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लाओत्से के इस वचन का अर्थ है, अल्टीमेटली आई एम दि रिस्पांसिबल; अल्टीमेट रिस्पांसिबिलिटी इज़ विद मी आत्यंतिक रूप से मैं ही दायित्व का भागीदार हूं, कोई और नहीं ।
इसलिए लाओत्से का दूसरा वचन और भी कठोर मालूम पड़ता है। कहता है, “स्वर्ग और पृथ्वी को सदय होने की कामना उत्प्रेरित नहीं करती। वे सभी प्राणियों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं, जैसे कोई घास निर्मित कुत्तों से व्यवहार करे।'
घास निर्मित कुत्ते से आप कैसा व्यवहार करेंगे? अगर घास निर्मित कुता पूंछ हिलाने लगे, तो आप प्रसन्न होंगे? आप कहेंगे, घास का कुत्ता है। अगर घास-निर्मित कुत्ता भौंकने लगे, तो आप भयभीत होंगे, भागेंगे? आप कहेंगे, घास का कुत्ता है। घास का कुत्ता आपको किसी भी दिशा में उत्प्रेरित न कर सकेगा। न तो आप भागेंगे और न आप प्रसन्न होंगे।
लेकिन अगर खयाल भी आ जाए कि घास का कुत्ता असली है, तो आप उत्प्रेरित हो जाएंगे। झूठा भी, घास का ही हो कुत्ता, लेकिन आपको पता न हो और समझें कि असली है, तो उसकी हिलती पूंछ आपके भीतर भी कुछ हिला जाएगी। कुछ भीतर प्रसन्न हो जाएगा, गदगद !
कुत्ता आदमी इसीलिए पालता है, क्योंकि आदमी खोजना मंहगा काम है जो आपके पीछे पूंछ हिलाए। सभी एफोर्ड नहीं भी कर सकते हैं, मंहगा है। जो कर सकते हैं, वे कर लेते हैं। एक आदमी एक कुत्ते को पाल लेता है। घर लौटता है आदमी थका हुआ, पत्नी का तो कोई भरोसा नहीं कि पूंछ हिलाएगी। पत्नी होने के बाद बिलकुल ही भरोसा नहीं; पहले हो भी सकता था। लेकिन एक कुत्ता दरवाजे पर रहेगा।
मुल्ला नसरुद्दीन के एक मित्र ने उससे एक दिन कहा है, बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। शादी जब तक नहीं की थी, घर लौटता था, तो कुत्ता भौंकता था, पत्नी चप्पल उठा कर लाती थी। अब हालत बिलकुल बदल गई है। पत्नी भौंकती है, कुत्ता चप्पल उठा कर लाता है। नसरुद्दीन ने कहा, लेकिन मैं कोई फर्क नहीं देखता । दि सेम सर्विसेज ! परेशान क्यों हो? काम पूरा हो रहा है; वही काम पूरा हो रहा है; करने वाले बदल गए हैं, इससे तुम परेशान क्यों हो? चप्पल भी मिल जाती है; भौंकना भी मिल जाता है।
आदमी कुत्ते की पूंछ से भी प्रसन्न होता है। उसके भौंकने से भयभीत भी होता है। घास के कुत्ते से भी यही हो सकता है, अगर पता न हो। क्योंकि हम असलियत से नहीं जीते, हम अपनी धारणाओं से जीते हैं। मेरी धारणा ही मेरे असलियत का जगत है।
लाओत्से कहता है, प्रकृति ऐसा व्यवहार करती है, जैसे हम सब घास के कुत्ते हों। वह हमसे उत्प्रेरित नहीं होती। इसमें बड़ी गहराई है, बड़ी गहरी अंतर्दृष्टि है। प्रकृति के लिए हम घास के कुत्ते हैं ही। मेटाफोरिकली ही नहीं, प्रतीकात्मक ही नहीं, वस्तुतः । प्रकृति के लिए हम घास के कुत्ते से ज्यादा होंगे भी क्या ?
जहां तक हमारा संबंध है, वहां तक हम घास के भरे हुए पुतले ही हैं। आप में से घास निकाल लिया जाए, पीछे कुछ भी नहीं बचता फिर । शरीर हमारा सिर्फ घास है। भोजन है, पानी है, हड्डी-मांस-मज्जा है। वह सब हमारा शरीर का जोड़ है। और हमें तो जरा भी पता नहीं है कि शरीर से ज्यादा भी हमारे भीतर कुछ है। शरीर ही हम हैं। इस शरीर को खोल कर देखें, तो सिवाय घास के और कुछ भी न मिलेगा।
वैज्ञानिक कहते हैं, कोई चार-पांच रुपए का सामान है आदमी के भीतर। कुछ एल्युमिनियम है, कुछ तांबा है, कुछ लोहा है, कुछ फासफोरस है। ज्यादा तो पानी है, कोई अस्सी प्रतिशत से ऊपर। फिर मिट्टी है। और यह सब घास से ही बना है। जिसे हम जीवन कहते हैं आज, अगर हम वैज्ञानिक से पूछें, तो वह कहता है, यह सब घास का ही विकास है, वेजिटेबल । यह उसका ही विकास है। और आज भी हम उसी पर जीते हैं। एक आदमी साल भर में एक टन घास शरीर में डालता है, तब जी पाता है। चौबीस घंटे घास डालनी पड़ती है। अपनी-अपनी घास अलग-अलग हो सकती है। उससे हम जीते हैं। वही हमारा ईंधन है। वही हमारा अस्तित्व और हमारा शरीर है।
तो लाओत्से अगर कहता है, प्रकृति हमें घास के कुत्तों से ज्यादा नहीं जानती, तो नाराज होने की जरूरत नहीं है। हम भी नहीं जानते हैं कि हम इससे ज्यादा हैं। प्रकृति ऐसा ही जाने, यह उचित है; लेकिन हम भी ऐसा ही जानें, यह उचित नहीं है। पर हमें कोई पता नहीं है: हमारे भीतर के शरीर के अलावा भी कुछ हम में है? कुछ मिट्टी को छोड़ कर भी? सुनते हैं आत्मा की बात, समझ तो नहीं पाते हैं। क्योंकि समझ हम वही पा सकते हैं, जो हमारा जानना बन जाए !
लेकिन और अर्थों में भी हम घास के जैसे ही हैं। कभी आपने देखा, खेत में झूठा आदमी बना कर खड़ा कर देते हैं। घास भर देते हैं और हंडी सिर पर टांग देते हैं। जानवरों को भगाने के काम आ जाता है। जानवरों को सच्चा ही मालूम पड़ता है, इसीलिए उत्प्रेरित हो जाते हैं, डर जाते हैं, भयभीत हो जाते हैं। कभी रात अंधेरी हो और अपरिचित जगह हो, तो आपको भी डरा सकता है घास का पुतला खेत में खड़ा हुआ। आपकी भावना ही प्रोजेक्ट होती है, उस घास के पुतले पर सवार हो जाती है। घास के पुतले को देख कर हम उत्प्रेरित हो सकते हैं।
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