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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free सदा ही हम ऐसा सवाल पूछते हैं। सवाल गलत है। और गलत होने की वजह से जो भी उत्तर मिलते हैं, वे हमारे काम नहीं पड़ते। ठीक सवाल पूछना बड़ी मुश्किल बात है। ठीक जवाब पाने से ज्यादा मुश्किल है! क्योंकि ठीक सवाल उठ जाए, तो ठीक जवाब बहुत दूर नहीं होता। हम सदा यही पूछते हैं कि मन को कैसे रोका जाए? कैसे शून्य किया जाए? नहीं, हमें पूछना सिर्फ इतना ही चाहिए कि मन को कैसे न भरा जाए? हाऊ नॉट टु फिल इट! हम पूछते हैं, हाऊ टु एम्पटी इट? उसे कैसे खाली करें? पूछना चाहिए कि कैसे हम इसे न भरें? क्योंकि खाली तो वह है ही। जिसको आप खाली करने के लिए पूछ रहे हैं, वह खाली है। खाली आपको करना ही नहीं है। आपकी इतनी कृपा काफी होगी कि आप न भरें। लेकिन हम सदा पूछते हैं, कैसे खाली करें? और तब हम ऐसी विधियां खोज लाते हैं, जो और भरने वाली सिद्ध होती हैं। क्योंकि आप कुछ भी करेंगे, पूछते हैं, कैसे खाली करें? तो आप कुछ और साज-सामान ले आएंगे खाली करने का; उसको भी इसी में भर लेंगे। नहीं, पूछे कि कैसे हम न भरें? हम चौबीस घंटे भर रहे हैं। और मजा यह है कि यह भराव करीब-करीब ऐसा है कि अगर हम दस मिनट भी न भरें, तो हजारों साल हमने जो भरा है, वह खाली हो जाए। यह मामला ऐसा है कि जिसमें हम भर रहे हैं, वह शून्य है। चूंकि हम सतत भरते हैं, इसलिए भरे होने का भ्रम बना रहता है। अगर हम दस मिनट को भी रुक जाएं और न भरें, तो वह जो जन्मों-जन्मों का भरा है, वह नीचे गिर जाए और घड़ा खाली हो जाए अभी। क्योंकि नीचे बॉटमलेस है। आपका जो मन है, उसमें नीचे कोई तलहटी नहीं है। मगर सतत भरते रहते हैं। वह करीब-करीब ऐसा है, जैसा कि आटे की चक्की वाला ऊपर से गेहूं डालता जाता है और नीचे से आटा गिरता चला जाता है। अब वह कहता है, इस आटे को कैसे रोकें? वह यह नहीं पूछता कि वह गेहूं को डालना कैसे बंद करें? वह गेहूं डालता चला जाता है उधर से और इधर से कहता है, इसको कैसे रोकें! अब वह इसको रोकने की कोशिश करता है, तो और झंझट होती है। क्योंकि वह गेहूं पीछे से डाला जा रहा है। तो एक पांच मिनट रोक दो, तुम्हें इस आटे को रोकने के लिए कुछ न करना पड़ेगा। यह चक्की अपने से खाली हो जाएगी। असली सवाल यह है कि हम कैसे भर रहे हैं, उसे जरा देख लें। चौबीस घंटे भर रहे हैं। एक दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन हम नई वासनाएं निर्मित न करते हों। अगर आप पानी वासनाओं के साथ ही रुक जाएं एक दिन, तो उसी दिन आप पाएं कि खाली हो गए। कल आपने जो-जो वासनाएं की थीं, कृपा करके चौबीस घंटे उतने पर रुक जाइए। यह कोई बहुत बड़ा मामला नहीं है कि कल जितना किया था वासना, उतने पर ही रुकूगा। कल अगर दस रुपए चाहे थे, तो दस रुपए आज ही चाहूंगा। आज भी दस ही चाहूंगा, कल पर रुक जाता हूं। तो ये चौबीस घंटे में आप मुश्किल में पड़ जाएंगे; और पाएंगे, खाली होने लगे। अगर आपको दस रुपए की चाह बचानी है, तो आज आपको बीस चाहने पड़ेंगे, तो बचेगी। आपको आज चाह जारी रखनी पड़ेगी, उसको पोषण देना पड़ेगा, उसे बढ़ाते रहना पड़ेगा, उकसाते रहना पड़ेगा। उसको भोजन और खाद और पानी देते रहना पड़ेगा। अगर आप एक क्षण भी रुके, तो यह करीब-करीब मामला ऐसा है, जैसे कोई साइकिल चलाता है, पैडल रोके कि गिरे। पिछले पैडल पर ही रुक जाएं, ज्यादा देर साइकिल चलने वाली नहीं है। चढ़ाव पर हुए, तो उसी वक्त गिर जाएगी; उतार पर हुए, तो थोड़ी दूर चल सकती है। मगर गिरेगी। कांसटेंट पैडलिंग जरूरी है साइकिल चलाने के लिए। करीब-करीब मन के चक्र को चलाने के लिए भी कांसटेंट पैडलिंग। उसमें एक क्षण की भी रुकावट खतरनाक है, साइकिल गिर जाएगी। रोज हम नई वासना निर्मित करते हैं, रोज। किसी का कपड़ा दिखाई पड़ा, वासना निर्मित हुई। कोई मकान दिखाई पड़ा, वासना निर्मित हुई। किसी का चेहरा दिखाई पड़ा, वासना निर्मित हुई। हिलते-डुलते भी नहीं जरा, जरा हिले-डुले कि वासना निर्मित हुई। उठे-बैठे कि वासना निर्मित हुई। इस पर सजग हों। भरने के मामले में सजग हों। खाली की फिक्र छोड़ दें। खाली आपसे न हो सकेगा। खाली कभी किसी से नहीं हुआ। भरने की भर फिक्र छोड़ें। और एक दिन आप अचानक पाएंगे कि भरना बंद है और नीचे से आटा आना चक्की से बंद हो गया है, वह खाली पड़ी है। भरने का खयाल रखें, कहां-कहां से भर रहे हैं! पहले सजग हों; जल्दी न करें रोकने की; पहले सजग हों कि कहांकहां से भरते हैं! किस-किस भांति भरते हैं! और आदमी ऐसा है कि आखिरी दम तक भरे जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन को एक पागल कुत्ते ने काट लिया। दो-चार दिन उन्होंने कोई फिक्र ही न की। लोगों ने कहा भी कि पागल कुत्ते का मामला है, जाकर डाक्टर को दिखा लो। जब दिखाया, तब तक जहर फैल चुका था। चिकित्सकों ने बैठक की और उन्होंने कहा कि नसरुद्दीन को सीधा-सीधा कह देना जरूरी है। कह दिया कि हाइड्रोफोबिया हो गया। अब सीमा के बाहर है। पागल होकर आप रहोगे। बहुत देर कर दी आने में। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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