे। साधारण से आदमी से लेकर सम्राटों तक ने उससे प्रार्थना की थी कि लाओत्से, अपने अनुभव को लिख जाओ। लाओत्से हंसता और टाल देता। और लाओत्से कहता, कौन कब लिख पाया है? मुझे उस नासमझी में मत डालें। पहले भी लोगों ने कोशिश की है। जो जानते हैं, वे उनकी कोशिश पर हंसते हैं; क्योंकि वे असफल हुए हैं। और जो नहीं जानते, वे उनकी असफलता को सत्य समझ कर पकड़ लेते हैं। मुझसे यह भूल मत करवाएं। जो जानते हैं, वे मुझ पर हंसेंगे कि देखो, लाओत्से भी वही कर रहा है। जो नहीं कहा जा सकता, उसे कह रहा है; जो नहीं लिखा जा सकता, उसको लिख रहा है। नहीं, मैं यह न करूंगा।
लाओत्से जिंदगी भर टालता रहा, टालता रहा। मौत करीब आने लगी; तो मित्रों का दबाव और शिष्यों का आग्रह भारी पड़ने लगा। लाओत्से के पास सच में संपदा तो बहुत थी। बहुत कम लोगों के पास इतनी संपदा रही है, बहुत कम लोगों ने इतना गहरा जाना और देखा है। तो स्वाभाविक था, आस-पास के लोगों का आग्रह भी उचित और ठीक ही था कि लाओत्से लिख जाओ, लिख जाओ।
जब आग्रह बहत बढ़ गया और मौत आती दिखाई न पड़ी, और लाओत्से मश्किल में पड़ गया, तो एक रात निकल भागा। निकल भागा उन लोगों की वजह से, जो पीछे पड़े थे कि लिखो! बोलो! कहो! सुबह शिष्यों ने देखा कि लाओत्से की कुटिया खाली है। पक्षी उड़ गया, पिंजड़ा खाली पड़ा है। वे बड़ी मुश्किल में पड़ गए। सम्राट को खबर की गई और लाओत्से को देश की सीमा पर पकड़ा गया। सम्राट ने अधिकारी भेजे और लाओत्से को रुकवाया, चुंगी पर देश की, जहां चीन समाप्त होता था। और लाओत्से से कहा कि सम्राट ने कहा है कि चुंगी दिए बिना जा न सकोगे बाहर। तो लाओत्से ने कहा कि मैं कुछ ले ही नहीं जा रहा हूं जिस पर चुंगी देनी पड़े! मैं कोई कर चुकाऊं? मैं कुछ ले नहीं जा रहा हूं! सम्राट ने खबर भिजवाई कि तुमसे ज्यादा संपत्ति इस मुल्क के बाहर कभी कोई आदमी लेकर नहीं भागा है। रुको चुंगी नाके पर और जो भी तुमने जाना है, लिख जाओ!
यह किताब उस चुंगी नाके पर लिखी गई थी। वह लिख जाओ, तो मुल्क के बाहर निकल सकोगे, अन्यथा मुल्क के बाहर नहीं निकल सकोगे। मजबूरी में, पुलिस के पहरे में, यह किताब लिखी गई थी। लाओत्से ने कहा, ठीक है, मुझे जाना ही है बाहर, तो मैं कुछ लिखे जाता हूं।
यह ताओ तेह किंग अनूठी किताब है। इस तरह कभी नहीं लिखी गई कोई किताब। भाग रहा था लाओत्से इसी किताब को लिखने से बचने के लिए। निश्चित कठोरता, लगती है, सम्राट ने की; लेकिन दया भी लगती है। यह किताब न होती! और लाओत्से जैसे और लोग भी हुए हैं, जो नहीं लिख गए हैं। लेकिन जो नहीं लिख जाते हैं, उससे भी तो क्या फायदा होता है? जो लिख जाते हैं, उससे भी क्या फायदा होता है? जो नहीं लिख जाते, उन पर कम से कम विवाद नहीं होता। जो लिख जाते हैं, उन पर विवाद होता है। जो लिख जाते हैं, उनके एक-एक शब्द का हम विचार करते हैं कि क्या मतलब है! और मतलब शब्द के बाहर है। कभी अगर मनुष्य-जाति का अंतिम लेखा-जोखा होगा, तो कहना मुश्किल है कि जो लिख गए हैं वे बुद्धिमान समझे जाएंगे कि जो नहीं लिख गए हैं वे बुद्धिमान समझे जाएंगे। वैसे दो में से कुछ भी चुनो, द्वैत का ही चुनाव है। कोई लिखने के खिलाफ चुप रहने को चुन लेता है; कोई चुप रहने के खिलाफ लिखने को चुन लेता है। बाकी दवैत से बचने का उपाय नहीं है।
तो लाओत्से जब शब्द का उपयोग करेगा, तो द्वैत आ जाएगा। इसलिए उसने जान कर कहा कि वह अनाम पृथ्वी और स्वर्ग का जनक है और वह नामधारी वस्तुओं का मूल स्रोत है।
द्वैत निश्चित आ जाता है शब्द के साथ। लेकिन इसी आशा में लाओत्से जैसे लोग शब्द का उपयोग करते हैं कि शायद शब्द के सहारे निःशब्द की ओर धक्का दिया जा सके। यह संभव है। क्योंकि द्वैत केवल दिखाई पड़ता है, है नहीं; इसलिए यह संभव है। द्वैत केवल दिखाई पड़ता है, है नहीं। अगर होता, तब तो कोई संभावना न थी।
समझें कि हम यहां एक वीणा के तार को मैं छेड़ देता हूं और छोड़ देता हूं। ध्वनि होती है पैदा इस भवन में, गूंजती है आवाज, फिर धीरे-धीरे आवाज शून्य में खोने लगती है। क्या आप बता सकते हैं, आवाज कब खो जाएगी और कब शून्य शुरू होगा? क्या आप कोई सीमा खींच सकेंगे, जब आप कह सकें, इस समय तक वीणा का स्वर गूंजता था और इसके आगे गूंजना बंद हो गया? क्या आप स्पष्ट रूप से ध्वनि में और निर्ध्वनि में कोई सीमा खींच सकेंगे? या कि आप पाएंगे कि ध्वनि निर्ध्वनि में खोती चली जाती है; शब्द शून्य
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