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नसरुद्दीन एक मस्जिद में बैठा हुआ है। और पुरोहित ने कहा है-बहुत समझाने के बाद स्वर्ग के बाबत कि लोग एकदम आतुर हो गए हैं स्वर्ग जाने के लिए-पुरोहित ने जोर से चिल्ला कर कहा कि जिनको स्वर्ग जाना हो, वे खड़े हो जाएं! सारे लोग खड़े हो गए, एक मुल्ला नसरुद्दीन को छोड़ कर।
पुरोहित थोड़ा हैरान हुआ। उसने कहा कि मुल्ला, क्या तुम्हारे इरादे स्वर्ग जाने के नहीं हैं?
मुल्ला ने कहा कि जो बात बहुत साफ न हो, उसके लिए खड़े होने की झंझट भी हम नहीं करते। अभी हमें बैठना साफ है। और फिर मुल्ला ने कहा कि जिस स्वर्ग में खड़े होकर जाना पड़े, हम न जाएंगे। क्या बैठे-बैठे नहीं जाया जा सकता? एक तो साफ नहीं पक्का कि कहां जा रहे हैं, कोई है जगह जाने की कि नहीं है जगह। अकारण खड़े हो गए हैं ये लोग। और मुल्ला ने कहा कि देखता हूं कि अगर ये खड़े होने वाले पहुंच गए, तो मैं बैठा-बैठा पहुंच जाऊंगा। तो कौन जाता है, देखते हैं।
स्वर्ग कितना महत्वपूर्ण मालूम पड़ने लगता है मन को! मोक्ष की बड़ी आकांक्षा होने लगती है। सत्य को पाने की बड़ी वासनाएं जगने लगती हैं। बिना कुछ साफ हुए कि किस चीज को...सब अंधेरे में हैं। अंधेरे में आंख बंद करके सपना देखने लगते हैं। अहंकार अंधेरे जैसा है। उसमें जो सत्य हम बनाते हैं, वे बिलकुल मनोकल्पित हैं। अपने ही भीतर निर्मित हैं, उनका सत्य से कुछ लेना-देना नहीं है।
अस्मिता प्रकाश जैसी है। लेकिन अस्मिता के प्रकाश में भी जो सत्य दिखाई पड़ते हैं, वे भी प्रतिफलन से ज्यादा नहीं हैं। वे भी रिफ्लेक्शंस हैं। जहां न अहंकार रह जाता और न अस्मिता, जहां मैं बचता ही नहीं हूं, वहीं वह जाना जाता है, जो प्रतिबिंब नहीं है, स्वयं है। लेकिन तब कहने वाला नहीं होता।
लाओत्से आखिरी सीमा से कह रहा है, सीमांत से। आखिरी सीमा से, जहां अस्मिता भी खो जाएगी। जहां अहंकार खो गया, अब जहां मैं का आखिरी, शुद्धतम रूप बचा है, वह भी बुझ जाएगा, वहां से वह कह रहा है: नहीं जानता मैं, कहां से जन्मा यह सब, कौन है इसका जन्मदाता, किसका है यह पुत्र, शायद यह प्रतिबिंब है उसका जो कि परमात्मा के भी पहले था। ये आखिरी वक्तव्य हैं, जो सीमाओं पर दिए जाते हैं-सीमांत वक्तव्य। इसके पार आदमी खो जाता है।
फिजिकली भी लाओत्से के बाबत सच है कि इस किताब को लिखने के बाद लाओत्से खो गया-फिजिकली भी! मैं तो मेटाफिजिकली कह रहा हूं कि इस सीमांत के बाद आदमी खो जाता है, लेकिन लाओत्से के तो फिर शरीर का भी पता नहीं चला इस किताब लिखने के बाद। लाओत्से कहां गया? लाओत्से बचा कि मरा? किसी खाई-खड्ड में गिरा? लाओत्से की कब्र कहां? लाओत्से को किसने दफनाया? वह किस क्षण, किस घड़ी, किस वर्ष में समाप्त हुआ, इस पृथ्वी को छोड़ा, फिर कुछ भी पता नहीं है। यह किताब आखिरी है और यह किताब पहली है।
मुल्ला नसरुद्दीन को किसी मित्र ने कहा है, जो कि नया-नया पायलट हो गया है, हवाई जहाज उड़ाना सीख गया है, उसने मुल्ला को कहा कि तुम बैठो, तुम्हें मैं जरा घुमा दूं। मुल्ला को उसने घुमाया और जब वापस उतारा, तो मुल्ला ने कहा, बैंक यू फॉर योर टू ट्रिप्स! तुम्हारी दो ट्रिप्स के लिए धन्यवाद! उसने कहा कि दो? एक ही थी। मुल्ला ने कहा, माई फर्स्ट एंड लास्ट। उसने कहा, दो-मेरी पहली और आखिरी। नमस्कार!
यह लाओत्से की पहली और आखिरी किताब है। यह पहला और आखिरी वक्तव्य है। इसके पहले उसने कुछ लिखा नहीं। इसके बाद उसका पता नहीं कि वह आदमी कहां गया। यह सीमांत वक्तव्य है। यह उसने उस जगह से, जहां जीवन फिर बादलों में खो जाता है, अस्मिता भी जहां शून्य में लीन हो जाती है, आखिरी क्षण, जहां से उस खाई में छलांग लग जाती है, फिर जहां से कोई लौटना नहीं है, जहां से फिर कोई आवाज भी चिल्लाए, चीखे-पुकारे, तो हम तक नहीं पहुंचती है, यह आखिरी बार्डरलैंड से कही गई बात है। शारीरिक रूप से भी, आध्यात्मिक रूप से भी।
और शायद शारीरिक रूप से लाओत्से का तिरोहित हो जाना इसी बात की खबर देने के लिए है कि इस सीमा के बाद फिर रुकने का कोई मतलब नहीं है। शारीरिक रूप से भी तिरोहित हो जाना इसी बात की सूचना के लिए है कि इसके बाद बचने का कोई अर्थ ही नहीं होता। इस किताब को सौंप कर लाओत्से जो विदा हुआ, फिर किसी को दिखाई नहीं पड़ा।
मैंने आपको कहा था, यह चीन की सीमा पर एक चुंगी चौकी पर बैठ कर लिखी गई किताब है-आखिरी सीमा पर। चुंगी चौकी के अफसर को तीन दिन में यह किताब लिख कर, सौंप कर लाओत्से जो बाहर गया...। वह चुंगी चौकी का आफिसर जब तक किताब देख रहा था कि क्या लिखा है-बड़ी किताब नहीं है यह, बहुत छोटी सी किताब है, तीन दिन में ही लिखी है-जब तक वह इस किताब के पन्ने उलटा रहा था और बाहर लौट कर आकर उसने पूछा कि कहां गया वह आदमी? किसी ने, कोई बता नहीं सका कि किसी ने उसको देखा भी कमरे से निकलते हुए। जो दो-चार लोग थे, उन्होंने कहा, हमें पता नहीं कौन कमरे से बाहर निकला और कौन कहां गया। चरण-चिह्न खोजे गए, वे कहीं मिले नहीं। आदमी दौड़ाए गए कि वह कहां गया लाओत्से? यह बहुत अदभुत किताब रख गया है लिख कर! इस आदमी को पकड़ो!
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